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Opinion-सस्ती व सुलभ चिकित्सा सरकारों की जिम्मेदारी

कर्नाटक हाईकोर्ट ने ताजा फैसले में टिप्पणी की है कि स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाएं नागरिकों का मौलिक अधिकार है और सरकारें इससे बच नहीं सकती।

जयपुरJan 27, 2025 / 08:53 pm

harish Parashar

कर्नाटक हाईकोर्ट ने ताजा फैसले में टिप्पणी की है कि स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाएं नागरिकों का मौलिक अधिकार है और सरकारें इससे बच नहीं सकती।

कर्नाटक हाईकोर्ट ने ताजा फैसले में टिप्पणी की है कि स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाएं नागरिकों का मौलिक अधिकार है और सरकारें इससे बच नहीं सकती।


चिकित्सा सेवाओं को बेहतर बनाने की दिशा में हमारे देश में पिछले सालों में काफी काम हुआ है, इसमें संदेह नहीं है। लेकिन लोगों को सस्ती व सुलभ चिकित्सा सेवाएं मिलना आज भी दूर की कौड़ी बनी हुई है। सेहत की देखभाल महंगी होने की बड़ी वजह यह भी है कि आज तक स्वास्थ्य सेवाओं को आम आदमी तक पहुंचाने के सरकारी स्तर पर प्रयास इतने नहीं हुए जितने होने चाहिए थे। कर्नाटक हाईकोर्ट ने ताजा फैसले में टिप्पणी की है कि स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाएं नागरिकों का मौलिक अधिकार है और सरकारें इससे बच नहीं सकती। कोर्ट ने एक कमेटी बनाने के भी निर्देश दिए हैं जो प्रदेश में चिकित्सा कर्मियों, चिकित्सा सुविधाएं तथा मूलभूत सुविधाओं की निगरानी करेगी।

कोर्ट ने यह टिप्पणी इसलिए की क्योंकि उसके संज्ञान में लाया गया था कि प्रदेश में सोलह हजार से ज्यादा चिकित्सा कर्मियों के पद खाली हैं। कर्नाटक ही नहीं देश के किसी भी हिस्से में चले जाएं चिकित्सा सुविधाओं की दशा एक जैसी मिलेगी। सरकारी अस्पतालों की हालत खास तौर से ग्रामीण क्षेत्रों में तो भगवान भरोसे ही है। कहीं अस्पताल हैं तो डॉक्टर नहीं और कहीं डॉक्टर हैं तो पर्याप्त सुविधाएं नहीं। सरकारें लोगों को सेहत का अधिकार देने के नाम पर मुफ्त इलाज की जो योजनाएं जारी करती हैं उनका फायदा भी सबको नहीं मिल पाता। पांच सितारा होटलों की माफिक अस्पताल तो जैसे आम आदमी की पहुंच से ही बाहर हैं। महंगे होते इलाज के बीच स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के बावजूद कोई बीमार होने पर इलाज से वंचित रह जाए तो लोककल्याणकारी कही जाने वाली सरकारों की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगना स्वाभाविक है। होना तो यह चाहिए कि सरकारें हर व्यक्ति को ऐसी स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने की गारंटी दें जिसमें वे सेहत पर होने वाले खर्च के दौरान आर्थिक संकट में नहीं फंसे। मोटे आंकड़े के अनुसार देश में छह करोड़ भारतीय हर साल इसलिए गरीबी रेखा के नीचे आ जाते हैं क्योंकि उन्हें अपनी जेब से चिकित्सा के नाम पर काफी खर्च करना पड़ता है। बड़ी समस्या दूर दराज के इलाकों में है जहां समय पर उपचार नहीं मिलने की वजह से मरीजों की जान पर संकट आ खड़ा होता है।

यह ध्यान रखना होगा कि बढ़ती महंगाई की आम आदमी पर मार भी इसीलिए ज्यादा पड़ती है क्योंकि उसकी आय का अधिकांश हिस्सा तो महंगी शिक्षा और चिकित्सा में ही खर्च हो जाता है। जनता को ‘राइट टू हेल्थ’ को लेकर सरकारें बातें तो खूब करती हैं लेकिन धरातल पर आम जनता को इसका फायदा होता नहीं दिखता। इस दिशा में ठोस प्रयासों की जरूरत है।

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