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Opinion : रूस के लिए संजीवनी: ट्रंप की शांति नीति या रणनीतिक चाल?

हाल में सामने आई रिपोर्टों के अनुसार, ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की पर रूस के साथ ज़मीन की अदला-बदली को लेकर समझौता करने का दबाव डाला है। यह खबर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े बदलावों की ओर संकेत कर रही है, जहां अमरीका की नई विदेश नीति पूरी तरह से बदली हुई नजर आ रही है।

जयपुरFeb 13, 2025 / 06:06 pm

Neeru Yadav

प्रो. आरके जैन ‘अरिजीत’
डॉनल्ड ट्रंप के अमरीका का राष्ट्रपति बनने के बाद वैश्विक राजनीति में भारी उथल-पुथल देखी जा रही है। विशेष रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर उनकी नई रणनीति सुर्खियों में बनी हुई है। हाल में सामने आई रिपोर्टों के अनुसार, ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की पर रूस के साथ ज़मीन की अदला-बदली को लेकर समझौता करने का दबाव डाला है। यह खबर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े बदलावों की ओर संकेत कर रही है, जहां अमरीका की नई विदेश नीति पूरी तरह से बदली हुई नजर आ रही है। ज़ेलेंस्की, जो अब तक रूस के किसी भी क्षेत्रीय दावे को सख्ती से खारिज करते रहे हैं, अब दबाव में आते हुए इस मुद्दे पर विचार करने को मजबूर हो सकते हैं। अगर ऐसा होता है, तो यह न केवल यूक्रेन की संप्रभुता के लिए एक बड़ा झटका होगा, बल्कि यूरोप और अमरीका के संबंधों पर भी दूरगामी असर डालेगा।
ट्रंप प्रशासन ने सत्ता में आते ही यह स्पष्ट कर दिया कि अमेरिका अब अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देगा और दूसरे देशों के युद्धों में खुद को झोंकने की नीति से पीछे हटेगा। उनका मानना है कि यूक्रेन को दी जा रही सैन्य और आर्थिक सहायता अमेरिका के संसाधनों पर भारी बोझ डाल रही है, और इसका कोई दीर्घकालिक लाभ नहीं है। यही कारण है कि वे रूस-यूक्रेन युद्ध को जल्द समाप्त करने के पक्षधर हैं, भले ही इसके लिए यूक्रेन को कुछ कठिन फैसले क्यों न लेने पड़ें। ट्रंप ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और ज़ेलेंस्की दोनों से बातचीत की है, जिसमें उन्होंने यह संकेत दिया है कि यदि यूक्रेन शांति चाहता है, तो उसे रूस के साथ बातचीत कर कुछ क्षेत्रीय रियायतें देने के लिए तैयार रहना होगा।
यूक्रेन के लिए यह स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण है। ज़ेलेंस्की शुरू से ही रूस के खिलाफ अडिग रुख अपनाए हुए थे और पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमरीका, से लगातार समर्थन की उम्मीद कर रहे थे। लेकिन ट्रंप की नई विदेश नीति उनके लिए एक बड़ा झटका साबित हो रही है। यदि अमरीका ने यूक्रेन को दी जाने वाली सहायता पर कटौती कर दी, तो उसे युद्ध में रूस के खिलाफ अकेले खड़ा रहना पड़ेगा, जो उसकी सैन्य और आर्थिक क्षमता को देखते हुए बेहद कठिन होगा। इस फैसले से यूरोपीय देशों में भी चिंता बढ़ गई है, क्योंकि वे अब तक अमरीका के साथ मिलकर यूक्रेन का समर्थन कर रहे थे। अगर अमरीका पीछे हटता है, तो यूरोप पर भी इसका भारी असर पड़ सकता है, और नाटो की सुरक्षा नीति में भी बदलाव देखने को मिल सकता है।
अमरीका की नई विदेश नीति का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन से दुर्लभ खनिज और महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी की मांग की है। यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप प्रशासन ने इस तरह की मांग रखी हो। इससे पहले भी उनके कार्यकाल में यह आरोप लगे थे कि उन्होंने यूक्रेन पर दबाव डालकर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों से जुड़ी जानकारी मांगी थी। इस बार, ट्रंप चाहते हैं कि यूक्रेन अमरीका को उन दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति करे जो रक्षा और तकनीकी उद्योगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। ऐसे खनिज, जिनका उपयोग उच्च तकनीक वाली सैन्य प्रणालियों, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऊर्जा भंडारण में किया जाता है, अमरीका की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। यह मांग दर्शाती है कि अमरीका अब यूक्रेन को केवल सैन्य सहायता देने के बदले उससे अपनी आर्थिक और रणनीतिक जरूरतों को पूरा करने की अपेक्षा कर रहा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए ट्रंप की रणनीति घरेलू राजनीतिक कारणों से भी प्रेरित हो सकती है। वे अपने समर्थकों को यह संदेश देना चाहते हैं कि वे अमरीका को अनावश्यक युद्धों से बाहर निकाल रहे हैं और देश के संसाधनों को बचाने के लिए काम कर रहे हैं। उनकी “अमरीका फर्स्ट” नीति के तहत वे अमरीकी करदाताओं के पैसे को विदेशी युद्धों में झोंकने के बजाय घरेलू विकास पर खर्च करना चाहते हैं। हालांकि, उनकी इस नीति की आलोचना भी हो रही है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अमरीका ने यूक्रेन का समर्थन कम किया, तो इससे रूस और अन्य तानाशाही प्रवृत्ति वाले देशों को आक्रामक होने का अवसर मिल सकता है। इससे वैश्विक शक्ति संतुलन प्रभावित हो सकता है और अमेरिका की विश्व स्तर पर नेतृत्व की भूमिका कमजोर हो सकती है।
यूरोप और नाटो देशों में भी इस नीति को लेकर गहरी चिंता है। अगर अमरीका अपने सहयोग से पीछे हटता है, तो यह न केवल यूक्रेन बल्कि पूरे यूरोप के लिए खतरा बन सकता है। नाटो के कई सदस्य देश मानते हैं कि ट्रंप की नीति से रूस को और बल मिलेगा और वह भविष्य में अन्य देशों के खिलाफ भी आक्रामक रुख अपना सकता है। इसके अलावा, चीन भी इस स्थिति का लाभ उठा सकता है और ताइवान जैसे मुद्दों पर अधिक आक्रामक रणनीति अपना सकता है। ट्रंप की नीति से अमरीका के पारंपरिक सहयोगी देश भी असमंजस में आ गए हैं कि क्या वे अब भी अमरीका पर पूरी तरह निर्भर रह सकते हैं या उन्हें अपनी स्वतंत्र सुरक्षा नीति बनानी होगी।
ट्रंप के पुनः राष्ट्रपति बनने के बाद वैश्विक राजनीति में रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। अमरीका की नवगठित रणनीति ने ज़ेलेंस्की को एक जटिल और चुनौतीपूर्ण परिस्थिति में ला खड़ा किया है। अब यह अत्यंत रोचक होगा कि वे इस नए परिदृश्य में किस प्रकार अपनी कूटनीतिक कुशलता का परिचय देते हैं और क्या वे रूस के साथ किसी संभावित समझौते के लिए तैयार होंगे। साथ ही, अमरीका की रूस-यूक्रेन नीति किस दिशा में विकसित होगी, यह न केवल अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहेगा, बल्कि यूरोप, रूस, चीन और शेष विश्व पर इसके व्यापक और दीर्घकालिक प्रभाव भी पड़ सकते हैं।

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