मिट्टी को स्वस्थ बनाने के प्रयास से भारत को पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के अनुसार आगामी पांच वर्षों में 2.5-3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड घटाने की प्रतिबद्धता को पूरा करने में आसानी होगी। जीआइजेड इंडिया और काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) ने 100 से अधिक हितधारकों के साथ चर्चा करके सतत मृदा प्रबंधन के लिए एक राष्ट्रीय रोडमैप बनाया है, जो देश में मृदा स्वास्थ्य की पुनर्बहाली के लिए आवश्यक कार्रवाइयों के चार स्तंभों की पहचान करता है।
सबसे पहले, राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर विभिन्न विभागों में मृदा गतिविधियों को संस्थागत रूप देना चाहिए। अभी कृषि, ग्रामीण विकास, वन, पर्यावरण और उर्वरक जैसे कई मंत्रालय प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कृषि योग्य भूमि, चारागाह और वन पारिस्थितिक तंत्र जैसे भू-वर्गों की मिट्टी से जुड़े मामलों को देखते हैं। इनके मृदा कार्यों को सुव्यवस्थित करने और इनमें समन्वय लाने के लिए स्वच्छ भारत अभियान की तरह मृदा स्वास्थ्य के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक समर्पित अभियान चलाने की जरूरत है। इसमें संबंधित मंत्रालयों के लिए स्पष्ट मृदा स्वास्थ्य संकेतक और लक्ष्य शामिल करने चाहिए।
स्वस्थ मिट्टी से मिलने वाली विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं और पर्यावरणीय लाभों के बारे में समझ बढ़ाना जरूरी है। दूसरा, मिट्टी की सेहत दोबारा लौटाने के लिए समाज को सशक्त बनाना चाहिए। सतत उपायों, जैसे मल्चिंग (मिट्टी को ढकने की पद्धति) को व्यापक रूप से अपनाना जरूरी है, जो मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों को बढ़ाता है। नमी बनाए रखता है और खरपतवार रोकता है। ‘सॉइल चैंपिनयंस’ (माटी मित्रों) की पहचान व उन्हें सम्मानित करना, किसानों को अच्छी और स्थानीय स्तर पर उपयुक्त कृषि-पारिस्थितिकी पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकता है। स्थानीय निकायों को भी मृदा स्वास्थ्य को अपने कार्यों में शामिल करना चाहिए। उदाहरण के लिए मेघालय की ग्राम प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन समितियों जैसे मॉडलों को अन्य जगहों पर लागू किया जा सकता है।
तीसरा, मृदा स्वास्थ्य को हितधारकों की प्राथमिकता में लाने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन को जोडऩा चाहिए। प्रमुख हितधारकों में किसान, निजी क्षेत्र के उद्यम, स्थानीय संगठन और दानदाता शामिल हैं। किसान स्वस्थ मिट्टी की पद्धतियों (खासतौर पर उर्वरकों के संतुलित उपयोग और फसल अवशेषों को खेतों में मिलाना) को अपनाएं। इसके लिए सरकारों को वित्तीय प्रोत्साहन योजनाएं शुरू करनी चाहिए। हालांकि, पीएम-प्रणाम योजना का उद्देश्य उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना है, लेकिन यह राज्यों को प्रोत्साहन देती है, किसानों को नहीं। किसानों के स्तर पर भी ऐसी योजनाएं शुरू की जा सकती हैं। उदाहरण के लिए, पीएम-किसान जैसी मौजूदा योजनाओं के तहत सहायता की मात्रा को किसानों के मृदा प्रबंधन की गुणवत्ता से जोड़ा जा सकता है।
इसके अलावा, व्यावसायिक मूल्यांकनों और स्थिरता रिपोर्टिंग फ्रेमवर्क में मृदा स्वास्थ्य मापकों (मीट्रिक्स) को शामिल किया जा सकता है, जैसे कि सेबी की शीर्ष एक हजार सूचीबद्ध कंपनियों के लिए बिजनेस रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड सस्टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग (बीआरएसआर) है, जिसमें कई फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) खाद्य कंपनियां शामिल होती हैं। इससे मृदा स्वास्थ्य के प्रति निजी क्षेत्र की प्रतिबद्धता मजबूत हो सकती है और सतत उत्पादन व खरीद प्रथा बढ़ सकती है।
अंत में, मिट्टी की क्षेत्रीय चुनौतियों से निपटने के लिए नवाचार बढ़ाना और स्थानीय स्तर पर सफल उपायों के साक्ष्य जुटाना जरूरी है। स्थानीय नवाचारों को तलाशने और उन्हें बढ़ावा देने के लिए सरकारी तंत्र को पुनव्र्यवस्थित करने, मिट्टी से जुड़े स्थानीय नवाचारों का एक नेशनल डेटाबेस बनाने और स्वदेशी ज्ञान का लाभ उठाने जैसे कदम संदर्भ-विशेष के लिए उपयोगी नवाचारों को प्रोत्साहित कर सकते हैं। उद्यमिता बढ़ाने के लिए, अटल इनक्यूबेशन सेंटर जैसे इनक्यूबेशन सेंटर्स को कम खर्चीली मिट्टी परीक्षण किट और डेटा-संचालित मिट्टी प्रबंधन उपकरणों जैसे नवाचारों की मदद करने के लिए अलग से एक राशि चिह्नित करनी चाहिए। सेहतमंद मिट्टी भारत की खाद्य प्रणालियों, जलवायु लचीलापन और सार्वजनिक स्वास्थ्य की बुनियाद है। केंद्र और राज्य सरकारों को इसे एक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय संपत्ति मानकर उचित स्थान देना चाहिए, इसका प्रबंधन और इसमें निवेश करना चाहिए।