scriptपत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – पुरुष प्रधान शिक्षा | Patrika Group Editor In Chief Gulab Kothari Special Article On 17th June 2025 Male Dominated Education | Patrika News
ओपिनियन

पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – पुरुष प्रधान शिक्षा

आजादी के बाद 75 साल में तीन पीढ़ियां बदल गईं। देश में जो स्थितियां उस वक्त थी, आज नहीं है। संस्कृति का स्वरूप जो आज है, जिस सभ्यता के दौर से हम गुजर रहे हैं, स्त्रियों के साथ जो आसुरी कृत्य हो रहे हैं, क्या उसे हम विकास कहने को तैयार हैं?

जयपुरJun 17, 2025 / 07:55 am

Gulab Kothari

editor-in-chief of Patrika Group Gulab Kothari

पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी (फोटो: पत्रिका)

गुलाब कोठारी

आजादी के बाद 75 साल में तीन पीढ़ियां बदल गईं। देश में जो स्थितियां उस वक्त थी, आज नहीं है। संस्कृति का स्वरूप जो आज है, जिस सभ्यता के दौर से हम गुजर रहे हैं, स्त्रियों के साथ जो आसुरी कृत्य हो रहे हैं, क्या उसे हम विकास कहने को तैयार हैं? जो कुछ परिवर्तन हुआ, उसका एकमात्र कारण वर्तमान शिक्षा ही कही जाएगी। शिक्षा शब्द में और शिक्षा के परिणामों में पूर्ण विरोधाभास है। शिक्षा ने नौकरियों का झांसा दिया है। देश की संस्कृति को लूटा है। एक संतुलित जन्मजात मानव को असंतुलित करके जीवन को अव्यवस्थित ही किया है।
शिक्षा और शिक्षा की व्यवस्था दोनों ही अनुकूल नहीं है। न शिक्षा मानवता का निर्माण कर रही है, न ही देश की संस्कृति का पोषण ही कर रही है। एक कहावत है-कौआ चला हंस की चाल, अपनी चाल भी भूला। हम नकल के जोश में, ग्लैमर में, भूल-भुलैया में अपना सर्वस्व लुटा रहे हैं और गौरवान्वित हो रहे हैं। जिन अधिकारियों के हाथों नीतियाें का निर्माण और क्रियान्वयन सौंपा है, उनको पहले हम विदेशी चश्मों से देखना सिखाते हैं। आत्मा से दूर करते हैं। वे इस देश के सगे साबित नहीं हुए। शासक बन बैठे।
शिक्षा नीति का पहला दोष यह है कि यह चरित्र निर्माण नहीं करती। उच्च शिक्षा तो शुद्ध विषयों पर आधारित है। उसमें जीवन की चर्चा ही नहीं है। जैसे धर्म निरपेक्षता के नाम पर संविधान में से धार्मिक चित्र हटा दिए गए, उसी प्रकार शिक्षा भी धर्मशून्य हो गई। दूूसरी ओर धर्म के नाम पर सरकारी छुट्टियों का अम्बार लग गया है। ऐसी सभी छुट्टियां ऐच्छिक होनी चाहिएं।
यह भी पढ़ें

पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – आगे बढ़ने से पहले

गांवों में स्कूल नहीं, कस्बों में बड़े स्कूल नहीं। बच्चों को दूसरे स्थानों पर पढ़ने जाना पड़ता है। जाने के लिए साधन नहीं। नई जगहों पर समुचित छात्रावास नहीं। छात्राओं की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं। ‘नैपकीन’ तक की व्यवस्था नहीं। ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का नारा वर्षों से नकली साबित हो रहा है। सारा धन प्रचार-प्रसार में खर्च हो जाता है, व्यवस्था पर नहीं।
सबसे बड़ा मजाक तो यह है कि शिक्षा पुरुषों के लिए ही लक्षित है। लड़कियों के लिए है ही नहीं। जो शिक्षा लड़कों को नहीं दी जाती, वह लड़कियों को भी नहीं दी जाती। यह समानता का मामला है। भविष्य में जो कार्य लड़के नहीं करेंगे, वे लड़कियां भी नहीं करेंगी। मां नहीं बनेंगी, खाना नहीं बनाएंगी, मां-बाप की सेवा भी नहीं करेंगी। विवाह से ज्यादा कॅरियर जीवन में प्रधान होगा। और वही होने लगा है।
शिक्षा में अंग्रेजी का सम्मान बड़ा रहेगा। उसमें भारतीय चिन्तन, परम्परा, भूगोल, संस्कृति एवं प्रकृति का समावेश नहीं होगा। मन और आत्मा की बातें नहीं हाेंगी। पूर्ण व्यक्ति भी शिक्षित होकर अपूर्ण हो जाएगा। तीसरी पीढ़ी भारतीयता से दूरञ्चपेज११
भारतीय भी उच्च शिक्षा प्राप्त करके पुन: अंग्रेज हो जाएगा। उसे दूसरों से लेने के लिए ही जीना है, भले ही छीनना पड़े। जैसे सत्ताधारी करते हैं।

भारतीय संस्कृति तो सर्वथा लुप्त हो चुकी। हमारी ज्ञान परम्परा के तीन धरातल हैं-अधिदैव, अधिभूत और अध्यात्म। चूंकि विदेशों में अधिदैव ही नहीं है, हमारे पाठॺक्रमों में से भी अध्यात्म बाहर कर दिया है-प्राणहीनता, संवेदन-शून्यता ही शिक्षा का उच्चतम लक्ष्य रह गया है। स्त्री-पुरुष दोनों ही पथरा गए हैं। स्त्री-सुलभ शिक्षा के अभाव में अब स्त्रियों की सौम्यता का स्थान पौरूषीय आग्नेय रुक्षता लेने लग गई है।
यह भी पढ़ें

पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – समरथ को नहीं दोष

धीरे-धीरे इतना कुछ बदल गया है कि हमारी तीसरी पीढ़ी भारतीयता से दूर हो चुकी है। स्त्री और पुरुष भी शिक्षित समाज के बंटवारे पर आमादा होने लगे हैं। दोनों एक-दूसरे के लिए (दाम्पत्य के एकात्म भाव में) जीने को सुख ही नहीं मानते। फिर पितर-देव-असुर जैसे शब्द सभी निरर्थक होने लगे हैं। पेट में अभिमन्यु पैदा होना एक काल्पनिक अवधारणा बनकर रह गई है। स्त्री देह भोग का विषय बन गई, मुद्रा भी बन जाती है। वह पूजा का विषय रहने को तैयार भी नहीं है। न ही वह मर्यादा को स्वीकार करके जीना चाहती है।

Hindi News / Opinion / पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – पुरुष प्रधान शिक्षा

ट्रेंडिंग वीडियो