scriptसावन के पहले दिन बन रहा शिव जी का दुर्लभ योग, मनचाहे वरदान के लिए जरूर करें ये तपस्या | shiv vas tithi Sawan 2025 Lord Shiva yoga on first day Agastya Arghya Shravan mein tapasya Mahatv rahu ketu dosh nivaran upay | Patrika News
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सावन के पहले दिन बन रहा शिव जी का दुर्लभ योग, मनचाहे वरदान के लिए जरूर करें ये तपस्या

Shravan Mahatv: सावन 2025 शुरू होने वाला है। मान्यता है कि इस महीने में पूजा अर्चना से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। लेकिन इस बार सावन के पहले दिन शिव जी का दुर्लभ योग बन रहा है। मान्यता है कि इस योग में पूजा-अर्चना से मनचाहा वरदान मिलता है (Shiv Vas Tithi Sawan 2025)।

भारतJul 09, 2025 / 04:20 pm

Pravin Pandey

shiv vas tithi Sawan 2025

Lord Shiva yoga on first day: सावन के पहले दिन विशेष योग (Photo Credit: Bhimashankar trust)

Shiv Vas Tithi Sawan 2025: ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा के अनुसार सावन की शुरुआत 11 जुलाई से हो रही है और यह 9 अगस्त 2025 तक चलेगा। सावन में प्रत्येक सोमवार और सभी मंगलवार बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। सावन के सभी सोमवार को शिवजी का व्रत रखा जाता है।
सावन के सोमवार का भक्तों को बहुत इंतजार रहता है। इस महीने में भोलेशंकर की विशेष अराधना की जाती है। लोग भोले शंकर का रुद्राभिषेक कराते हैं। सावन मास भगवान शिव का सबसे पसंदीदा माह है और इस दौरान यदि कोई श्रद्धालु पूरी आस्था के साथ भोलेनाथ की आराधना करता है तो उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है। इस महीने भगवान शिव की विधि-विधान के साथ पूजा होती है। सावन के पावन महीने में शिव के भक्त कावड़ लेकर आते हैं और उस कांवड़ में भरे गंगा जल से शिवजी का अभिषेक करते हैं।
वहीं सावन के मंगलवार को मंगला गौरी व्रत होता है। सुहागिन महिलाओं के लिए सावन के मंगला गौरी व्रत का खास महत्व होता है। महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत रखती हैं। इसके साथ ही सावन के दोनों प्रदोष व्रत, नाग पंचमी, रक्षा बंधन और हरियाली तीज जैसे प्रमुख व्रत त्योहार भी धूमधाम से मनाए जाते हैं।

सावन का महत्व (Sawan Ka Mahatv)

सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा अर्चना का विशेष फल प्राप्त होता है। मान्यता है इस दिन जो भी पार्वती और भगवान भोलेनाथ की आराधना करता है उसे सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान भोलेनाथ को अपने पति के रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। इसके फलस्वरूप महादेव ने पार्वती जी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने का वर दिया।
इसके अलावा श्रावण मास के दौरान अन्य देवताओं के लिए की गई पूजा भगवान शिव को भी प्रसन्न करती है। इसीलिए पवित्र श्रावण मास के दौरान किसी भी अन्य देवी-देवता के लिए की गई पूजा भी भगवान शिव तक पहुंचती है।

राहु केतु के अशुभ प्रभाव होते हैं दूर

मान्यता है कि जो भी सावन के सोमवार में भगवान भोलेनाथ की पूरी श्रद्धा के साथ पूजा करता है उसे मनचाहा वर या वधू प्राप्त होता है। इसके अलावा सावन के सोमवार का व्रत रखने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है और इसके अलावा राहु-केतु का अशुभ प्रभाव दूर होता है।

मां पार्वती को भी सावन अत्यंत प्रिय (Shravan Ka Mahatv)

भगवान शंकर को जिस तरह से सावन मास प्रिय है। ठीक उसी तरह से मां पार्वती को भी सावन का महीना अत्यंत प्रिय है। मान्यता है कि सावन महीने में सोमवार के दिन भगवान शंकर की पूजा करने से मनचाहा वरदान प्राप्त होता है। वहीं सावन के मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रकने से मां पार्वती की कृपा से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है।

सावन के पहले दिन शिव वास योग (Shiv Vas Yog On Sawan 2025)

ज्योतिषाचार्य के अनुसार इस बार सावन के पहले ही दिन 11 जुलाई को विशेष योग बन रहा है, जिसे शिववास योग कहा जाता है। इस शुभ संयोग में भगवान शिव माता पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर विराजमान रहेंगे। मान्यता है कि इस योग में शिवजी की पूजा और जलाभिषेक करने से साधक को सौभाग्य, सुख-समृद्धि और मनचाहा वरदान प्राप्त होता है।

श्रावण में जरूर करें ये तपस्या

आधुनिक भारत में धार्मिक पुस्तकों के अनुसार सभी श्रावण व्रत और अनुष्ठानों का पालन नहीं किया जाता है। हालांकि श्रावण माह के दौरान कुछ ये तपस्या जरूर करनी चाहिए।
1. पूरे श्रावण मास के दौरान आहार से किसी एक प्रिय सामग्री का त्याग करना जैसे सभी प्रकार की पत्तेदार सब्जियों का त्याग करना।

2. पूरे श्रावण मास में जमीन पर सोना और ब्रह्मचर्य का पालन करना।
3. शिवलिंग पर अभिषेक के साथ नियमित शिव पूजा, जिसमें गायत्री मंत्र और शिव मूल मंत्र ओम नमः शिवाय का दैनिक पाठ करना चाहिए।

    अगस्त्य अर्घ्य

    अगस्त्य अर्घ्य एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जो मुख्य रूप से श्रावण मास में किया जाता है। जिस दिन अगस्त्य तारा कुछ महीनों तक अस्त रहने के बाद उदित होता है, वह दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। अगस्त्य तारा के प्रकट होने के प्रथम दिन, ऋषि अगस्त्य को अर्घ्य अर्पित करना अगस्त्य अर्घ्य कहलाता है।

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