इसके बाद उसके साथ कई बार शारीरिक संबंध बनाए। बार-बार यौन संबंध बनाने से वह गर्भवती हो गई। दिसंबर 2024 में उसे अचानक पेट में दर्द उठा तो उसने परिजनों को बताया। परिजन अस्पताल लेकर पहुंचे तो डॉक्टर की बात सुनकर उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। डॉक्टरों ने बताया कि पीड़िता मां बनने वाली है। उसे लेबर पेन उठा था। इसके बाद नाबालिग पीड़िता ने अस्पताल में एक बच्चे को जन्म दिया।
बातचीत से नहीं निकला हल तो पुलिस के पास पहुंचा मामला
इसके बाद परिजनों ने बेटी को शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने वाले मामा के दोस्त से बात की। इसपर मामा के दोस्त ने पूरे मामले को फर्जी बताते हुए कहा कि उसने कभी नाबालिग भांजी के साथ शारीरिक संबंध बनाए ही नहीं। इसपर मामला बिगड़ गया और परिजन किशोरी को लेकर पुलिस के पास पहुंचे। उधर, नाबालिग भांजी के परिजनों ने आरोपी मामा के दोस्त पर मुकदमा दर्ज कराया। इधर, आरोपी ने कोर्ट में अंतरिम जमानत के लिए अर्जी दे दी। दिल्ली हाईकोर्ट ने जब आरोपी का पक्ष सुना तो जज भी हैरान रह गए। बहरहाल दिल्ली हाईकोर्ट ने आरोपी को सशर्त जमानत दे दी है। मामले की सुनवाई करते समय दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस गिरीश कथपालिया ने कहा “मुझे आरोपी के विद्वान वकील की दलीलों में दम लगता है कि यह कोई साधारण मामला नहीं है। जहां अपराध की गंभीरता को देखते हुए आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया जाना चाहिए।”
आरोपी मामा की याचिका और चौंकाने वाले दावे
इस मामले में दिल्ली पुलिस ने भांजी की शिकायत पर आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 और पोक्सो (यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम) के तहत मुकदमा दर्ज किया है। इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे आरोपी मामा ने अग्रिम जमानत की याचिका दायर की। इसमें आरोपी ने भांजी के सभी आरोपों से इनकार किया है। साथ ही कोर्ट को बताया कि उसने कभी पीड़िता के साथ यौन संबंध ही नहीं बनाए। आरोपी ने हलफनामा देकर कोर्ट में कहा “अदालत चाहे तो मैं अपना डीएनए टेस्ट कराने के लिए तैयार हूं।” इसके साथ ही आरोपी ने पीड़िता की नागरिकता पर भी सवाल उठाए। उसने अदालत में दावा किया कि खुद को पीड़िता बताने वाली लड़की बांग्लादेशी है। जो अवैध रूप से भारत आई थी।
पीड़िता के मामा अवैध गतिविधियों में संलिप्त
आरोपी ने कोर्ट में यह भी बताया कि पीड़िता के दोनों मामा फर्जी बर्थ सर्टिफिकेट और पासपोर्ट बनाने जैसे अपराधों में शामिल रहे हैं। उसने आशंका जताई कि इस मामले को सुनियोजित तरीके से उसके खिलाफ रचा गया है। इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस गिरीश कथपालिया ने कई पहलुओं पर संदेह जताया। अदालत को बताया गया कि जिस जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर लड़की को नाबालिग बताया गया। वह नगर निगम अधिकारियों द्वारा जारी ही नहीं किया गया था। इतना ही नहीं, जन्म प्रमाण पत्र की एक अन्य प्रति के सत्यापन में उप-पंजीयक ने इसे ‘पता लगाने योग्य नहीं’ बताया।
दुष्कर्म का मुकदमा देर से दर्ज कराने में संदेह
इसके अलावा, अदालत को यह भी संतोषजनक उत्तर नहीं मिला कि बलात्कार की शिकायत दर्ज कराने में 14 महीने की देरी क्यों हुई। यह देरी भी अदालत के निर्णय में अहम कारण बनी। दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई 22 मई को हुई थी। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि यह मामला अपने आप में असाधारण है। जिसमें सीधे तौर पर जमानत से इनकार करना उचित नहीं होगा। अदालत ने आरोपी के वकील की दलीलों को विचारणीय मानते हुए कहा “यह एक जटिल मामला है, जिसमें तथ्यों की गहराई से जांच आवश्यक है।” कोर्ट ने आरोपी को जमानत की अनुमति देते हुए यह भी आदेश दिया कि वह जांच में पूरा सहयोग करे और अभियोजन पक्ष, खासकर पीड़िता या किसी अन्य गवाह से संपर्क न करे। साथ ही अदालत ने आरोपी की मां द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत का भी संज्ञान लिया। जिसे आरोपी ने अपने खिलाफ दर्ज ‘काउंटरब्लास्ट एफआईआर’ बताया। यह मामला न केवल दिल्ली के न्यायिक परिदृश्य में बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसमें जहां एक ओर पीड़िता की सुरक्षा और न्याय की मांग उठ रही है। वहीं दूसरी ओर आरोपी द्वारा पेश किए गए तथ्य और दस्तावेजों की वैधता भी जांच के घेरे में है। अदालत ने फिलहाल आरोपी को राहत दी है, लेकिन मामले की गहराई से जांच जारी है और आगामी सुनवाईयों में कई और खुलासे हो सकते हैं।