1987ः बॉम्बे हाईकोर्ट में शुरू की थी स्वतंत्र प्रैक्टिस 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में जन्मे जस्टिस गवई साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं। उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई उस समय एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता थे। बाद में उन्होंने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। आर.एस. गवई – जिन्हें उनके अनुयायी दादा साहब के नाम से जानते थे – अंबेडकर से बहुत करीब से जुड़े थे और उन्होंने अंबेडकरवादी संगठन रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) की स्थापना भी की थी। जस्टिस गवई ने 1985 में अपना कानूनी करियर शुरू किया। 1987 में बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र प्रैक्टिस शुरू करने से पहले उन्होंने शुरुआत में पूर्व महाधिवक्ता और हाईकोर्ट के जज स्वर्गीय राजा एस. भोंसले के साथ काम किया। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के उनके एक सहयोगी के अनुसार, जस्टिस गवई ने कानून को अपना करियर इसलिए चुना क्योंकि यह उनके पिता का अधूरा सपना था।
1992ः नागपुर बेंच में अतिरिक्त सरकारी अभियोजक बने जस्टिस गवई ने संवैधानिक और प्रशासनिक कानून पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने नागपुर और अमरावती नगर निगमों, अमरावती विश्वविद्यालय और एसआइसीओएम और डीसीवीएल जैसे राज्य संचालित निगमों सहित कई नागरिक और शैक्षणिक निकायों का प्रतिनिधित्व किया। अगस्त 1992 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त सरकारी अभियोजक नियुक्त किया गया। बाद में वह उसी बेंच के लिए 2000 में सरकारी वकील और सरकारी अभियोजक बन गए।
2019: सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति जस्टिस गवई को 14 नवंबर 2003 को बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था और वह 2005 में स्थायी न्यायाधीश बने। उन्होंने मुंबई में हाईकोर्ट की मुख्य सीट और नागपुर, औरंगाबाद और पणजी की पीठों में भी कार्य किया। उन्हें 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया था।
अनुच्छेद 370 समेत कई अहम फैसलों में शामिल जस्टिस गवई शीर्ष अदालत में बीते कुछ वर्षों में अनुच्छेद 370 समेत कई अहम फैसले देने वाली संविधान पीठों में शामिल रहे हैं। ये सभी संविधान पीठ पांच सदस्यीय थीं। इन अहम फैसलों में प्रमुख रहे – दिसंबर 2023 में सर्वसम्मति से पूर्ववर्ती राज्य जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखा जाना, राजनीतिक फंडिंग के लिए चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करना, और केंद्र के 2016 के ₹1,000 और ₹500 मूल्यवर्ग के नोटों को बंद करने के फैसले को मंजूरी देना।