संपादकीय : संवेदनशील वक्त में शांति प्रयासों की ज्यादा जरूरत
ईरान व इजरायल के बीच संघर्ष में अमरीका के कूदने पर दोनों पक्षों का समर्थन व विरोध करने वाले देशों के रुख से वैश्विक तनाव बढऩे का खतरा हो गया है। अमरीका के ईरान पर किए गए हमलों को एक तरफ अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया जा रहा है वहीं दूसरी ओर अमरीका की तरफ […]


ईरान व इजरायल के बीच संघर्ष में अमरीका के कूदने पर दोनों पक्षों का समर्थन व विरोध करने वाले देशों के रुख से वैश्विक तनाव बढऩे का खतरा हो गया है। अमरीका के ईरान पर किए गए हमलों को एक तरफ अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया जा रहा है वहीं दूसरी ओर अमरीका की तरफ से कहा गया है कि उसका युद्ध ईरान के साथ नहीं बल्कि उसके परमाणु कार्यक्रम से है। ईरान के सहयोगी देशों की तरफ से जो प्रतिक्रियाएं आई हैं वे अभी नपी-तुली ही हैं। रूस और चीन का रुख भी अभी खुलकर सामने नहीं आया है। लेकिन यदि दुनिया की महाशक्ति कहे जाने वाले देश ईरान व इजरायल के इस संघर्ष में खुलकर सामने आ जाएं तो तीसरे विश्वयुद्ध की आहट से इनकार नहीं किया जा सकता।
पश्चिम एशिया में अमरीकी सैन्य अड्डों पर ईरान जवाबी हमले करता है तो अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने फिर बड़े हमले करने की चेतावनी पहले से ही दे दी है। रूस-यूक्रेन व ईरान-इजरायल के बीच लंबे समय से चल रहे युद्ध के नतीजे भी सबने देखे हैं। ईरान लगातार कहता रहा है कि इजरायल के पीछे शुरू से ही अमरीका का हाथ रहा है जो अब खुलकर सामने आ गया है। भारत सदैव शांति प्रयासों का पक्षधर रहा है। ईरान के राष्ट्रपति पजेशकियान से फोन पर संपर्क कर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कूटनीति व बातचीत से समस्या के समाधान की अपील की है।
यमन के हूती विद्रोहियों की उस चेतावनी को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता जिसमें उन्होंने कहा है कि यदि अमरीका जंग में कदम रखता है तो लाल सागर में उसके जहाजों को निशाना बनाया जाएगा। सब जानते हैं कि हूती विद्रोही ईरान के कट्टर सहयोगियों में शुमार है। जाहिर है खाड़ी में अमरीकी युद्धपोतों या उसके सैन्य ठिकानों पर हमला करने की जवाबी कार्रवाई हुई तो दूसरे कई संकट खड़े होने के आसार बन सकते हैं। बड़ा खतरा खाड़ी से तेल की आवाजाही बाधित होने का भी है। अगर ऐसा हुआ तो वैश्विक बाजार में पेट्रोल की कीमतें बढऩे का खतरा भी कम नहीं। यह खतरा इसलिए क्योंकि ईरानी संसद ने हॉर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने का प्रस्ताव पारित कर दिया है जो विश्व की तेल आपूर्ति का अहम मार्ग है। सबकी निगाह रूस और चीन के रुख पर भी है। हालांकि खुद लंबे समय से युद्ध के मोर्चे पर जूझ रहे रूस व अपने उत्पादों का बाजार तलाश रहे चीन की अपनी-अपनी मजबूरियां हैं।
जाहिर है ऐसे संवेदनशील वक्त में शांति प्रयासों की ज्यादा जरूरत है। संकट का राजनीतिक समाधान निकालना ही होगा। जनकल्याण के लिए खर्च होने वाले धन को युद्ध पर खर्च करना बुद्धिमता कतई नहीं कही जा सकती। संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था की भूमिका ऐसे वक्त में ज्यादा बढ़ जाती है जब तीसरे विश्व युद्ध का खतरा मंडराता दिख रहा हो। सबको यह समझना चाहिए कि युद्ध से किसी का भला होने वाला नहीं है।
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