संपादकीय : खिलाड़ियों को तराशने के काम में कटौती अनुचित
ओलंपिक खेलों में पदक जीतना हर खिलाड़ी का सपना होता है। यह भी सच है कि अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में मिली उपलब्धियों से देश का नाम भी ऊंचा होता है। दस साल पहले खेल मंत्रालय ने ओलंपिक पोडियम स्कीम के तहत खिलाड़ियों को तैयारियों के लिए सुविधाएं और वित्तीय सुविधाएं देना शुरू किया था। मकसद यही […]
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ओलंपिक खेलों में पदक जीतना हर खिलाड़ी का सपना होता है। यह भी सच है कि अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में मिली उपलब्धियों से देश का नाम भी ऊंचा होता है। दस साल पहले खेल मंत्रालय ने ओलंपिक पोडियम स्कीम के तहत खिलाड़ियों को तैयारियों के लिए सुविधाएं और वित्तीय सुविधाएं देना शुरू किया था। मकसद यही था कि हमारे खिलाड़ी ओलंपिक में अधिक से अधिक स्पर्धाओं में पदक जीत सकें। यह भी सच है कि खेलों में कामयाबी की कोई जादुई छड़ी नहीं है, लेकिन अवसर मिले तो पदक जीतना कोई मुश्किल काम नहीं। चिंता की बात यह है कि ओलंपिक पोडियम स्कीम में चयनित खिलाड़ियों की संख्या में कटौती से इन उम्मीदों को झटका लगने के आसार बने हैं। पिछले साल पेरिस ओलंपिक में केवल छह पदक भारत की झोली में आने के बाद से ही लगने लग गया था कि ओलंपिक पोडियम स्कीम में कटौती होने वाली है। पेरिस में भारत के 117 एथलीटों ने हिस्सा लिया और सिर्फ छह ने ही पदक जीते। तब ही खेल मंत्रालय ने खिलाड़ियों को बाहर करने के संकेत दिए थे, लेकिन अब इसे अमलीजामा पहना दिया गया है। अब ओलंपिक पोडियम स्कीम में शामिल किए गए खिलाड़ियों की संख्या 120 से घटाकर 42 कर दी गई है। माना जा रहा है कि इससे सरकार का खर्च 70 प्रतिशत तक कम हो जाएगा।
वैसे तो कहा यह जाता है कि किसी एक विफलता का जवाब देने के लिए अगली बार दोगुनी ताकत से सफलता के प्रयास करने चाहिए। यह ताकत मेहनत, प्रैक्टिस और धन सभी रूप में लगती है। वहीं किसी भी योजना का फायदा तब ज्यादा होता है, जब यह लंबी अवधि की हो। क्योंकि इसमें लक्ष्य एक ओलंपिक नहीं होता। संभावनाओं वाले खिलाड़ियों की एक खेप हटते ही क्षमता वाले दूसरे खिलाड़ियों की टोली उनका स्थान लेने आ जाती है। इससे हर ओलंपिक में देश की पदक जीतने की संभावनाएं बनी रहती हैं। बजट और वित्तीय प्रोत्साहन में कटौती से आने वाले ओलंपिक खेलों में हमारा ग्राफ और नीचे आ जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हमारे यहां इस स्कीम में सिर्फ 470 करोड़ रुपए खर्च हो रहे थे। जबकि अमरीका, चीन और ब्रिटेन जैसे देश भारत से पचास गुना ज्यादा तक खिलाड़ियों को तैयार करने में धन खर्च कर रहे हैं। प्रतिभावान खिलाडिय़ों की यथाशीघ्र पहचान, उन्हें तराशने और एडवांस ट्रेनिंग के तहत कई काम करने पड़ते हैं। ओलंपिक सर्वश्रेष्ठ में से श्रेष्ठतम के बीच मुकाबला होता है। इस अवधारणा पर चलने से ही ओलंपिक में पदक जीते जा सकते हैं। खेल मंत्रालय को इस योजना में कटौती पर पुनर्विचार करना चाहिए ताकि देश खेलों में बेहतरीन प्रदर्शन कर पाए।
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