Women safety campaign: फब्तियां कसते रहे
टाटीबंध में जब ये उतरने लगे तो एक-दूसरे को देखकर फब्तियां कस रहे थे। चलना है क्या, जैसे शब्द कह रहे थे। इस तरह के कमेंट करते वक्त उन्हें किसी का डर नहीं था। अधिकतर महिलाएं इसलिए मुंह बांधकर करती हैं सफर
बस में चालक की बायीं ओर की लंबी सीट थी। उसमें तीन सवारी आराम से बैठ सकती है।
(Patrika Women safety campaign) लेकिन बस वालों ने इसे महिलाओं के लिए आरक्षित बताकर चार महिलाओं को बैठा रखा था। चालक घूर रहा था। सभी से बात करने की कोशिश कर रहा था कि कहां जाना है, क्या करती हैं, कब लौटेंगी, रोज जाती हैं क्या, हमारे साथ ही चलना। बस में अधिकतर महिलाएं चेहरा बांधकर सफर कर रही थीं। रोजाना होने वाली छेड़छाड़ से बचने के लिए यह करना पड़ता है।
सीट पर बैठी महिला के साथ टिक गया मनचला
महिला सीट पर बैठी एक महिला सवारी के साथ टिक कर एक मनचला खड़ा हो गया। असहज महसूस कर रही महिला, उसे कुछ बोलने का हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। वहीं बस के चालक और हेल्पर को इससे मतलब ही नहीं।
सीसीटीवी भी नहीं
बस में न सीसीटीवी कैमरा लगा था न पैनिक बटन। किसी आपात स्थिति के लिए महिलाओं के लिए कुछ भी सुविधा नहीं थी। Women safety campaign: ‘
पत्रिका महासर्वे’ के नतीजे बताते हैं कि सार्वजनिक परिवहन की सुविधाओं के इस्तेमाल के दौरान महिलाओं की सुरक्षा अब भी चिंताजनक बनी हुई है। छेड़छाड़ की रोकथाम के उपाय, स्कूलों में यौन शिक्षा और लड़कों में जेंडर सेंसिटिविटी की जागरूकता जैसे अहम मुद्दों पर भी महासर्वे ने महत्त्वपूर्ण संकेत दिए हैं।