हर पांच साल में नई सरकार, नए विधायक-सांसद आते-जाते रहे। सभी अपने घर को सोने की लंका बनाते चले गए। अधिकारियों की सेना ने भी बहती गंगा में डुबकियां लगाईं। इस बार मुख्यमंत्री ने ‘अमृतं जलम्’ को अपना आशीर्वाद दिया है। आगामी पांच जून को वे स्वयं इस ‘पत्रिका अभियान’ का श्रीगणेश करेंगे। तारीख भी उन्होंने ही तय की है। सभी जनप्रतिनिधि साथ होंगे।
जनतंत्र में जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा पुन: गौरव लौटेगा। जयपुर के तो प्रत्येक व्यक्ति का यह सपना रहा है। बांध का भराव ६५ फीट और उस पर चलती चादर, स्वर्ग की देहरी सा भव्य नजारा। पिछले वर्षों में देशभर में जनता ने कितने बड़े-बड़े कार्य पूरे किए, इसी ‘अमृतं जलम्’ अभियान में, किन्तु रामगढ़ का श्रमदान विश्व का नया रिकार्ड होगा। भरने के बाद तो बीसलपुर की भी जरूरत उतनी नहीं पड़ेगी। अतिक्रमण स्वत: ही ढह जाएंगे। हर युग में ‘असुर’ भी होते हैं जो अपने सुख के लिए किसी भी सीमा तक दूसरों को कष्ट दे सकते हैं। प्रकृति का नियम है कि सोने की लंका को भी एक दिन जल जाना पड़ता है। ‘राम’ गढ़ साफ करने का चिर प्रतीक्षित अवसर अब हमारे पास है।
यूं तो कार्य बड़ा है, किन्तु बांध के आस-पास बसे एक करोड़ हाथों के लिए चुटकी का काम है। प्रत्येक व्यक्ति एक दिन का श्रमदान करे तो काम पूरा हो जाएगा। पचास-साठ किलोमीटर तक के कुएं-बांध भर जाएंगे। गांव पुन: हरे-भरे हो जाएंगे। दूध-सब्जियों-फलों की ऐतिहासिक बहारें लौट आने को हैं। पुन: हर गांव, हर व्यक्ति समृद्ध होगा। हमें भी सरकार के राज्यव्यापी ‘अमृतं जलम्’ में जुट जाना है। हमारे सिर पर लगा ‘सूखा प्रदेश’ का टीका दूर हो जाएगा। पूरे साल पानी की कमी नहीं होगी।
आम आदमी के लिए सरकारी कानून पेचीदा बनाए जाते हैं, ताकि अफसर राज कर सकें। कानूनों का यही हाल है। आम आदमी के लिए काला अक्षर भैंस बराबर। न्यायाधीशों की यह जिम्मेदारी भी नहीं कि वे अपने फैसले को लागू होता हुआ भी देखें। इस बार मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का यह आश्वासन कि वे स्वयं हर बाधा के निवारण में साथ रहेंगे, एक अतिस्तुत्य अभिव्यक्ति भी है और प्रेरणा का स्रोत भी।
यह भी पढ़ें हर कर्म पूजा
कमर कस लें! संकल्प ही व्यक्ति का ब्रह्मास्त्र होता है। पांच जून दूर नहीं है। नित्य संकल्प दोहराते रहना है। वर्षा भी रामगढ़ जल्दी आना चाहती है। समय कम है। भागीरथी प्रयास ही होगा यह कार्य। लाखों लोगों के सपने, शहर की आत्मा को पुन: जीवित करने का दिव्य कार्य हम भी करें। इतिहास साक्षी है, जल स्रोतों का निर्माण राजाओं-सेठों के पुण्य कार्यों का अंग था। पुन: मुख्यमंत्री के आश्वासन को सीढ़ी बनाते हुए हमें नए स्वर्ग के निर्माण में निकल पड़ना है। प्रकृति का नियम है कि हर कर्म का फल अवश्य मिलता है। अत: हर कर्म पूजा है। Work is Worship.