scriptकुंभ मेला: आस्था से परे वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और मानवीय चेतना का संगम | Kumbh Mela: A confluence of scientific, spiritual and human consciousness beyond faith | Patrika News
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कुंभ मेला: आस्था से परे वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और मानवीय चेतना का संगम

प्रो. डी.पी शर्मा, अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक, संयुक्त राष्ट्र से जुड़े डिजिटल डिप्लोमेट एवं स्वच्छ भारत मिशन के प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय ब्रांड एम्बेसडर

जयपुरJan 13, 2025 / 02:36 pm

Patrika Desk

भारत में कुंभ मेला, यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त अमूर्त सांस्कृतिक विरासत है, जो पृथ्वी पर सबसे बड़े मानव समागमों में से एक है। चार स्थानों – हरिद्वार, इलाहाबाद (प्रयागराज), नासिक और उज्जैन में चक्रीय रूप से होने वाला यह आध्यात्मिक उत्सव अर्थात संगम अपनी धार्मिक जड़ों एवं मान्यताओं से आगे बढ़कर विज्ञान, आध्यात्मिकता और सामाजिक प्रभाव के धागों को शान्ति और सौहार्द ताने बाने को एक साथ बुनता है। जैसे-जैसे हम इस कालातीत संगम की गहराई में उतरते हैं, तो पाते हैं कि इसकी प्रासंगिकता अनुष्ठानिक सीमाओं से कहीं आगे तक फैली हुई है, जो समकालीन दुनिया के लिए एक गहन चिंतन, मनन, मंथन और शोध आधारित अध्ययन का विषयवस्तु हो सकती है ।
यूं तो महाकुंभ मेला, भारत में सनातन संस्कृति की प्राचीनता और हिंदू तीर्थयात्रियों का एक विशाल संगम है, परन्तु इन सबके परे यह अपने धार्मिक महत्व से बाहर निकल कर एक वैज्ञानिक सोच को भी उत्पन्न करता है जिसकी जांच के लिए दुनिया को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की जरुरत है । इस संगम की खगोलीय प्राचीनता और उसके धार्मिक, सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक महत्व पर एक अद्वितीय वैज्ञानिक दृष्टि प्रदान करना आज समय की आवश्यकता है ताकि इस संगम की पीछे छुपे रहस्यों और खगोलीय वैज्ञानिता के पहलुओं को उजागर किया जा सके कि हजारों साल पहले जब न आधुनिक विज्ञान था और न ही आधुनिक खगोल विज्ञान, कहीं दुनिया विज्ञान के एक उच्‍च पड़ाव को छूकर वापस जीरो से विकास के मार्ग पर तो नहीं बढ़ी ?
पौराणिक मान्यताओं और आध्यात्मिक चेतनाओं में गहराई से निहित होने के बावजूद, यह संगम विभिन्न विषयों में अनुसंधान के लिए अनेक आकर्षक अवसर प्रस्तुत करता है और यही कारण है कि हजारों सनातन संस्कृति के धर्मावलंबी ना होते हुए भी विशेष रूप से अमेरिका एवं यूरोपियन समुदाय के लोग भी इस महापर्व का सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक आनंद लेने के लिए भारत आते हैं और वैश्विक मैगा प्रबन्धन के इस धार्मिक मॉडल को आधुनिक शोध एवं वैज्ञानिकता के चश्मे से देखकर जाते हैं ।
खगोल विज्ञान और आकाशीय यांत्रिकी
