इन दौरों को समझने के लिए हमें तीन चीजों पर नजर डालनी होगी-‘महासागर’ (सुरक्षा और विकास के लिए आपसी सहयोग), ‘पड़ोस प्रथम’ नीति और ‘एक्ट ईस्ट’ नीति। ये तीनों नीतियां ऊपरी तौर पर मूल्यों पर आधारित लगती हैं, लेकिन इनके पीछे असल में व्यावहारिक रणनीति और अपने हितों की सोच काम कर रही है। इसे समझने के लिए दो प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान देना जरूरी है- एक कनेक्टिविटी यानी आपस में बेहतर जुड़ाव के नजरिए से और दूसरा, समुद्री रणनीति के दृष्टिकोण से। बिम्सटेक सम्मेलन में समुद्री परिवहन सहयोग पर एक अहम समझौता हुआ। इसके तहत बंगाल की खाड़ी में निर्बाध समुद्री परिवहन के लिए एक व्यापक ढांचा बनाने की योजना है। इससे न केवल व्यापार बढ़ेगा, बल्कि बंदरगाहों तथा परिवहन में निवेश होगा और क्षेत्र में आर्थिक मजबूती आएगी। बंगाल की खाड़ी समुद्री हितों के लिहाज से भारत के लिए बेहद अहम है, खासकर जब बात चीन के साथ मुकाबले की आती है। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए श्रीलंका यात्रा के दौरान भारत, श्रीलंका और यूएई के बीच त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं, जिसका उद्देश्य श्रीलंका के पूर्वी नगर त्रिंकोमाली में एक बहुआयामी ऊर्जा केंद्र बनाना है।
त्रिंकोमाली समुद्री व्यापार मार्गों के संदर्भ में एक अहम रणनीतिक केंद्र है। यह समझौता भारत के लिए हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने की दिशा में एक रणनीतिक कदम है। इसे चीन के श्रीलंका में बढ़ते प्रभाव, विशेषत: हंबनटोटा बंदरगाह परियोजना के संदर्भ में, को जवाब देने की एक कोशिश के रूप में देखा जाना चाहिए। संक्षेप में, चाहे समुद्री परिवहन सहयोग पर समझौता हो या त्रिंकोमाली समझौता, दोनों ही ‘कनेक्टिविटी’ को बढ़ाने वाले हैं, लेकिन इनमें भारत के समुद्री और सुरक्षा हितों को आगे बढ़ाने की रणनीतिक कूटनीति स्पष्ट झलकती है। हालांकि, इन कदमों को केवल रणनीतिक कूटनीति कहना अधूरी तस्वीर होगा, क्योंकि भारत की कूटनीति भू-सांस्कृतिक संबंधों के चौराहे पर भी क्रियाशील है। प्रधानमंत्री मोदी की श्रीलंका यात्रा के दौरान सांस्कृतिक कूटनीति की भूमिका भी प्रमुख रही। विशेष रूप से प्राचीन शहर अनुराधापुर की यात्रा इसका प्रमाण है। यह नगर भारत और श्रीलंका के साझा इतिहास का प्रतीक है।
श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत से श्रीलंका को मिला पहला उपहार ‘बौद्ध धर्म’ था। प्रधानमंत्री की इस यात्रा के दौरान भारत ने श्रीलंका के बौद्ध मठों के लिए सौर ऊर्जा परियोजना की घोषणा की, जो संस्कृति और पर्यावरण को जोड़ती है। इसके अलावा अनुराधापुर में प्रमुख रेलवे परियोजनाओं का उद्घाटन भी हुआ। ये कदम दिखाते हैं कि भारत की कूटनीति सिर्फ राजनीति या अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं, बल्कि सांस्कृतिक रिश्तों को भी मजबूत करती है। वैश्विक संक्रमणों के इस दौर में भारत अपने पड़ोस और उससे आगे की सोच को मजबूत कर रहा है। ये कदम न सिर्फ उसकी क्षेत्रीय नेतृत्व की आकांक्षाओं, बल्कि एक अधिक मुखर वैश्विक भूमिका की तैयारी को भी दर्शाते हैं। लेकिन एक कठोर सच्चाई यह भी है कि भारत के छोटे पड़ोसी अपनी आजादी और हितों को लेकर सतर्क हैं और भारत को अलग दृष्टिकोण से देखते हैं।
मिसाल के तौर पर बांग्लादेश के साथ रिश्ते बेहतर हो रहे हैं, लेकिन बंगाल की खाड़ी में भारत के हर कदम को वह चीन के संदर्भ में भी देखता है। वह अपने फायदे के लिए संतुलन बनाए रखना चाहता है। कुल मिलाकर, भारत अपनी क्षेत्रीय और वैश्विक भूमिका को मजबूत करने की राह पर है। बिम्सटेक और श्रीलंका के साथ हाल के कदम ‘पड़ोस प्रथम’ नीति और रणनीति का मिश्रण हैं। लेकिन भारत को यह भी ध्यान रखना होगा कि उसके पड़ोसी उसके हर कदम को किस नजर से देखते हैं। एक उभरती ताकत के तौर पर भारत को ऐसा रास्ता चुनना होगा, जो न सिर्फ उसके हितों को आगे बढ़ाए, बल्कि नैतिकता और संतुलन भी बनाए रखे।