दिल्ली में शब-ए-बारात को लेकर पुलिस अलर्ट
दरअसल, शब-ए-बारात (Shab E Barat 2025) इस्लाम का अहम त्योहार है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग रातभर जागकर अल्लाह की इबादत करते हैं। इस बार शब-ए-बारात (Shab E Barat 2025) आज यानी 13 फरवरी को मनाई जा रही है।
दिल्ली में इसको लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा है। वैसे तो शब-ए-बारात इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार आठवां महीना है। जो शाबान कहलाता है। इस महीने 14 तारीख की रात शब-ए-बारात कहलाती है। इसका मतलब जहन्नुम से आजाद करना होता है। मुस्लिम समुदाय के लोगों में इस दिन खासा उत्साह होता है। घरों में पकवान बनाए जाते हैं और पूरी रात अल्लाह की इबादत की जाती है। चूंकि हाल ही में दिल्ली चुनाव 2025 के परिणाम आए हैं। इसलिए इस त्योहार (Shab E Barat 2025) पर दिल्ली पुलिस अतिरिक्त सुरक्षा बरत रही है।
आप जानते हैं क्यों मनाया जाता है शब-ए-बारात?
दरअसल, शब-ए-बारात (Shab E Barat 2025) के दिन शिया मुसलमानों के 12वें इमाम मुहम्मद अल महदी ने जन्म लिया था। इस्लाम की मान्यता के अनुसार, यह रात सूरज के डूबने के बाद शुरू होती है और सुबह फजिर के समय खत्म मानी जाती है। इस्लामिक मान्यता है कि इस रात को अल्लाह से जो भी दुआ मांगी जाती है वह कबूल होती है। इसके साथ ही लोग अपने गुनाहों के लिए अल्लाह से तौबा यानी पश्चाताप करते हैं। मान्यता यह भी है कि मगफिरत यानी गुनाहों की माफी बंदे को तब तक नहीं मिलती। जब तक वह दिल से तौबा न करे। कहा ये भी जाता है कि शब-ए-बारात (Shab E Barat 2025) की रात अल्लाह इंसान के पिछले कामों के अनुसार आने वाले समय के लिए किस्मत लिखते हैं। शब-ए-बारात (Shab E Barat 2025) का मतलब है आजाद करना। हर मुस्लिम बंदे को इस रात का खास इंतजार रहता है।
शब-ए-बारात पर भी इन लोगों को नहीं मिलती माफी
शब-ए-बारात (Shab E Barat 2025) के बारे में बताते हुए इमाम मुहम्मद सुलेमान बताते हैं ”शब-ए-बारात का मतलब है आजाद करना। यानी अल्लाह रब्बुल अलामीन (ईश्वर) शब-ए-बारात (Shab E Barat 2025) की रात में बनू कल्ब (एक कबीला) जहां की बकरियों के बाल के बराबर लोगों को जहन्नुम (नर्क) से आजाद फरमाते हैं। इस रात में नफ्ली तौर पर इबादत की जाती है। जिसमें नमाज, कुरआन की तिलावत और अपने गुनाहों से तौबा करना शामिल होता है। इस रात के गुरजने के बाद जो दिन आता है। उसमें रोजे रखने का हुक्म है। उसकी फजीलत ये है कि किसी व्यक्ति का एक साल जो गुजर चुका है उसके गुनाहों (पाप) का कफ्फारा (शुद्धि) हो जाता है और इस एक रोजे की वजह से उसे माफी मिल जाती है।” मौलाना आगे बताते हैं “लेकिन इसमें तीन लोग ऐसे हैं। जिनकी माफी इस रात में भी नहीं होती। इनमें सबसे पहले आता है मां बाप का नाफरमान यानी हुक्म न मानने वाला, दूसरा होता है रिश्तेदारी तोड़ने वाला। इसके साथ ही तीसरा और अंतिम व्यक्ति वह होता है। जो नशे का आदी है। वह हमेशा नशे में रहकर अपना होश-हवास खोता रहे। ऐसे लोगों को इस रात में भी निजात यानी नर्क से आजादी नहीं मिलती है। हां, अगर कोई सच्चे दिल से इन बुराइयों को छोड़कर तौबा करे तो अगले शब-ए-बारात (Shab E Barat 2025) में उसे मगफिरत यानी माफी मिल सकती है।”