ज्योतिषीय आधार: महाकुंभ का समय ज्योतिषीय गणनाओं, विशेष रूप से खगोलीय पिंडों के संरेखण से जटिल रूप से जुड़ा हुआ है जो आध्यात्मिक अभ्यासों के लिए शुभ ऊर्जाएं पैदा करने के लिए माना जाता है। अर्थात यह संगम यह दर्शाता है कि किस प्रकार सौरमंडल के खगोलीय पिंड एक विशेष अवस्था में पहुंचकर जल और जीवन को प्रकृति एवं परमात्मा से जोड़कर सनातन संस्कृति में महा पर्व का रूप धारण कर लेते हैं।
वैज्ञानिक अन्वेषण: वैज्ञानिक एवं गणितीय संकल्पनाओं से परिपूर्ण होने के बावजूद अभी तक ज्योतिष को स्वयं एक वैज्ञानिक पद्यति नहीं माना जाता है, फिर भी ज्योतिष में अंतर्निहित खगोलीय सिद्धांत – ग्रहों की स्थिति, आकाशीय चक्र – वैज्ञानिक जांच के लिए एक आकर्षक रूपरेखा प्रदान करते हैं। यहाँ पर ये कहना तर्क संगत होगा कि विज्ञान तो खुली दृष्टि से विविध सिद्धांत और विधाओं को सत्य की कसौटी पर परखने के अवसर प्रदान करता है परन्तु भारतीय प्राचीन ज्ञान, विज्ञान, चिकित्सा और खगोल शास्त्र के बारे में विज्ञान (विशेष रूप से पश्चिम पोषित) इतना संकीर्ण एवम पक्षपाती क्यों हो जाता है ?
संभावित शोध: वर्तमान विज्ञान आधारित शोध अध्ययन आखिर इन ज्योतिषीय गणनाओं की ऐतिहासिक सटीकता, खगोलीय घटनाओं के साथ उनके संबंध और भारतीय संस्कृति के भीतर इन खगोलीय अवलोकनों के विकास का पता लगाने में एक नवीन शोध की अवधारणा को पैदा क्यों नहीं करता? आखिर वैज्ञानिक आज भी संकीर्णता के चक्र से बाहर क्यों नहीं आना चाहते। विज्ञान हर अवधारणा या सिद्धांत को वैज्ञानिक तथ्यों एवं सत्यों से परखता है तो फिर परख के बाद किसी अवैज्ञानिक या वैज्ञानिक पद्धति का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सत्यापन क्यों नहीं करते? सच्चाई तो यह है कि वैज्ञानिक सत्यापन से दूर भागना स्वयं ही वैज्ञानिक पद्धति की अवहेलना करना है । वैश्विक वैज्ञानिकों के समुदाय को इस संकीर्णता से बाहर निकलकर संगम की अन्तर्निहित वैज्ञानिकता को दरकिनार करने के बजाय उसके वैज्ञानिक एवं अवैज्ञानिक रहस्यों से पर्दा उठाना चाहिए ।
समाजशास्त्र, विज्ञान और मानव व्यवहार
सामूहिक सभाएं: महाकुंभ संगम ज्ञानोचित लोकतंत्र हेतु तार्किक संवाद का मंच प्रदान करने के लिए एक विशाल मानव सभाओं की गतिशीलता का अध्ययन करने हेतु एक अद्वितीय अवसर भी प्रदान करता है । यहां साधना प्रेमी, ज्ञान प्रेमी, विज्ञान प्रेमी, संस्कार प्रेमी, संस्कृति प्रेमी और साधक एक साथ तर्क, वाद, विवाद और लोकतान्त्रिक एवं वैज्ञानिक नियमों की सीमाओं में बड़ी बड़ी समस्याओं का हल भी निकाल सकते हैं ।
अनुसंधान क्षेत्र: कुंभ मेले का समय सटीक खगोलीय गणनाओं द्वारा निर्धारित किया जाता है, जो बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा के विन्यास के साथ संरेखित होता है। यह संरेखण ब्रह्मांडीय सद्भाव का प्रतीक है, जो प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान और आध्यात्मिक प्रथाओं के बीच तालमेल को दर्शाता है। आधुनिक विज्ञान इन गणनाओं की ऐतिहासिक सटीकता पर आश्चर्यचकित हो सकता है, जो परिष्कृत खगोलीय उपकरणों के अस्तित्व में आने से सदियों पहले की गई थी। कुम्भ यह भी दर्शाता है कि जल, जीवन, जलवायु और ऊर्जा पर खगोलीय पिंडों की स्थिति एवं अवस्थिति का क्या प्रभाव पड़ता है? और मानव जीव विज्ञान इन खगोलीय समय सारिणियों को किस प्रकार अपने जीवन की संस्कृति का हिस्सा बनाकर प्रसन्न, संस्कारी एवं प्रगतिमय जीवन सकता है, यही तो मूलमंत्र है इस संगम का । अनेकों वैश्विक विश्वविद्यालयों जैसे अमेरिका के हार्वर्ड ग्रेजुएट स्टडी ऑफ़ डिज़ाइन के शोधार्थिओं ने तो स्पष्ट निष्कर्ष निकाला है कि “गंगा और यमुना नदियों के संगम पर पहली सहस्राब्दी ई.पू. की शुरुआत में अपनी शुरुआत के बाद से, कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा सार्वजनिक संगम बन गया है।
