Opinion : डिजिटल युग में प्यार की परिभाषा और अभिव्यक्ति में बदलाव
हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने प्यार के विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए अनेक शोध किए हैं, जो इस भावना के पीछे के वैज्ञानिक आधार को उजागर करते हैं। आम धारणा के विपरीत, प्यार केवल एक भावनात्मक अनुभव नहीं है बल्कि यह पूरी तरह से एक जैविक और न्यूरोलॉजिकल प्रक्रिया है।
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योगेश कुमार गोयल
प्यार का मनोविज्ञान एक बेहद जटिल और बहुआयामी विषय है, जिसमें हमारे मस्तिष्क की रासायनिक प्रक्रियाएं, हार्मोनल बदलाव और न्यूरोलॉजिकल प्रतिक्रियाएं शामिल होती हैं। हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने प्यार के विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए अनेक शोध किए हैं, जो इस भावना के पीछे के वैज्ञानिक आधार को उजागर करते हैं। आम धारणा के विपरीत, प्यार केवल एक भावनात्मक अनुभव नहीं है बल्कि यह पूरी तरह से एक जैविक और न्यूरोलॉजिकल प्रक्रिया है। मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों में कुछ विशिष्ट रसायन और न्यूरोट्रांसमीटर प्रेम के दौरान सक्रिय होते हैं, जो इसे एक गहन अनुभव बनाते हैं। फिनलैंड की आल्टो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 55 प्रतिभागियों पर किए गए एक अध्ययन में छह प्रकार के प्यार (जैसे रोमांटिक प्रेम, माता-पिता का प्रेम आदि) के दौरान मस्तिष्क की गतिविधियों का विश्लेषण किया। इस अध्ययन में फंक्शनल मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एफएमआरआई) का उपयोग किया गया, जिससे पता चला कि हर प्रकार के प्रेम ने मस्तिष्क के अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न गतिविधियां उत्पन्न की। खासकर, माता-पिता का प्रेम मस्तिष्क की गहरी इनाम प्रणाली को सर्वाधिक सक्रिय करता है, जो अन्य प्रकार के प्रेम में कम प्रभावी होता है।
प्यार के दौरान मस्तिष्क में कई हार्मोन स्रावित होते हैं, जो हमारी भावनाओं और शारीरिक प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करते हैं। डोपामाइन को ‘खुशी’ हार्मोन कहा जाता है, जो इनाम प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और आनंद तथा उत्साह की भावना उत्पन्न करता है। ऑक्सीटोसिन, जिसे ‘लव हार्मोन’ कहा जाता है, सामाजिक बंधन और विश्वास को मजबूत करता है। ‘सेरोटोनिन’ मूड को नियंत्रित करता है और प्रेम में पड़ने पर इसका स्तर बदलता है। ‘एड्रेनालिन’ हृदय गति बढ़ाने और उत्तेजना की भावना पैदा करने में सहायक होता है। इन हार्मोन के प्रभाव के कारण प्रेम में पड़े व्यक्ति ऊर्जा में वृद्धि, भूख में कमी और नींद के पैटर्न में बदलाव जैसे शारीरिक प्रभावों का अनुभव कर सकते हैं। आकर्षण की अवस्था में डोपामाइन और नॉरएड्रेनालिन का स्तर बढ़ता है, जिससे उत्तेजना और ऊर्जा में वृद्धि होती है। लगाव की अवस्था में ऑक्सीटोसिन और वैसोप्रेसिन का स्राव बढ़ता है, जिससे दीर्घकालिक बंधन और प्रतिबद्धता मजबूत होती है। वैज्ञानिक अध्ययनों से यह भी पता चला है कि प्यार हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है। प्रेम में होने से तनाव का स्तर कम हो सकता है, जिससे हृदय स्वास्थ्य में सुधार होता है। प्रेमपूर्ण संबंध सामाजिक समर्थन प्रदान करते हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं। प्यार के दौरान मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर जैसे डोपामाइन और सेरोटोनिन का संतुलन बदल जाता है, जिससे व्यक्ति में खुशी, उत्साह और कभी-कभी बेचैनी की अनुभूति होती है। यह बदलाव इतना प्रभावशाली होता है कि वैज्ञानिक इसे एक तरह की ‘नशे जैसी स्थिति’ के रूप में भी देखते हैं।
