पाली में स्त्री देह से आगे विषय पर आयोजित संवाद कार्यक्रम में सम्बोधित करते राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी।
पाली। राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने कहा कि आज की शिक्षा में मन की इच्छाओं, कामनाओं व आत्मा की चर्चा नहीं है। जबकि जीवन मन से चलता है। नारी की दिव्यता का सम्मान होता है। जहां नारी का सम्मान है, वहीं समाज स्वर्ग है। नारी के समान दिव्यता पुरुष में नहीं है। नई शिक्षा कहती है लड़का-लड़की में भेद नहीं है। जबकि लड़के-ल़ड़कियों के मुकाबले बहुत कम समझदार है। जीवन की बारीकियां लड़कों में नहीं है। कोठारी मंगलवार को जय नगर िस्थत वंदे मातरम् उच्च माध्यमिक विद्यालय में “स्त्री देह से आगे” विषय पर चर्चा कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि धरती पर देनी वाली केवल मां है। हर देने वाले को मां कह सकते है। शिक्षा ने बुदि्ध व अहंकार दिया तथा आक्रामक बनाया। मां में वात्सल्य है। मां को घर का खूंटा कहते है। एक बीज का उज्जवल भविष्य है वह पेड़ बने। हर मां की भावना है उसका बच्चा पेड़ बने। कोई भी बीज अपने फल नहीं खा सकता। बीज को कभी यह चिंता नहीं होती कि उसके फल कौन खाएगा? इसी तरह तरह मां को खुद की चिंता नहीं होती। प्रकृति का सिद्धांत है स्त्री के पास बीज नहीं होता, लेकिन अन्य सभी चीजें स्त्री के पास है। वह दिव्यता के साथ उपयोग नहीं आ सकती तो मानव समाज का निर्माण नहीं हो सकता।
पाली में स्त्री देह से आगे विषय पर आयोजित संवाद कार्यक्रम में मौजूद महिलाएं।
दाम्पत्य से पवित्र कोई रिश्ता नहीं
कोठारी ने कहा कि आज हम दाम्पत्य को एक मनोरंजन मानते है। जबकि इससे पवित्र रिश्ता कोई नहीं हो सकता। मां नौ माह पेट में जीव रखती है। यह महिला की दिव्यता का सबसे बड़ा धरातल है। मानव के निर्माण का धरातल है। हमारा स्थूल शरीर नाम से पहचाना जाता है। अन्न से पुष्ट होता है। इसके अंतर एक सूक्ष्म शरीर है। उसके भीतर के शरीर को आत्मा कहते है। प्राण व देवता पर्यायवाची है। स्त्री दो शरीर को एक साथ जीती है। यदि आप उस दिव्यता को देख ले। मां ही सूक्ष्म देह की भी पोषण करती है।
देना चाहिए संवेदना का गुण
कोठारी ने कहा कि पुरुष के अंदर स्त्री है। लड़के में भी ममता, दया के साथ संवेदना आदि के गुण होने चाहिए। यह मां को समझाना चाहिए। यह नहीं बताने से हमारा समाज संतुलित नहीं है। आज की लड़कीलड़का बनना चाह रही है। इससे बेहतर समाज निर्माण नहीं होगा। जबकि स्त्री को दाम्पत्य जीवन में आने के बाद पुरुष के प्रेम भाव का पोषण करना चाहिए। पुरुष के जीवन की डोर स्त्री के हाथ में है। पुरुष आपकी रक्षा कर सकता है। इसके अतिरिक्त सभी चीेजें स्त्री ही चलाती है। पुरुष को पुरुषार्थ के अंत में मोक्ष दिलाना भी स्त्री के हाथ में है। दया श्रद्धा, स्नेह, प्रेम इनके आधार पर स्त्री पुरुष को अंतिम पड़ाव पर ले जाती है।
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