एक दिन रोहन ने फैसला किया कि वह मिठ्ठू के घर को फिर से पेंट करेगा। उसने अपनी गुल्लक तोड़ी और पेंट खरीद लाया। उसने डॉगी के घर को सही किया और पेंट किया। मिठ्ठू भी बहुत खुश था। कहानी से सीख मिलती है कि अपने पैट्स का खयाल रखना चाहिए।
अभिजीत भाटिया, उम्र-11वर्ष
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टॉमी का घर
एक लड़का था काव्य। उसके पास एक प्यारा सा डॉगी टॉमी था। वह उसकी खूब देखभाल किया करता था। एक दिन उसने सोचा क्यों न टॉमी के घर को पेंट किया जाए। वह जब ऐसा करने लगा तो टॉमी उछल-कूद करने लगा। यह देखकर उसके घरवाले बहुत खुश हुए। सबको यह देख अच्छा लगा कि उनके बेटे का मन कितना अच्छा है।
कितनी दया और प्यार है। काव्य ने टॉमी के घर को रंगने के बाद उसकी एक तस्वीर ली और उसे अपने दोस्तों को भेजा। सभी ने उसकी प्रशंसा की और सबक लिया वे भी जानवरों के प्रति दयाभाव रखेंगे।
योगित सहारण, उम्र- 9वर्ष
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सोनू और उसका नया दोस्त
एक दिन सोनू बाजार जा रहा था। रास्ते में उसे एक छोटा सा डॉगी मिला। वह डॉगी बहुत प्यारा और मासूम था। वह सोनू को देखकर पूंछ हिलाने लगा और धीरे-धीरे उसके पीछे-पीछे चलने लगा। सोनू को वह बहुत अच्छा लगा और दोनों की दोस्ती हो गई। सोनू ने डॉगी को गोद में उठाया और अपने घर ले आया। वह चाहता था कि डॉगी हमेशा उसके साथ रहे। लेकिन जैसे ही वह घर पहुंचा, उसकी मम्मी ने कहा, बेटा, इसे घर के अंदर मत लाओ।
घर में गंदगी हो जाएगी। सोनू थोड़ा उदास हो गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने अपने घर के गार्डन में डॉगी के लिए एक छोटा-सा घर बनाया। उसने लकड़ी और पुराने गत्तों से उसे सजाया और रंग भी किया। डॉगी को अब अपना नया घर मिल गया था। वह बहुत खुश था। सोनू हर दिन उसे खाना देता, उसके साथ खेलता और उसे प्यार करता। अब सोनू और डॉगी दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे। वे साथ खेलते, हंसते और एक-दूसरे का ख्याल रखते। सोनू ने सिखा दिया कि अगर मन में प्यार हो, तो हर समस्या का हल मिल ही जाता है।
नमन जलोदिया, उम्र-10वर्ष
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जीवों से प्यार
साहिल एक ग्यारह साल का समझदार और दयालु लड़का था। उसे पालतू जानवरों से बहुत लगाव था। उसके घर में कई छोटे-छोटे पालतू जानवर थे जैसे खरगोश, तोता और सबसे प्यारा उसका डॉगी पीकचु। साहिल और पीकचु में गहरी दोस्ती थी। दोनों हर समय साथ रहते, खेलते और एक-दूसरे की बात को समझते भी थे। धीरे-धीरे पीकचु बड़ा होने लगा। अब वह ज्यादा जगह चाहता था और बाहर दौडऩा-भागना पसंद करता था।
एक दिन साहिल ने सोचा, क्यों न पीकचु के लिए एक सुंदर सा डॉग हाउस बनाया जाए। उसने यह बात अपने मम्मी-पापा से कही और वे भी बहुत खुश हुए। साहिल ने कुछ लकड़ी के टुकड़े, रंग और पुराने कपड़े इक_े किए और पूरे मन से काम में लग गया। कुछ ही दिन में मेहनत और लगन से एक सुंदर सा डॉग हाउस तैयार कर दिया। जब साहिल ने पीकचु को उसके नए घर में ले जाकर बैठाया, तो वह पूंछ हिलाकर खुशी-खुशी झूमने लगा। शिक्षा- हमें जीवों से प्यार करना चाहिए। अगर हम दया और समझदारी से काम लें, तो बहुत से जानवर भी हमें उतना ही प्यार और अपनापन देते हैं।
अली हुसैन शेख, उम्र-11वर्ष
