पहले तो दिल्ली हाईकोर्ट ने पर्याप्त सबूत का अभाव बताते हुए ACB को जज के खिलाफ जांच की इजाजत देने से इनकार कर दिया था। हालांकि, ACB को जांच जारी रखने को कहा गया और आगे ठोस सबूत मिलने पर दोबारा संपर्क करने का सुझाव दिया गया। ACB ने 16 मई को कोर्ट स्टाफ पर FIR दर्ज की। जिसके बाद 20 मई को संबंधित स्पेशल जज का ट्रांसफर कर दिया गया। इस मामले में अभी आधिकारिक तौर पर किसी पक्ष की ओर से कुछ नहीं कहा गया है।
क्या है केस?
2023 में एक GST अधिकारी पर फर्जी कंपनियों को गलत टैक्स रिफंड देने का आरोप लगा। ACB ने 16 लोगों को गिरफ्तार किया। जमानत की अर्जी पर सुनवाई लगातार टलती रही। 30 दिसंबर 2024 को GST अधिकारी के रिश्तेदार ने आरोप लगाया कि कोर्ट ने अधिकारियों से जमानत के बदले भारी रिश्वत मांगी और इनकार पर जमानत अटकाई। बाद में हाईकोर्ट से राहत मिली, लेकिन धमकियां दी गईं। एसीबी की रिपोर्ट के अनुसार, 20 जनवरी को एक और शिकायत मिली। जिसमें कोर्ट के कर्मचारी पर जमानत के बदले 15-20 लाख रुपये रिश्वत मांगने का आरोप था। ACB की जांच में आरोपों को समर्थन देने वाले ऑडियो साक्ष्य मिले। FIR के बाद कोर्ट स्टाफ ने अग्रिम जमानत मांगी। ACB ने इसका विरोध करते हुए उन्हें मुख्य आरोपी बताया और सबूतों से छेड़छाड़ की आशंका जताई। 22 मई को कोर्ट ने अग्रिम जमानत खारिज कर दी।
दिल्ली में जस्टिस वर्मा केस
14 मार्च 2025 को दिल्ली में होली की रात, हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास के स्टाफ क्वार्टर के पास स्थित एक स्टोर रूम में आग लग गई। आग बुझाने पहुंची दमकल टीम को वहां से कथित रूप से भारी मात्रा में अधजली नकदी की गड्डियां मिलीं। जस्टिस वर्मा उस समय दिल्ली से बाहर थे। घटना के बाद उन्होंने सफाई दी कि जिस कमरे में नकदी मिली, वह उनके मुख्य निवास का हिस्सा नहीं है और वह स्टाफ व अन्य लोगों द्वारा उपयोग में लाया जाता था। इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर करने का निर्णय लिया और मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने उनके खिलाफ जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है। जस्टिस वर्मा ने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दिए गए स्पष्टीकरण में कहा “यह कमरा सभी के लिए खुला था और इसका इस्तेमाल पुराना सामान, गार्डनिंग टूल्स, फर्नीचर आदि रखने के लिए होता था। यह मुख्य आवास से अलग स्थित है।” इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति को आगे की कार्रवाई के लिए लिख दिया है।
अदालतों में सामने आते रहे हैं ऐसे मामले
जस्टिस निर्मल यादव केस : साल 2009 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जज निर्मल यादव पर 15 लाख रुपये रिश्वत लेने का आरोप लगा था। एक वकील ने यह रकम गलती से किसी और जज के घर पहुंचा दी। जिससे पूरा मामला उजागर हुआ। यह केस सालों तक चर्चा में रहा।
जस्टिस दिनाकरण का इस्तीफा : मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस पीडी दिनाकरण साल 2009 से 2011 के बीच तमिलनाडु में अवैध भूमि अधिग्रहण और संपत्ति संचय के आरोप लगे। उनके खिलाफ 16 शिकायतें दर्ज हुईं और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनकी पदोन्नति रोक दी। बाद में दिनाकरण ने साल 2011 में इस्तीफा दे दिया।
आवाज उठाने वाले जज पर जब हुआ एक्शन : ऐसे ही कलकत्ता हाईकोर्ट में जस्टिस सीएस कर्णन ने साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट के जजों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए। इसके बाद उनके खिलाफ अवमानना का मामला चला और उन्हें छह महीने की जेल हुई। यह भारतीय न्यायपालिका में एक अभूतपूर्व घटना थी।
… एक अभूतपूर्व मामला भी आया सामने
इसके साथ ही साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इसमें मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर मुकदमों के गलत बंटवारे और न्याय व्यवस्था में पारदर्शिता की कमी का आरोप लगा। भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार जजों ने सार्वजनिक तौर पर अपनी आपत्तियां दर्ज कराईं। प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वालों में जस्टिस चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, मदन लोकुर और कुरियन जोसेफ शामिल थे। विशेषज्ञों का मानना है कि इन घटनाओं ने एक बार फिर यह दिखाया है कि भारतीय न्यायपालिका में जवाबदेही और पारदर्शिता की गंभीर कमी है। जजों के खिलाफ कार्रवाई का एकमात्र संवैधानिक उपाय महाभियोग है, लेकिन आज तक किसी भी न्यायाधीश के खिलाफ यह प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी नहीं हो पाई है।