दुनिया की कुछ नामी एजेंसियां
सीआइए अमरीका: 1947 दुनिया की सबसे ताकतवर एजेंसी मानी जाती है। ओसामा बिन लादेन को पकडना और मारना बड़े अभियान का हिस्सा था। रों-भारत : 1968 रों को दुनिया की सबसे ताकतवर एजेंसियों में से माना जाता है। मोसाद-इजरायल : 1949 साहसिक और विवादास्पद अभियानों के लिए जानी जाती है। एमआइ 6 – ब्रिटेन: 1909 दुनिया की सबसे पुरानी खुफिया एजेंसियों में से एक। एमएसएस-चीनः 1951 कार्यप्रणाली चर्चा में नहीं आती।
एफएसबी-रूस : 1995 सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी की उत्तराधिकारी। आइएसआइ-पाकिस्तानः 1948 दुनिया की सबसे बदनाम खुफिया एजेंसी। आतंकियों से संबंध उजागर।
कैसे देती हैं काम को अंजाम ?
खुफिया एजेंसियां अपने देशों की सुरक्षा और रणनीतिक हितों को सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाती हैं। ये गोपनीय ढंग से दुश्मन देशों की गतिविधियों पर नजर रखती हैं और गुप्त अभियानों को अंजाम देती हैं।
इन पर कितना खर्च
काम की तरह खुफिया एजेंसियों के बजट और खर्च को भी ज्यादातर देश गोपनीय रखते हैं। कुछ रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि अमरीका सीआइए पर सबसे ज्यादा करीब 71 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च करता है। इसके बाद चीन और रूस का नंबर आता है।
इजरायल की मोसाद क्यों सबसे अलग?
मोसाद सटीकता, योजना और मनोवैज्ञानिक युद्ध में माहिर है। यह महाद्वीपों में छिपे गुप्त एजेंटों और खुफिया नेटवर्क के जरिए चुपचाप काम करता है। म्यूनिख हत्याकांड का बदला हो या नाजी युद्ध अपराधी एडॉल्फ आइशमैन को पकड़ने जैसे मिशन मोसाद की पहुंच दर्शाती है।
चर्चा में रहे एजेंसियों के एनिमल एजेंट्स
कुछ खुफिया एजेंसियां प्रशिक्षित कर एनिमल एजेंट्स की मदद लेती हैं। कबूतरः उड़ान क्षमता और बेहतर दिशा ज्ञान के कारण प्राचीनकाल से इनका गुप्त अभियानों में इस्तेमाल होता है। व्हेल-डॉल्फिनः पनडुब्बीरोधी अभियानों, गोताखोरों की मदद करने के लिए रूस-अमरीका इनका इस्तेमाल करते रहे हैं। चूहेः सुनने और सूंघने की अच्छी क्षमता के कारण विस्फोटक आदि का पता लगाने के लिए इनका इस्तेमाल होता है।
इसके अलावा श्वान और बिल्लियों का भी खुफिया अभियान में इस्तेमाल होता है।