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सुविधाओं के मामले में सरकारी स्कूलों की अनदेखी क्यों?

यह सोचना ही होगा कि स्वच्छ पानी ही नहीं मिले तो बच्चों की सेहत पर कैसा असर पड़ता होगा? -अभिषेक श्रीवास्तव

उदयपुरMar 06, 2025 / 06:44 pm

अभिषेक श्रीवास्तव

एक तरफ हर बार शिक्षा सत्र की शुरुआत पर सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने के लिए जोर-शोर से प्रयास किए जाते हैंं, वहीं दूसरी ओर इन स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं की अनदेखी लगातार जारी है। राजस्थान में इन स्कूलों की बदहाली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भवन, शौचालय और पानी-बिजली की सुविधा सिर्फ कागजों में ही नजर आती है। शहरी स्कूलों की स्थिति तो भले ही अपेक्षाकृत ठीक नजर आती हो लेकिन अपवादों को छोड़कर, ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूल तो सुविधाओं को मोहताज ही रहते आए हैं। सुविधाओं के अभाव से बच्चों की पढ़ाई पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। आंकड़े बताते हैं कि अभी तक प्रदेश में महज 61 फीसदी स्कूल-आंगनबाड़ी केंद्रों में ही नल से जल पहुंचाने का बंदोबस्त हो पाया है। भले ही अन्य राज्यों में यह स्थिति कुछ हद तक ठीक हो, लेकिन राजस्थान देश के कुल औसत से 28 फीसदी पीछे है। प्रदेश में 53 हजार स्कूलों के शौचालय में ही नल से जल पहुंच रहा है। इसी तरह से 76,193 स्कूलों में ही हाथ धोने के लिए नल है। कुछ ऐसी ही स्थिति अन्य मूलभूत सुविधाओं की भी है।
दरअसल, सार्वजनिक मंचों से जब हमारे नेता बच्चों को देश के भावी कर्णधार बताते हैं तो अच्छा लगता है। लेकिन इन्हीं कर्णधारों को सुविधाओं को लेकर जूझना पड़े तो जिम्मेदार उसकी परवाह तक नहीं करते। यह सोचना ही होगा कि स्वच्छ पानी ही नहीं मिले तो बच्चों की सेहत पर कैसा असर पड़ताहोगा? शौचालय तक साफ नहीं हों तो संक्रमण का खतरा लगातार बना रहता है। सरकार को स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं के विकास के लिए जमीनी स्तर पर प्रयास करना चाहिए। खासतौर पर पेयजल और शौचालयों का बंदोबस्त प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए। संस्था प्रधानों को भी चाहिए कि वे इन सुविधाओं के लिए स्थानीय स्तर पर भी जनसहयोग जुटाने का काम करें। भामाशाहों की मदद से कई सरकारी स्कूलों का कायाकल्प हुआ है इसमें दो राय नहीं। लेकिन भामाशाहों के बनाए स्कूल भवन भी जब देखरेख के अभाव में जीर्ण-शीर्ण होने लगें तो फिर दोष किसको दें? सरकारी स्कूल सुविधायुक्त होंगे तो नामांकन स्वत: ही बढऩे लगेगा, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता।
abhishek.srivastava@in.patrika.com

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