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छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के खंडपीठ के फैसले के विरुद्ध थी, जिसमें छत्तीसगढ़ सरकार को सोना साहू के वेतनमान में उन्नयन के कारण उत्पन्न बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। साहू ने बिना पदोन्नति के 10 वर्षों से अधिक समय तक सहायक शिक्षक के रूप में सेवा प्रदान की थी। सर्वोच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ राज्य के इस तर्क पर विचार करने से इनकार कर दिया कि सोना साहू आश्वस्त वृत्ति विकास/क्रमोन्नति वेतनमान प्राप्त करने की हकदार नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने 7 वर्ष पूरा करने पर समय वेतनमान प्राप्त किया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिवादी के इस तर्क को स्वीकार किया कि 2013 में वेतनमान के संशोधन के बहाने राज्य द्वारा समय वेतनमान का लाभ वापस ले लिया गया था और उन्हें 10 वर्षों तक कोई उन्नयन प्राप्त नहीं हुआ था। छत्तीसगढ़ की ओर से पैरवी भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और स्थायी वकील अंकिता शर्मा ने किया। वहीं सोना साहू की पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. एस. मुरलीधर तथा रिकॉर्ड के अधिवक्ता देवाशीष तिवारी ने किया। पीड़ित शिक्षकों के मामले का समर्थन करने के लिए शिक्षक संघ की ओर से रामनिवास साहू, मनीष मिश्रा, रवींद्र राठौर और बसंत कौशिक मौजूद थे।
पंचायत ने राशि दी, स्कूल शिक्षा विभाग ने नहीं बताया जाता है कि सोना साहू ने पंचायत विभाग से अपनी बकाया राशि प्राप्त कर ली है, परंतु स्कूल शिक्षा विभाग से उनकी बकाया राशि अभी भी लंबित है। उक्त बकाया राशि प्राप्त करने के लिए साहू ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के समक्ष अवमानना याचिका दायर की है। न्यायालय ने स्कूल शिक्षा विभाग के संबंधित सचिव को 19 मार्च 2025 को न्यायालय में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने का निर्देश दिया है।
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7 से 8 लाख रुपए तक का हो सकता है फायदा शिक्षा विभाग से जुड़े जानकारों का कहना है कि इसका सबसे ज्यादा फायदा सहायक शिक्षकों को होगा। उन्हें 7 से 8 लाख रुपए का भुगतान करना पड़ सकता है। वहीं शिक्षक और व्याख्याताओं की गणना अलग होगी।
90 हजार ने भरा हैं क्रमोन्नति के लिए फॉर्म छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष संजय शर्मा बताते हैं कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद एसोसिएशन ने प्रदेशभर में क्रमोन्नति के लिए अभियान चलाया था। इसमें 90 हजार से अधिक आवेदन जिला शिक्षा अधिकारियों के पास पहुंचे थे।
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यह है सरकार के लिए परेशानी की वजह बताया जाता है कि जब छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सोना साहू के पक्ष में फैसला दिया था, तो राशि देने का आदेश जारी हुआ था। इसके बाद हजारों शिक्षकों ने भी अपनी याचिका दायर की थी। अब यदि सुप्रीम कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद सभी शिक्षक फिर सक्रिय होते हैं, तो शिक्षा विभाग का आधा से ज्यादा बजट राशि देने में ही खर्च हो जाएगा।
ऐसे विवाद में आया मामला दरअसल, लंबे समय तक प्रमोशन न मिलने पर शिक्षकों ने 2013 में सरकार पर दबाव डाला, जिसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने 10 साल की सेवा पूरी कर चुके शिक्षकों को क्रमोन्नत वेतनमान देने का ऐलान किया। लेकिन इसके बावजूद आंदोलन शांत नहीं हुआ। शिक्षकों के लगातार विरोध को देखते हुए सरकार ने एक साल बाद समतुल्य वेतनमान देने का निर्णय लिया और इसके साथ ही क्रमोन्नति वेतनमान का आदेश रद्द कर दिया। इसके बाद साहू ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थीं।