कई शोधों में यह भी पाया गया है कि प्रेम संबंधों में असफलता या अलगाव के बाद मस्तिष्क में वही क्षेत्र सक्रिय होते हैं, जो शारीरिक दर्द के दौरान सक्रिय होते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्यार की कमी या ब्रेकअप व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को गहराई से प्रभावित कर सकता है। इसके अतिरिक्त, प्यार हमारे संज्ञानात्मक क्षमता और निर्णय लेने की प्रक्रिया पर भी असर डालता है। प्यार में पड़े व्यक्ति अक्सर अपने प्रियजन की कमियों को नजरअंदाज कर देते हैं और उन्हें पूर्णता की दृष्टि से देखते हैं। यह न्यूरोलॉजिकल प्रतिक्रिया मस्तिष्क के उन हिस्सों से जुड़ी होती है, जो नकारात्मक भावनाओं को नियंत्रित करते हैं। इसी कारण प्यार को अक्सर ‘अंधा’ कहा जाता है। प्रेम संबंध केवल रोमांटिक नहीं होते बल्कि मित्रता, माता-पिता और संतान के बीच का प्रेम, भाई-बहन का प्रेम और मानवीय करुणा भी इसके विभिन्न रूप हैं। प्रत्येक प्रकार के प्रेम में अलग-अलग जैविक और मानसिक प्रक्रियाएं शामिल होती हैं लेकिन उनका आधार न्यूरोलॉजिकल और हार्मोनल गतिविधियों से जुड़ा होता है। आधुनिक शोधों से यह भी ज्ञात हुआ है कि डिजिटल युग में प्यार की परिभाषा और उसकी अभिव्यक्ति में बदलाव आया है। ऑनलाइन डेटिंग, सोशल मीडिया और आभासी संपर्कों ने प्यार की अवधारणा को एक नई दिशा दी है। अब लोग अपने साथी को चुनने में न केवल भावनाओं बल्कि तर्क और डेटा का भी उपयोग करते हैं, जिससे प्यार की प्रक्रिया पहले की तुलना में अधिक जटिल हो गई है।
प्यार को अक्सर दिल से जोड़कर देखा जाता है जबकि वैज्ञानिकों का मानना है कि प्यार का मूल केंद्र मस्तिष्क है। किसी से अचानक प्यार हो जाना या उसे दिलोजान से चाहने लगना, यह सब मस्तिष्क में होने वाली रासायनिक क्रियाओं का परिणाम होता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, जवानी और बुढ़ापे दोनों में प्यार की अनुभूति जैविक प्रक्रियाओं के कारण होती है। यह भावना एक विशेष रासायनिक प्रतिक्रिया का नतीजा होती है, जिसमें व्यक्ति के प्रति आकर्षण उत्पन्न होता है। रटगर्स विश्वविद्यालय में किए गए एक शोध के अनुसार, पुरुषों और महिलाओं पर प्रेम के प्रभाव अलग-अलग होते हैं। पुरुषों में प्रेम संबंध अधिकतर शारीरिक पहलुओं को जागृत करता है जबकि महिलाओं में इसका भावनात्मक असर अधिक होता है। वहीं यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के वैज्ञानिकों ने पाया कि जब कोई व्यक्ति प्रेम में होता है तो मस्तिष्क नकारात्मक पहलुओं को दबा देता है और केवल सकारात्मक पक्षों पर ध्यान केंद्रित करता है। यही कारण है कि प्रेम को अंधा कहा जाता है।
कुछ मनोवैज्ञानिकों ने यह भी दावा किया है कि प्रेम की छह अलग-अलग श्रेणियां होती हैं। इनमें ‘रोस’ (शारीरिक आकर्षण पर आधारित प्रेम), ‘ल्यूडस’ (हल्का और खेल की तरह लिया जाने वाला प्रेम), ‘अगापे’ (निःस्वार्थ प्रेम), ‘मेनियक’ (अत्यधिक जुनूनी प्रेम), ‘प्रेग्मा’ (यथार्थवादी प्रेम), और ‘स्टॉर्ज’ (धीरे-धीरे विकसित होने वाला प्रेम) शामिल हैं। प्रेम का प्रकार इस बात पर निर्भर करता है कि इसमें कितनी गहराई और प्रतिबद्धता है। मस्तिष्क में स्थित हाईपोथेलेमस प्रेम संबंधी प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करता है। जब ‘डोपेमाइन’ और ‘नोरपाइनफेरिन’ की मात्रा बढ़ती है तो यह उत्तेजना और उमंग उत्पन्न करता है। यह न्यूरोट्रांसमीटर दो विपरीत लिंगियों (या कभी-कभी समलिंगियों) की मुलाकात के दौरान सक्रिय हो जाते हैं। डोपेमाइन आनंद की भावना को जन्म देता है जबकि ऑक्सीटोसिन लगाव बढ़ाता है। इसी प्रकार, एड्रेनालिन दिल की धड़कनें तेज करता है और वैसोप्रेसिन दीर्घकालिक संबंधों को मजबूत करता है।
न्यूयार्क की जानी-मानी समाजशास्त्री तथा मानव संबंधों की विशेषज्ञा डॉ. हेलन फिशर का मानना है कि प्रेम की भावना डोपेमाइन और नोरपाइनफेरिन से सीधे जुड़ी होती है। ये हार्मोन प्रेमियों में असाधारण ऊर्जा पैदा करते हैं और भूख तथा नींद को प्रभावित करते हैं। वहीं, ऑक्सीटोसिन और वैसोप्रेसिन सेक्स के बाद स्रावित होते हैं और आपसी जुड़ाव को बढ़ाते हैं। यही कारण है कि शारीरिक संबंधों के बाद भावनात्मक लगाव बढ़ जाता है। बहरहाल, प्रेम का मनोविज्ञान केवल भावनाओं तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह एक गहन जैविक प्रक्रिया है, जिसे समझने के लिए विज्ञान, मनोविज्ञान और न्यूरोलॉजी का व्यापक अध्ययन आवश्यक है। प्यार मानव अस्तित्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे समझकर हम अपने संबंधों को अधिक स्वस्थ और सार्थक बना सकते हैं।
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