सोशल मीडिया पर कंटेंट क्रिएशन की प्रतिस्पर्धा ने युवा पीढ़ी को एक अंधेरी कोठरी में ढकेल दिया है। इस पर दिए जाने वाले कमेंट न तो पढ़ने योग्य होते हैं न देखने लायक। यह न केवल संस्कृति को प्रदूषित कर रहे हैं बल्कि समाज में मानसिक प्रदूषण को फैला रहे हैं। – हरिप्रसाद चौरसिया, देवास
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने हमारे एक-दूसरे से संवाद करने के तरीके को बदल दिया है। भले ही अब हम तत्काल संदेश भेज सकते हैं, तस्वीरें और वीडियो साझा कर सकते हैं लेकिन सोशल मीडिया आने के बाद परिवार के सदस्य ही एक दूसरे से संवाद का समय नहीं निकाल पाते। – अजीतसिंह सिसोदिया, खारा बीकानेर
सोशल मीडिया पर भाषा की मर्यादा को लांघा जाता हैं। विचारणीय यह है कि आज के युवा इन्हें पढ़कर जीवन में क्या सीखेंगे, इसलिए सोशल मीडिया पर अमर्यादित चीजें बंद होनी चाहिए। – प्रियव्रत चारण
सोशल मीडिया पर परफेक्ट लाइफ दिखाने की होड़ ने नकलीपन और भौतिकवादी मानसिकता को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे सामाजिक रिश्ते कमजोर होते जा रहे हैं। हमारी सांस्कृतिक परंपराओं को सिर्फ व्यूज और कमाई के लिए तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया जा रहा है। लोग किसी भी ट्रेंड को पकड़कर उसी की नकल करने लगते हैं। भले ही उसमें अश्लीलता अपमानजनक भाषा या हिंसा भरी पड़ी हो। इसकी वजह से समाज में गलत संदेश पहुंच रहा है। लोग व्यूज और लाइक्स के चक्कर में बिना गुणवत्ता वाली सामग्री बनाकर डाल देते हैं। – मीना सनाढ्य, उदयपुर