एसडीएम न्यायालय से हुए आदेश के बाद पूरे शहर में यह चर्चा का विषय बन गया है। क्योंकि बीते दिनों इस जमीन को लेकर ही दो पक्षों में विवाद हुआ था। इसके बाद मामला न्यायालय और न्यायालय के आदेश के बाद राजस्व विभाग ने इसकी जांच की। जो जमीन को शासकीय रिकार्ड के अनुसार सरकारी माना गया है।
जमीन का कुछ हिस्सा बेच दिया
जानकारी के अनुसार नरसिंहगढ़ शहर के 176 खसरे जिसमें चोपड़ा हनुमान मंदिर बना हुआ है। इस हनुमान मंदिर के लिए एक बीघा जमीन राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज की गई थी। इस जमीन पर बीते दिनों राम दरबार बनाने को लेकर बड़ा कार्यक्रम भी आयोजित किया गया था। लेकिन इसके बाद इस जमीन को हेरम सिंह ने अपना बताते हुए सुनील वर्मा नाम के व्यक्ति को इसी जमीन का कुछ हिस्सा बेच दिया। जिसके बाद सुनील वर्मा ने दिसंबर 2023 में फेंसिंग कर दी। फेंसिंग होने के बाद विवाद की स्थिति भी सामने आई। लेकिन हनुमान मंदिर समिति ने हाई कोर्ट में इस पूरे मामले को लेकर अपील की। जिसके बाद हाई कोर्ट के निर्देशों पर यह मामला राजस्व न्यायालय के माध्यम से हल करने के लिए दिया गया।
रियासत काल से हमारी जमीन
हेरम सिंह का कहना है कि यह जमीन उनकी है। जिसे शासकीय बताया जा रहा है। वह 1939 के रिकॉर्ड में उनके परिवार के नाम पर दर्ज है। ऐसे में इस आदेश के खिलाफ वरिष्ठ न्यायालय में अपील करेंगे। क्योंकि यह जमीन उनकी ही है। ये भी पढ़ें: एमपी में बनेगा नया ‘कॉरिडोर’, ली जाएगी 17 गांवों की जमीन जांच कराई गई
एक बीघा जमीन चोपड़ा हनुमान मंदिर के लिए आवंटित की गई थी। जिस पर हम निर्माण की तैयारी कर रहे थे। इस बीच हेरम सिंह नाम के व्यक्ति द्वारा इस जमीन का कुछ हिस्सा बेच दिया था। इसके बाद हम न्यायालय में गए और न्यायालय के बाद राजस्व न्यायालय के माध्यम से जांच कराई गई। जिसमें स्पष्ट हो गया की जमीन शासकीय है।-देवी सिंह सोलंकी, सदस्य चोपड़ा हनुमान मंदिर समिति
मामला टीएल में था। जिसमें जांच के आदेश हुए थे। जांच करने पर जो सरकारी रिकॉर्ड नजर आ रहा है, उसके अनुसार यह जमीन शासकीय है। उसके अनुसार कार्रवाई की गई है।-गीतांजलि शर्मा एसडीएम नरसिंहगढ़
प्रकरण को टीएल में लिया गया
मंदिर समिति द्वारा दिए गए आवेदन के बाद कलेक्टर गिरीश कुमार मिश्रा ने मामले को टीएल में लेते हुए तेजी से इस पूरे मामले के जांच के आदेश एसडीएम को दिए। इसके बाद राजस्व विभाग के आरआई और पटवारी के माध्यम से जमीन का सीमांकन और जांच की गई। जिसमें पता लगा कि 1959 में हुए बंदोबस्त के दौरान यह जमीन सरकारी मानी गई। इस आधार पर एसडीएम ने इस जमीन को शासकीय मानते हुए कॉलोनी को अवैध बताया और इसके नामांतरण व रजिस्ट्री पर रोक लगा दी।