केरल के सम्पूर्ण डिजिटल साक्षरता मॉडल को पूरे भारत में अपनाने की जरूरत


भारत एक विशाल और विविधताओं से सम्पन्न राष्ट्र है, जो तीव्रता से डिजिटल युग की ओर कदम बढ़ा रहा है। सरकार द्वारा चलाए जा रहे ‘डिजिटल इंडिया’ जैसे अभियान भारत को तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रहे हैं। यद्यपि, आज भी देश के अधिकांश ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता की कमी एक बड़ी बाधा बनी हुई है तथापि केरल राज्य ने सम्पूर्ण डिजिटल साक्षरता प्राप्त कर इस दिशा में एक अभूतपूर्व उदाहरण प्रस्तुत किया है। यद्यपि इसकी अभी आधिकारिक घोषणा होना शेष है फिर भी यह उल्लेखनीय है कि इस अभियान में केरल राज्य ने लगभग 21 लाख लोगों को डिजिटल साक्षर किया है। यह उपलब्धि न मात्र तकनीकी दृष्टि से अपितु सामाजिक, आर्थिक, औद्योगिक और शैक्षिक दृष्टिकोण से भी अहम है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि यदि केरल राज्य का यह मॉडल पूरे भारत में लागू किया जा सके तो इसके दूरगामी परिणाम दिखाई दे सकते हैं और हमारे विकसित भारत के स्वप्न को पंख लगा सकते हैं।
केरल ने डिजिटल साक्षरता को एक व्यापक और समावेशी अभियान के रूप में लिया, जिसमें समाज के हर वर्ग को सम्मिलित किया गया। स्वयं सहायता समूह द्वारा प्रारंभ किए गए इस कार्य की शुरुआत ‘डिजी केरल’ परियोजना से हुई, जो देश की पहली ग्रामीण डिजिटल साक्षरता योजना कही जा सकती है। इस योजना के अंतर्गत राज्य भर में 21 लाख से अधिक डिजिटल असाक्षर नागरिकों की पहचान कर उनको कंप्यूटर, इंटरनेट और डिजिटल सेवाओं का सफल प्रशिक्षण दिया गया। यह रेखांकित करना उचित होगा कि राज्य का यह भागीरथी प्रयास के जरिए न केवल राज्य के कोने कोने में डिजिटल शिक्षा प्रदान की जा रही है, अपितु सरकार की ई-गवर्नेंस सेवाओं को भी आम जनता तक पहुंचाने में सार्थक योगदान कर रहे हैं।
इस अभियान की एक और विशेषता यह है कि इसमें महिलाओं की भागीदारी को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया गया। कुदुम्बश्री जैसे महिला सशक्तीकरण समूहों को डिजिटल प्रशिक्षण देकर उन्हें उनके समुदायों में डिजिटल साक्षरता फैलाने का दायित्व सौंपा गया। इससे न केवल तकनीकी ज्ञान का प्रसार हुआ, अपितु महिलाओं की सामाजिक भूमिका भी सुदृढ़ हुई। इसके अतिरिक्त, केरल ने यह भी सुनिश्चित किया कि हर आयु वर्ग के लोगों को यह ज्ञान व कौशल प्राप्त हो-चाहे वह विद्यार्थी हो, गृहिणी हो, मनरेगा कामगार हो, कृषि से जुड़े युवा हो या बुजुर्ग।
केरल की इस सफलता का सबसे बड़ा कारण उसकी उच्च साक्षरता दर और शिक्षा प्रणाली में तकनीक की पहले से उपस्थित स्वीकार्यता है। निसंदेह राज्य सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति भी इस अभियान को गति देने में प्रमुख भूमिका निभाई है। इसके अतिरिक्त, सामाजिक भागीदारी और तकनीकी ढांचे की सुगमता से उपलब्धता ने इस अभियान को जन आंदोलन का स्वरूप दे दिया। स्थानीय निकायों और स्वयंसेवी संगठनों ने भी इस प्रयास में उत्साहपूर्वक भाग लिया।
अब प्रश्न यह है कि इस मॉडल को पूरे भारत में कैसे लागू किया जा सकता है। भारत जैसे विविधता प्रधान देश में किसी एक मॉडल को सीधे लागू करना न तो संभव होगा न ही उचित होगा। अत: सवर्प्रथम प्रत्येक राज्य को अपनी स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार इस मॉडल को ढालना होगा। कुछ राज्यों में भौगोलिक बाधाएं हैं तो कुछ में सामाजिक-पारिवारिक रूढिय़ां। इन सभी को ध्यान में रखकर डिजिटल शिक्षा कार्यक्रमों को तैयार करना होगा।
