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मां का थकना भी एक वजह है, जिसे सुना जाना चाहिए

रिद्धि देवरा, इन्फ्लुएंसर और पेरेंटिंग कोच

जयपुरJul 10, 2025 / 08:59 pm

Neeru Yadav

आइए बात शुरू करें कुछ कच्चे और सच्चे शब्दों से। एक मां ने मुझसे कहा कि मैं अपने बेटे का अकेलापन दूर करने के लिए उसे एक भाई या बहन देना चाहती थी, लेकिन मैं शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से इतनी टूट चुकी थी कि दोबारा वह सब सहने की ताकत नहीं थी। फिर भी हर आंटी, हर पड़ोसी, हर रिश्तेदार मुझसे बस एक ही सवाल करता ‘अगला कब आ रहा है?’ क्या यह बात आपको भी जानी-पहचानी लगती है? भारत में एक अदृश्य सामाजिक नियम है-एक बच्चा कभी काफ़ी नहीं होता। अगर आपके पास सिर्फ एक बच्चा है तो लोग सोचते हैं कि आप या तो खुदगर्ज हैं या जरूरत से ज़्यादा महत्त्वाकांक्षी या फिर बहुत ज्यादा पश्चिमी सोच से प्रभावित और अगर आप यह कहने की हिम्मत कर लें कि हम एक ही बच्चे में संतुष्ट हैं तो समझिए मानो आपने कोई बड़ा अपराध कर दिया।
लेकिन ड्राइंग रूम की इन बहसों और अनकहे फैसलों के बीच हम भूल जाते हैं कि हर मां की अपनी एक कहानी होती है। एक ऐसी कहानी, जिसमें आइवीएफ की लंबी और थकाऊ यात्राएं, बरसों की कोशिशें, मां के शरीर का एक हिस्सा ही नहीं, चुपचाप लड़े गए मानसिक संघर्ष, प्रसव के बाद का अवसाद, आर्थिक तनाव और भावनात्मक थकान भी शामिल होते हैं। इन सबके बीच भी हम उम्मीद करते हैं कि वह मुस्कराते हुए कहे, हां, मैं अब दूसरा भी करूंगी।
एक भाई या बहन होना एक खूबसूरत तोहफा है। एक आजीवन साथी झगडऩे के लिए भी और दुनिया से लडऩे के लिए भी। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के शोध बताते हैं कि भाई-बहन बच्चों के सामाजिक कौशल, सहानुभूति और भावनात्मक संतुलन को बढ़ाते हैं। लेकिन भाई-बहन का रिश्ता तभी वरदान होता है, जब घर में भावनात्मक सुरक्षा, प्यार और शांति हो। इकलौता बच्चा भी खुश, भावनात्मक रूप से मजबूत और सामाजिक रूप से कुशल हो सकता है। बच्चे का विकास इस पर निर्भर करता है कि वह किस तरह के माहौल में बड़ा हो रहा है। प्यार, उपस्थिति और भावनात्मक उपलब्धता, यही चीजें बच्चे के भविष्य की नींव बनती हैं।
समाज के दबावों को दरकिनार कर दूसरे बच्चे का निर्णय लेने से पहले एक मां को खुद से पूछना चाहिए कि क्या मैं सच में दूसरा बच्चा चाहती हूं या सिर्फ दबाव में आकर सोच रही हूं? क्या मैं फिर से गर्भावस्था और प्रसव का शारीरिक और मानसिक भार उठाने के लिए तैयार हूं? क्या हम एक और बच्चे के पालन-पोषण की आर्थिक और भावनात्मक जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हैं? सबसे जरूरी बात—क्या मैं दोनों बच्चों को सच्चे दिल से प्यार और समय दे सकूंगी या सिर्फ जिंदगी काटने की कोशिश करूंगी?
बच्चों को सिर्फ एक भाई या बहन नहीं चाहिए। उन्हें एक हंसता-खेलता, प्यार भरा घर चाहिए। एक ऐसी मां चाहिए जो उनके साथ हंसे, प्यार करे। मैं एक परिवार को जानती हूं, जो अपने पहले बच्चे के लिए पांच बार आइवीएफ की प्रक्रिया से गुजरे। हर इंजेक्शन, हर जांच, हर टूटन उनके जीवन का एक हिस्सा ले गई। आज उनके पास एक प्यारी सी बेटी है और उन्होंने उससे आगे न बढऩे का फैसला लिया। वे समझदार हैं, जिम्मेदार हैं और साहसी हैं।
हमें यह भ्रम छोड़ देना चाहिए कि एक आदर्श परिवार वही होता है, जिसमें दो बच्चे हों। कोई भी संख्या ‘सही’ नहीं होती। जो आपके लिए उपयुक्त हो, वही आदर्श है। आपकी अहमियत इस बात से तय नहीं होती कि आपके कितने बच्चे हैं। इस कारण से आप कमतर मां नहीं हैं। आप स्वार्थी नहीं हैं। आप विफल नहीं हैं। आप वही कर रही हैं जो आपके सामथ्र्य में सबसे बेहतर है। बस यही काफी है। समाज से भी अपेक्षा है कि दूसरा कब आ रहा है? पूछने की जगह अब समय है कि वह पूछे-तुम ठीक हो? क्योंकि जब हम दबाव डालना छोडक़र सहारा देना शुरू करते हैं तो हम सिर्फ बेहतर बच्चे नहीं, बेहतर और खुशहाल मांएं भी गढ़ते हैं। हम सबको ऐसा ही समाज चाहिए।
 

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