यह आम धारणा है कि लिवर की बीमारियां केवल शराब के कारण होती हैं, जबकि सच्चाई इससे कहीं ज्यादा व्यापक है। आज नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) या जिसे अब मेटाबॉलिक डिसफंक्शन-एसोसिएटेड फैटी लिवर डिजीज (MAFLD) कहा जाता है, वैश्विक महामारी का रूप ले चुकी है। यह बीमारी उन लोगों को भी प्रभावित कर रही है जो शराब का सेवन नहीं करते। मोटापा, टाइप-2 मधुमेह, उच्च कोलेस्ट्रॉल, और निष्क्रिय जीवनशैली इसके मुख्य कारण हैं। तली-भुनी चीजें, शुगरी ड्रिंक्स और फास्ट फूड लिवर में वसा जमा करने का काम करते हैं।
भारत में स्थिति चिंताजनक है। एम्स और एसजीपीजीआई के एक मेटा-विश्लेषण के अनुसार, देश के 38.6% वयस्क और 35.4% बच्चे फैटी लिवर से ग्रसित हैं। यह चौंकाने वाली बात है कि यह रोग अब दुबले-पतले और सामान्य वजन वाले लोगों में भी देखा जा रहा है, जिसे लीन नॉन-अल्कोहोलिक स्टीटोहेपेटाइटिस (Lean NASH) कहा जाता है। यह बीमारी धीरे-धीरे और चुपचाप बढ़ती है। इसके लक्षण – थकान, पेट के दाईं ओर भारीपन, भूख में कमी या बिना वजह वजन घटना – इतने सूक्ष्म होते हैं कि लोग इन्हें सामान्य समझकर अनदेखा कर देते हैं।
लिवर रोग अब केवल शहरों तक सीमित नहीं हैं, गांवों में भी यह तेजी से फैल रहा है। शहरी क्षेत्रों में जहां करीब 40% लोग प्रभावित हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी लगभग 29% लोग इसकी चपेट में हैं। बदलती जीवनशैली, तनाव, नींद की कमी, शारीरिक गतिविधियों की अनुपस्थिति और अत्यधिक स्क्रीन टाइम ने इस बीमारी को और गंभीर बना दिया है। महिलाओं में पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS), थायरॉइड की समस्या, और गर्भावस्था के दौरान फैटी लिवर जैसी स्थितियां जटिलताएं बढ़ा सकती हैं। किशोरों और स्कूली बच्चों में मोटापा और आलसी दिनचर्या इस बीमारी को कम उम्र में ही जन्म दे रहे हैं, जो आने वाले वर्षों में एक और बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बनने जा रही है।
सकारात्मक तथ्य यह है कि लिवर रोगों से बचाव पूरी तरह संभव है, बशर्ते हम समय रहते सजग हो जाएं। संतुलित आहार जिसमें हरी सब्जियां, फल, साबुत अनाज और कम वसा वाले प्रोटीन हों, लिवर को मजबूती देते हैं। जंक फूड, मिठाई, तली चीजें, और कोल्ड ड्रिंक्स से दूरी बनानी चाहिए। अध्ययनों से पता चला है कि सीमित मात्रा में ब्लैक कॉफी और ग्रीन टी लिवर की सूजन कम करने में मददगार हो सकती हैं।
नियमित व्यायाम, जैसे तेज चलना, योग, साइक्लिंग आदि, लिवर की चर्बी को घटाने में उपयोगी है। वजन में 5–10% की कमी लिवर की कार्यक्षमता को काफी हद तक सुधार सकती है। तनाव प्रबंधन के लिए ध्यान, प्राणायाम और पर्याप्त नींद आवश्यक हैं।
भारत सरकार ने भी लिवर रोगों की बढ़ती चुनौती को समझते हुए नेशनल प्रोग्राम फॉर प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ कैंसर, डायबिटीज, कार्डियोवास्कुलर डिजीजेज एंड स्ट्रोक (NPCDCS) में इन्हें शामिल किया है। समय पर जांच, जागरूकता और जीवनशैली में बदलाव के लिए यह एक सकारात्मक कदम है। लेकिन इसके साथ-साथ सामुदायिक प्रयास भी जरूरी हैं – स्कूलों में बच्चों को हेल्दी लाइफस्टाइल की शिक्षा देना, कार्यस्थलों पर फिजिकल एक्टिविटी को प्रोत्साहन देना, और नियमित स्वास्थ्य जांच शिविर आयोजित करना। खाद्य नीतियों में सुधार, जैसे प्रोसेस्ड फूड, ट्रांस फैट और शुगर उत्पादों पर टैक्स बढ़ाना या हेल्दी विकल्पों को सब्सिडी देना भी इस दिशा में प्रभावी हो सकते हैं। कई देश ऐसा कर भी रहे हैं।
लिवर एक ऐसा सिपाही है जो बिना शोर किए हमारे लिए लड़ता रहता है। लेकिन जब यह थक जाता है, तो शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है और जीवन संकट में आ सकता है। आप अपने लिवर का ध्यान रखेंगे तो यह आपके समग्र स्वास्थ्य का ध्यान रखेगा।