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अनजान डॉगी बना प्यारा साथी
एक दिन मैं और मेरे पिताजी बाजार से आ रहे थे। और हमने देखा कि एक डॉगी अपने लिए बारिश से बचने के लिए जगह ढूंढ रहा था और और वह बड़ा परेशान हो रहा था। जब मेरे पिताजी उसके पास गए तो वह बीमार सा लगा और मेरे पिताजी उसे डॉक्टर के पास ले गए और जब वह ठीक हो गया तो मैंने और मेरे पिताजी ने डिसाइड किया कि हम उसे घर लेकर आएंगे।
फिर मेरे मन में एक भाव आया कि जैसे मेरे पास एक घर है वैसे मेरे इस नए दोस्त के पास भी एक घर होना चाहिए। जहां वह बारिश, ठंड और गर्मी में आराम से रह सके। फिर मैंने मेरे दोस्त के नए घर का काम शुरू कर दिया। घर के ऊपर बहुत सुंदर-सुंदर कलर किया और जब उसका घर पूरी तरह तैयार हो गया तो उसमें ले जाकर बैठा दिया। उसकी दोस्ती ने मेरी जिंदगी को नया मोड़ दे दिया है।
अवनी शर्मा,उम्र-11वर्ष
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बिना स्क्रीन के असली खुशी
पांच साल का आरव दिनभर अपने गैजेट्स- मोबाइल, टैबलेट और टीवी में ही खोया रहता था। कार्टून, गेम्स और म्यूजिक से बाहर की दुनिया उसे बोरिंग लगती थी। लेकिन एक दिन उसके शहर में अचानक ब्लैकआउट का ऐलान हुआ- बिजली नहीं, इंटरनेट नहीं, स्क्रीन भी नहीं। आरव बहुत परेशान हो गया। अब क्या करूं? वो बड़बड़ाया।
पापा ने मुस्कुरा कर एक लाल रंग की बाल्टी और एक छोटा सा ब्रश उसके हाथ में दिया और कहा, चलो बेटा, आज बबलू डॉगी का हाउस नया बनाते हैं। पहले तो आरव ने मुंह बनाया, लेकिन जब ब्रश को रंग में डुबोकर पहली बार डॉग हाउस पर लगाया, तो उसे मजा आने लगा। बबलू अंदर से उसे देख रहा था। आरव के चेहरे पर एक अलग सी मुस्कान थी- बिना स्क्रीन के असली खुशी। उस दिन आरव ने सीखा, असली मजा स्क्रीन के बाहर की दुनिया में होता है।
सुयश व्यास, उम्र-9वर्ष
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डॉगी हाउस ने दी खुशी
एक लड़का था रवि। वह अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। कभी-कभी वह बड़ा अकेलापन महसूस किया करता था। एक दिन रवि ने सोचा कि क्यों न अपने प्यारे डॉगी टॉमी के घर को रंग दिया जाए। टॉमी का घर थोड़ा पुराना हो गया था और रवि चाहता था कि वह नया और सुंदर दिखे। फिर रवि ने ऐसा ही किया।
यह करते हुए जितना मजा रवि को आ रहा था, उतना ही डॉगी को भी आ रहा था। जैसे वे दोनों रंगों की दुनिया में खो गए हों। रवि और उसके बीच का प्यार और बढ़ गया। डॉगी हर समय रवि का ध्यान रखता और रवि उसका। इस तरह रवि की जिंदगी का अकेलापन भी दूर हो गया।
वीरेन गोयल, उम्र- 7 वर्ष
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जानवरों से प्रेम
एक छोटे से गांव में सिद्धार्थ नाम का एक लड़का रहता था। सिद्धार्थ जानवरों से बहुत प्यार करता था और उसके पास एक प्यारा सा डॉगी था जिसका नाम टॉमी था। टॉमी और सिद्धार्थ बहुत अच्छे दोस्त थे और वे हमेशा साथ खेलते थे। एक दिन सिद्धार्थ ने टॉमी के लिए एक नया घर बनाने का फैसला किया।
उसने लकडिय़ों को इकठ्ठा किया और एक छोटा सा घर बनाया । सिद्धार्थ ने टॉमी के घर को लाल रंग से रंगा। इसके बाद उसने सोचा क्यों न ऐसे कुछ और घर मोहल्ले में बना दिए जाएं, जिससे दूसरे डॉगी भी आराम से रह सकें। इसके बाद उसने ऐसा ही किया। पूरे मोहल्ले के डॉगी उसे देखते ही अपनी खुशी का इजहार करने लगते थे। यह देखकर मोहल्ले के बड़े लोगों के मन में जानवरों के प्रति दया भाव जाग गया। वे अवारा जानवरों की देखभाल करने में जुट गए।
