असि- रक्षा करने के लिए अर्थात सैनिक कर्म
मसि – लिखने का कार्य अर्थात लेखन
कृषि – खेती करना अर्थात् अन्न उगाना
वाणिज्य- व्यापार से संबंधित
विद्या ज्ञान प्राप्त करने से संबंधित कर्म- गायन, वाद्य, चित्रकारी आदि
शिल्प- दस्तकारी अर्थात् मूर्तियों, नक्काशियों, भवनों इत्यादि का निर्माण।
इस तरह आदिनाथ का पूर्ण व्यक्तित्व प्रकट होने पर महाराज नाभिराय ने उनका राज्याभिषेक कर दिया। एक दिन दरबार में नर्तकी नीलांजना की नृत्य के दौरान मृत्यु होने से जब आदिनाथ को जीवन से वैराग्य हो गया तो उन्होंने जैन धर्म की दीक्षा ली तथा छह महीने का उपवास लेकर तपस्या प्रारम्भ कर दी। छह माह बाद जब उनकी तपस्या पूरी हुई, तब भी शरीर को भूख—प्यास की पीड़ा नहीं थी। लेकिन, वे आहार को निकले ताकि आने वाले समय में मुनिराजों को आहार के लिए पड़गाहन की विधि के बारे में श्रावकों को पता रहे एवं मुनिराज भी आगमानुसार आहारचर्या का पालन कर सकें।
इस बीच भगवान आदिनाथ को बिना आहार ग्रहण किए हुए 13 माह से अधिक हो गए थे। एक दिन वे भ्रमण करते हुए हस्तिनापुर पहुंचे । मुनिराज के आगमन का ज्ञात होने पर राजा सोमप्रभ एवं युवराज श्रेयांस कुमार दोनों मुनि ऋषभनाथ के पास आए। ऋषभनाथ को देखते ही श्रेयांस कुमार को जाति स्मरण हो गया एवं पूर्वभव में दिगंबर मुनि को दिए गए आहार का दृश्य सामने आ गया। प्रात:काल का समय था। नवधाभक्ति के साथ पड़गाहन करके श्रेयांस कुमार ने राजा सोमप्रभ एवं रानी लक्ष्मीमती के साथ ऋषभनाथ को आहार करवाया। प्रथम आहार के रूप में ऋषभनाथ को इक्षुरस का पान कराया। उन्होंने लगभग 13 माह से अधिक समय के बाद कुछ ग्रहण किया था, इसलिए इस दिन का महत्व बढ़ गया था। यह दिन वैशाख शुक्ल तृतीया थी जिसे आज अक्षय तृतीया के रूप में मनाया जाता हैं।
पूर्व भव का स्मरण कर राजा श्रेयांस ने जो दानरूपी धर्म की विधि संसार को बताई, उसे दान का प्रत्यक्ष फल देखने वाले भरत आदि राजाओं ने बहुत श्रद्धा के साथ श्रवण किया। लोक में श्रेयांस कुमार दानतीर्थ प्रवर्तक की उपाधि से विख्यात हुए। दान सम्बन्धित पुण्य का संग्रह करने के लिये नवधाभक्ति जानने योग्य है।
भगवान की ऋद्धि तथा तप के प्रभाव से राजमहल में बना भोजन अक्षीण (खत्म न होने वाला यानी अक्षय) हो गया था। अतः आज भी यह तिथि अक्षय तृतीया के नाम से लोक में प्रसिद्ध है।
ऐसा भी कथन है कि आहार दान देकर युवराज श्रेयांसकुमार ने अक्षय पुण्य प्राप्त किया था। अतः यह तिथि अक्षय तृतीया कहलाती है। इसी कारण अक्षय तृतीया को लोग इतना शुभ मानते है कि इस दिन बिना मुहूर्त, लग्नादि के विचार के ही अबूझ सावा( मुहूर्त) मानते हुए विवाह, नवीन गृह प्रवेश, नूतन व्यापार मुहूर्त आदि सभी शुभ कार्य करते हैं। मान्यता है कि इस दिन प्रारम्भ किया गया नवीन कार्य नियमतः सुफल देता है। अतः यह अक्षय तृतीया पर्व अत्यन्त उत्कृष्ट है है।