आईवीआईजी इंजेक्शन ही उपचार चिकित्सकों के अनुसार जीबीएस के मरीज के उपचार में आईवीआईजी (इंट्रावेनस इम्यूनोगगुलोबिन ) इंजेक्शन काम में लिया जाता है। यह इंजेक्शन मरीज की इम्यून सिस्टम को नियंत्रित करने का काम करता है और नसों पर हो रहे हमले को रोकता है। मरीज के उपचार के लिए औसतन 5 डोज इंजेक्शन लगाए जाते हैं। महंगा होने के कारण जीबीएस के मरीज को सरकारी अस्पतालों में यह इंजेक्शन नहीं मिल पाता है। ऐसे में जीबीएस के मरीजों को हायर सेंटर के लिए रेफर किया जाता है।
कुछ घंटों में बिगड़ जाती है हालत चिकित्सकों के अनुसार जीबीएस के मरीजों में एकदम कमजोरी आने लगती है। समय पर इलाज नहीं करवाने पर महज कुछ घंटों या कुछ दिनों में हालत ज्यादा बिगड़ जाती है। अधिकतर लक्षण दो हफ्ते के भीतर कमजोरी की सबसे बड़ी अवस्था तक पहुंच जाते हैं। तीसरे हते तक 90 प्रतिशत पीड़ित बेहद कमजोर हो जाते हैं। छाती और निगलने की मांसपेशियों में लकवा पड़ने की वजह से सांस लेने में दिक्कत, दम घुटने लगता है। समय पर इलाज शुरू नहीं होने पर मरीज की जान बचाना भी मुश्किल हो जाता है।
खुद की एंटीबॉडीज करती है हमला चिकित्सकों के अनुसार आमतौर पर यह बीमारी रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन, लगातार स्टेरॉयड और एंटी कैंसर की दवा लेने वाले मरीज, अंग प्रत्यारोपित करवाने वाले मरीजों में होती है। जीबीएस के मरीजों में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ही नसों पर हमला करना शुरू कर देती है। जिसके परिणाम घातक होते हैं। ऐसे में पेट दर्द और डायरिया के 10 दिन या दो सप्ताह बाद पैरों में कमजोरी, दर्द महसूस होने और यह कमजोरी धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़कर हाथों तक पहुंच जाए और हाथ-पैर सुन्न होने लगे तो यह गुइलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) का शुरूआती लक्षण होता है। इसके अलावा किसी वायरल, बैक्टीरियल या प्रोटोजोअल बीमारी से ग्रसित हों धीरे धीरे यह चेहरे और आंखों को लकवाग्रस्त कर देता है। जिससे मरीज को कुछ निगलने में भी परेशानी होने लगती है। ऐसे में सावधानी रखने की बेहद जरूरत होती है।
इनका कहना है जीबीएस एक पेरिफेरल ऑटो इम्यून बीमारी है। जो दिमाग के पास तंत्रिका तंत्र के किनारे से शुरू होती है। इस बीमारी के मरीज को इम्युनोग्लोबुलिन दिया जाता है। इसमें स्वस्थ एंटीबॉडीज होते हैं। जो तंत्रिकाओं पर प्रतिरक्षा प्रणाली के हमले को शांत करने में मदद करता है।
डॉ. श्रीनेहा, असिस्टेंट प्रोफेसर, न्यूरोलॉजी, कल्याण अस्पताल सीकर