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डायरिया और सांस के मरीजों में गुइलेन बैरे सिंड्रोम का खतरा

कमजोर इम्यूनिटी के कारण होता है गुइलेन बैरे सिंड्रोम प्रदेश में मानसून के आगमन के साथ ही सांस की बीमारी और डायरिया के मरीजों में ऑटो इम्यून बीमारी गुइलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) का खतरा बढ़ता जा रहा है। चिंताजनक बात है कि कल्याण अस्पताल में गुइलेन बैरे सिंड्रोम का एक मरीज अस्पताल के आईसीयू में […]

सीकरJun 19, 2025 / 11:03 am

Puran

कमजोर इम्यूनिटी के कारण होता है गुइलेन बैरे सिंड्रोम

प्रदेश में मानसून के आगमन के साथ ही सांस की बीमारी और डायरिया के मरीजों में ऑटो इम्यून बीमारी गुइलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) का खतरा बढ़ता जा रहा है। चिंताजनक बात है कि कल्याण अस्पताल में गुइलेन बैरे सिंड्रोम का एक मरीज अस्पताल के आईसीयू में भर्ती है। जिसका इम्युनोग्लोबुलिन (आईवीआईजी) के इंजेक्शन देकर उपचार किया जा रहा है।राहत की बात है कि समय पर उपचार मिलने पर मरीज इस बीमारी से ठीक हो जाता है। चिकित्सकों के अनुसार जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में मई-जून के बीच जीबीएस के 17 मरीज भर्ती किए गए, जिनमें से 11 की हिस्ट्री में डायरिया या गैस्ट्रो संक्रमण मिला। जीवाणु और वायरल संक्रमण के कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण मरीज में गुइलेन बैरे सिंड्रोम की चपेट में आ जाता है। इस ऑटोइम्यून बीमारी की शुरूआत डायरिया और सांस के संक्रमण संक्रमण से होती है। जिसका समय पर उपचार नहीं मिलने से लकवा भी हो जाता है। कई बार मरीज की मौत तक हो जाती है।
आईवीआईजी इंजेक्शन ही उपचार

चिकित्सकों के अनुसार जीबीएस के मरीज के उपचार में आईवीआईजी (इंट्रावेनस इम्यूनोगगुलोबिन ) इंजेक्शन काम में लिया जाता है। यह इंजेक्शन मरीज की इम्यून सिस्टम को नियंत्रित करने का काम करता है और नसों पर हो रहे हमले को रोकता है। मरीज के उपचार के लिए औसतन 5 डोज इंजेक्शन लगाए जाते हैं। महंगा होने के कारण जीबीएस के मरीज को सरकारी अस्पतालों में यह इंजेक्शन नहीं मिल पाता है। ऐसे में जीबीएस के मरीजों को हायर सेंटर के लिए रेफर किया जाता है।
कुछ घंटों में बिगड़ जाती है हालत

चिकित्सकों के अनुसार जीबीएस के मरीजों में एकदम कमजोरी आने लगती है। समय पर इलाज नहीं करवाने पर महज कुछ घंटों या कुछ दिनों में हालत ज्यादा बिगड़ जाती है। अधिकतर लक्षण दो हफ्ते के भीतर कमजोरी की सबसे बड़ी अवस्था तक पहुंच जाते हैं। तीसरे हते तक 90 प्रतिशत पीड़ित बेहद कमजोर हो जाते हैं। छाती और निगलने की मांसपेशियों में लकवा पड़ने की वजह से सांस लेने में दिक्कत, दम घुटने लगता है। समय पर इलाज शुरू नहीं होने पर मरीज की जान बचाना भी मुश्किल हो जाता है।
खुद की एंटीबॉडीज करती है हमला

चिकित्सकों के अनुसार आमतौर पर यह बीमारी रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन, लगातार स्टेरॉयड और एंटी कैंसर की दवा लेने वाले मरीज, अंग प्रत्यारोपित करवाने वाले मरीजों में होती है। जीबीएस के मरीजों में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ही नसों पर हमला करना शुरू कर देती है। जिसके परिणाम घातक होते हैं। ऐसे में पेट दर्द और डायरिया के 10 दिन या दो सप्ताह बाद पैरों में कमजोरी, दर्द महसूस होने और यह कमजोरी धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़कर हाथों तक पहुंच जाए और हाथ-पैर सुन्न होने लगे तो यह गुइलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) का शुरूआती लक्षण होता है। इसके अलावा किसी वायरल, बैक्टीरियल या प्रोटोजोअल बीमारी से ग्रसित हों धीरे धीरे यह चेहरे और आंखों को लकवाग्रस्त कर देता है। जिससे मरीज को कुछ निगलने में भी परेशानी होने लगती है। ऐसे में सावधानी रखने की बेहद जरूरत होती है।
इनका कहना है

जीबीएस एक पेरिफेरल ऑटो इम्यून बीमारी है। जो दिमाग के पास तंत्रिका तंत्र के किनारे से शुरू होती है। इस बीमारी के मरीज को इम्युनोग्लोबुलिन दिया जाता है। इसमें स्वस्थ एंटीबॉडीज होते हैं। जो तंत्रिकाओं पर प्रतिरक्षा प्रणाली के हमले को शांत करने में मदद करता है।
डॉ. श्रीनेहा, असिस्टेंट प्रोफेसर, न्यूरोलॉजी, कल्याण अस्पताल सीकर

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