विक्रमशिला में कभी तंत्र, धर्मशास्त्र, दर्शन, व्याकरण, तत्व मीमांसा और तर्क जैसे विषय पढ़ाए जाते थे। यह करीब चार शताब्दियों तक समृद्ध रहा, लेकिन 13वीं शताब्दी के आसपास नालंदा के साथ इसका भी पतन हो गया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार ने 2015 में इस केंद्रीय विश्वविद्यालय के जीर्णोद्धार की परियोजना के लिए 500 करोड़ रुपए आवंटित किए थे। राज्य सरकार की ओर से उपयुक्त भूमि की पहचान में देरी के कारण परियोजना अब तक लटकी हुई थी। बिहार सरकार ने हाल ही भागलपुर जिले के अंतीचक गांव में केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए 202.14 एकड़ भूमि की पहचान की है। यहां रिसोर्स और विजिटर सेंटर के निर्माण के साथ प्रदर्शनी गैलरी बनाई जाएगी, जिसमें विश्वविद्यालय की ऐतिहासिक विरासत दर्शाई जाएगी। परिसर में पौधरोपण और पर्यावरण अनुकूल सुविधाओं का विस्तार होगा।
208 कक्षों में होती थी तंत्रयान की पढ़ाई खंडहर के बीच ईंटों का विशाल स्तूप विक्रमशिला का केंद्रबिंदु है। स्तूप के चारों ओर 208 कक्ष हैं। इन कक्षों में सदियों पहले भिक्षु-छात्र तंत्रयान की पढ़ाई करते थे। हीनयान और महायान के बाद तंत्रयान भारतीय बौद्ध धर्म की तीसरी प्रमुख शाखा थी। इसकी पढ़ाई तांत्रिक अभ्यास और अनुष्ठानों पर केंद्रित थी। प्राचीन विक्रमशिला विश्विद्यालय के विद्वान तंत्रयान के विशेषज्ञ माने जाते थे।
8वीं शताब्दी के अंत में हुई थी स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल ने 8वीं शताब्दी के अंत में विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। यह नालंदा विश्वविद्यालय के समकालीन था। अपने काल में दोनों विश्वविद्यालय उत्कर्ष पर थे। नालंदा विभिन्न विषयों के अध्ययन के लिए प्रसिद्ध था, जबकि विक्रमशिला तांत्रिक अध्ययन के लिए एकमात्र विश्वविद्यालय था।