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राजनीति

हार-दर-हार के बाद कांग्रेस में उठ रही ‘हिलोरे’

-इस साल के अंत में होने हैं बिहार चुनाव
-अनवर ने कांग्रेस की राजनीतिक रणनीति पर उठाए सवाल

नई दिल्लीFeb 11, 2025 / 12:38 pm

Shadab Ahmed

शादाब अहमद

नई दिल्ली। कांग्रेस को पिछले दो साल के दौरान राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों में करारी हार का सामना करना पड़ा है। हार-दर-हार के बाद पार्टी के नेता हिल गए हैं। अब पार्टी के भीतर से ही बदलाव की मांग को लेकर नेता सामने आने लगे हैं। सीडब्ल्यूसी सदस्य और बिहार के कटिहार से सांसद तारिक अनवर ने पार्टी की राजनीतिक रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
दरअसल, पार्टी लगातार चुनाव हार रही है और उसकी हर रणनीति कारगर साबित नहीं हो रही है। वहीं पार्टी ने संगठन मजबूत करने के लिए साल 2025 को समर्पित करने का निर्णय किया था। इस निर्णय को करीब डेढ़ महीने का समय बीत चुका है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर संगठन में बदलाव को लेकर कोई कदम नहीं उठाए गए। ऐसे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व सांसद तारिक अनवर ने सोशल मीडिया पर अपनी बात रखकर ठहरे हुए पानी में हिलोरे पैदा कर दी है। इसी तरह कुछ अन्य नेताओं ने इंडिया ब्लॉक से जुड़ी समस्याओं को सुलझाने पर जोर दिया है।

तय करना होगा…अकेले चलेंगे या गठबंधन की राजनीति करेंगे

तारिक अनवर ने लिखा, ‘ कांग्रेस को अपनी राजनीतिक रणनीति को स्पष्ट करने की जरूरत है। उन्हें तय करना होगा कि वे गठबंधन की राजनीति करेंगे या अकेले चलेंगे। पार्टी के संगठन में मूलभूत परिवर्तन करना भी जरूरी हो गया है।’ वहीं लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को देखते हुए कांग्रेस बिहार में इस बार अधिक सीट चाहती है।

बयानों में छिपे हैं संदेश: चुनाव..संगठन और गठबंधन के लिए

1. बिहार चुनाव: इस साल के अंत में यहां विधानसभा चुनाव होने हैं। तारिक अनवर बिहार के वरिष्ठ नेता है। जहां कांग्रेस का राजद से पुराना गठबंधन है, लेकिन सीट बंटवारे में राजद किसी भी तरह का समझौता नहीं करता है। इसके चलते पिछले चुनाव में कांग्रेस को ऐसी सीटें दी गई थी, जिनमें से अधिकांश पर गठबंधन की हार तय थी। दिल्ली चुनाव के नतीजों के बाद अब कांग्रेस भी राजद पर दबाव बढ़ाने के मूड में है। इसकी शुरुआत तारिक अनवर ने कर दी है। अधिकांश नेता गठबंधन पर जल्द फैसला चाहते हैं।

2. संगठन में बदलाव
: राष्ट्रीय स्तर पर संगठन में असंतुलन बना हुआ है। पार्टी दलित, आदिवासी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों की बात तो करती है, लेकिन संगठन में इनका प्रतिनिधित्व दावों के हिसाब से नहीं दिखता है। इसके अलावा पार्टी की हिंदी पट्टी में लगातार हार हो रही है। इसके बावजूद तीन प्रमुख पदों पर दक्षिण भारत के नेता काबिज है। खासतौर पर संगठन महासचिव के पद को लेकर पार्टी में खासा घमासान है।
3. इंडिया ब्लॉक: इसमें शामिल दल राष्ट्रीय मुद्दों पर एक नजर आते हैं, लेकिन राज्यों में आपस में जोरदार तरीके से एक-दूसरे से लड़ते हैं। दिल्ली, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इसके प्रमुख उदाहरण है। कांग्रेस के अधिकांश नेता चाहते हैं कि इंडिया ब्लॉक की प्रकृति भी यूपीए की तरह होनी चाहिए।

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