ग्रामीण भारत में इंटरनेट की पहुंच अब भी सीमित है, इसलिए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को और सशक्त करना आवश्यक है। भारतनेट जैसी योजनाओं को तेज गति से क्रियान्वित करना होगा, जिससे हर पंचायत स्तर पर ब्रॉडबैंड सुविधा सरलता से उपलब्ध हो सके। इसके साथ ही, हर जिले और ब्लॉक में स्थानीय डिजिटल प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना की जानी चाहिए।
डिजिटल साक्षरता को बढ़ाने के लिए महिलाओं, युवाओं और किसानों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। विशेषकर महिला स्वयं सहायता समूहों और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करके उन्हें अपने समुदायों में प्रशिक्षण कार्य में लगाया जा सकता है। इससे समाज में डिजिटल जागरूकता का वातावरण बनेगा और तकनीक का समावेश तेजी से होगा। शिक्षण संस्थानों की सक्रिय भागीधारी इस अभियान में क्रांतिकारी सिद्ध हो सकती है। स्थानीय तकनीकी संस्थान अपने विधार्थियों को समय समय पर आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षण के लिए प्रेरित कर सकते हैं। इससे युवा विद्याॢथयों को अपने सामाजिक दायित्व निवर्हन का भी भान हो सकेगा।
सरकार को निजी संस्थानों और गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर सार्वजनिक-निजी भागीदारी के अंतर्गत इस अभियान को सफल करने के लिए नित नवाचार करने के प्रबल प्रयास करने होंगे। निजी क्षेत्र तकनीकी कौशल, ज्ञान, सामग्री और संसाधनों के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। इसके अतिरिक्त, यह नितांत आवश्यक कि है डिजिटल साक्षरता की सामग्री व संसाधन स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध हो, जिससे आम नागरिक उसे सहजता से उसे समझ व प्रयोग कर सकें।
इन प्रयासों के मध्य यह भी आवश्यक है कि कार्यान्वयन की निगरानी और मूल्यांकन की सुदृढ़ व्यवस्था बनाई जाए। यदि किसी राज्य में यह योजना अपेक्षाकृत धीमी गति से आगे बढ़ रही हो तो समय रहते सुधारात्मक कदम उठाने के लिए प्रयास करने होंगे। यही नहीं, लोगों की सामाजिक मानसिकता में भी परिवर्तन लाने की आवश्यकता है जिससे वे तकनीक को सुगमता से स्वीकार कर सके।
इस प्रयास में कुछ चुनौतियां अवश्य होंगी। कुछ राज्य संसाधनों की कमी से जूझ सकते हैं, तो कहीं तकनीकी प्रशिक्षकों की उपलब्धता एक समस्या हो सकती है। अनेक समुदायों में बुजुर्गों और रूढि़वादी सोच के चलते तकनीक अपनाने में कठिनाई हो सकती है। परन्तु सरकार, समाज, निजी और अन्य हितधारक इस क्षेत्र में मिलकर योजनाबद्ध तरीके से कार्य करें, तो यह कार्य असंभव भी नहीं है।
अंतत: कहा जा सकता है कि केरल का डिजिटल साक्षरता मॉडल भारत के लिए एक आदर्श उदाहरण है। यह न केवल तकनीकी दृष्टि से अपितु सामाजिक समावेशन के स्तर पर भी अत्यंत प्रभावशाली व लाभकारी है। भारत के ‘डिजिटल इंडिया’ स्वप्न को मूर्त रूप देना है तो अन्य राज्यों को केरल से सीख लेकर, स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार योजनाओं को ढालकर, और समाज के प्रत्येक वर्ग की भागीधारी से डिजिटल साक्षरता के इस आंदोलन का पूरे देश में प्रचार प्रसार करना होगा। तभी भारत एक सशक्त और समावेशी डिजिटल राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ सकेगा।
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