सिद्धार्थ वर्मा, उम्र -11 वर्ष
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प्यारा साथी
एक दिन राहुल नाम का एक लड़का सड़क पर घूम रहा था। उसे एक एक प्यारा सा डॉगी सड़क पर मिला। वह बहुत उदास था। उसका मालिक उसे सड़क पर छोड़कर चला गया था। राहुल उसे अपने घर ले आया और उसका नाम टॉमी रखा। उसको अच्छी तरह से नहलाया-धुलाया। उसके माता-पिता ने टॉमी को घर में रखने से मना कर दिया।
राहुल ने सोचा क्यों न घर के बाहर गार्डन में उसके लिए घर बनाया जाए। उसने टॉमी के लिए घर बनाया और उसे पेंट किया। उसकी जानवरों के प्रति यह दया देख उसके माता-पिता का मन भी करुणा से भर उठा। उन्होंने टॉमी को पैट बना लिया। इस तरह उन सभी को एक प्यारा साथी मिल चुका था।
कविश भट्ट, उम्र-9 वर्ष
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घायल को मिला सहारा
एक दिन सूरज स्कूल से घर आ रहा था। रास्ते में उसे एक डॉगी का बच्चा घायल अवस्था में मिला। सूरज उसे अपने घर ले आया। सूरज ने उसका नाम मोती रखा। सूरज के स्कूल चले जाने के बाद मोती घर के दरवाजे पर बैठा बैठा एक टक सूरज की राह देखता रहता। सूरज के स्कूल से घर आने के बाद दोनों खूब खेलते।
सूरज की मां अपने बेटे को बाजार से सामान लाने भेजती, तो मोती उसके आगे आगे सुरक्षा कर्मी की तरह चल देता। सुबह जल्दी उठना, रात को देर तक दरवाजे पर बैठे-बैठे एक चौकीदार की तरह घर की रखवाली करना मोती का प्रतिदिन का काम हो गया। वर्षा के दिन आने वाले थे। सूरज ने अपने दोस्त मोती के लिए एक झोपड़ी बनाने का निश्चय किया, जहां मोती आराम से रह सके। सूरज की कड़ी मेहनत के बाद मोती के लिए झोपड़ी बनकर तैयार हो गई । मोती अपने लिए बनी झोपड़ी को देखकर खुशी से भौंकने लगा। सूरज ने झोपड़ी को लाल रंग से रंगा।
प्रियांशु जोशी, उम्र-12 वर्ष
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डॉगी को मिला आसरा
एक समय की बात है। एक शहर में मोहन नाम का एक बड़ा दयालु लड़का रहता था। एक दिन जब मोहन दूध लेकर घर जा रहा था तब उसने एक डॉगी को देखा, जिसे कुछ और बड़े डॉगी परेशान कर रहे थे। उसने पास ही में रखी एक लकड़ी को उठाकर उन बड़े डॉगी को भगा दिया।
तभी मोहन जो दूध घर लेकर जा रहा था उसने वह दूध उस छोटे डॉगी को पिला दिया और उसका नाम शेरू रखा। मोहन उसे अपने घर ले गया और अपनी मां को जब उसने यह किस्सा बताया तो उसकी मां ने उसकी सराहना करी और उसे उस डॉगी को अपने पास रखने की अनुमति दे दी। अगले ही दिन सुबह मोहन तैयार होकर शेरू के लिए घर बनाने के लिए कुछ लकडिय़ां और पेंट के डिब्बे ले आया। फिर ने उसने शेरू के लिए घर बना डाला। शेरू में यह देख बहुत खुश था।
आरव पारीक, उम्र- 13 वर्ष
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मदद का हाथ
एक डॉगी था। वह भूख से परेशान सड़क पर पड़ा हुआ था। एक लड़का राजू वहां से गुजर रहा था। उसकी नजर उस पर पड़ी। तो उसे दया आ गई। उसने उसे खाना खिलाया। और फिर अपने साथ घर ले आया।
उसके लिए घर बनाया। राजू के माता-पिता यह देख खुश हुए। उन्होंने उस डॉगी को अपने घर का पैट बना लिया। घर के सभी बच्चों को एक प्यारा दोस्त मिल गया था। सीख मदद का हाथ बढ़ाना चाहिए।
अनमोल, उम्र- 8 वर्ष