भीड़ का व्यवहार: लोगों के बड़े समूह विषम परिस्थितियों में कैसे नेविगेट करते हैं, बातचीत करते हैं और संसाधनों का उपयोग एवं प्रबंधन करते हैं। महाकुंभ जैसा दुनिया का कोई भी धार्मिक संगम नहीं हो सकता जिसमें बहुआयामी प्रबंधन को प्राचीनता एवं नवीनता के प्रबंध विशेषज्ञों एवं वैज्ञानिकों द्वारा न केवल व्यवस्थित किया जाता है बल्कि विश्लेषित भी किया जाता है ताकि दुनिया को विज्ञान एवं प्रबंधन के इस अनूठे मॉडल से अवगत कराया जा सके ।
सामाजिक संगठन: कुंभ मेला परिवेश के भीतर अस्थायी समुदायों, सामाजिक नेटवर्क और पदानुक्रम का सहज गठन इस प्रकार किया जाता है कि धार्मिक नियम और पदक्रम के सारे मानकों को धर्म और संस्कृति के हिसाब से प्रबंधित किया जा सके। एक शोध बताता है कि यह अनूठा कुंभ मेला भारत के प्रयागराज शहर में भूमि उपयोग को बदलने, कुंभ मेले से जुड़े जोखिमों की पहचान करने, बिग डाटा टेक्नोलॉजी से मेले में संक्रामक रोगों को मैप करने के लिए सेल फोन डेटा का उपयोग करने एवं कुंभ मेला क्षेत्र में अस्पतालों, सफाई व्यवस्था, बाजारों और पुलिस के साथ एक समन्वय स्थापित करने के प्राचीन एवं आधुनिक मॉडल के कन्वर्जिंग मॉडल के अनुसार काम करता है । कुंभ मेले का विशाल आकार भीड़ प्रबंधन और आपदा तैयारियों के लिए एक केस स्टडी भी रहा है। हार्वर्ड के साथ एमआईटी जैसे संस्थानों के शोधकर्ताओं ने मानव व्यवहार, भीड़ की गतिशीलता और अस्थायी शहरी नियोजन के बारे में जानकारी के लिए मेले का विश्लेषण किया है। लाखों तीर्थयात्रियों का सफल प्रबंधन वैश्विक स्तर पर बड़े पैमाने पर होने वाले आयोजनों के लिए मॉडल प्रस्तुत करता है, जिसमें सहयोगी शासन और तकनीकी नवाचार पर जोर दिया जाता है।
महाकुंभ संगम मेला, हालांकि मुख्य रूप से एक धार्मिक आयोजन है, मगर अंतःविषय वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए यह एक अनूठा अवसर भी प्रदान करता है। इस असाधारण संगम के खगोलीय, समाजशास्त्रीय, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय पहलुओं का अध्ययन करके, हम मानव व्यवहार, सामाजिक गतिशीलता और बड़े पैमाने पर घटनाओं के प्रबंधन की चुनौतियों में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं। यह संगम वैज्ञानिक सटीकता, आध्यात्मिक गहराई और सामाजिक समावेशिता का एक संगम यानी अर्थ, सद्भाव और अपनेपन की सार्वभौमिक खोज को भी दर्शाता है। जब दुनिया पारिस्थितिक संकटों, सामाजिक विभाजनों और अस्तित्व संबंधी सवालों से जूझ रही है, तब कुंभ संगम मेला एक वैश्विक सीख देता है कि ” मानवता तब पनपती है जब वह अपनी जड़ों से जुड़ती है, प्रकृति का सम्मान करती है और विविधता में एकता को बढ़ावा देती है ।”

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