हर छह में से एक गर्भावस्था का अंत गर्भपात में होता है, ज़्यादातर पहले 12 हफ्तों में। और हर गर्भपात के बाद दोबारा गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। अब तक ज्यादातर रिसर्च भ्रूण की गुणवत्ता पर केंद्रित रही है। लेकिन गर्भाशय की परत (वूम्ब लाइनिंग) से जुड़ी बातें अब तक एक रहस्य बनी हुई थीं।
अब तक के सबसे बड़े अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया है कि कुछ महिलाओं के गर्भाशय की परत में एक असामान्य प्रक्रिया होती है, जो उनके गर्भपात का कारण बन सकती है। यह खोज उन महिलाओं को मदद देने के नए रास्ते खोल सकती है, जो बार-बार गर्भपात झेल रही हैं।
यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ वारविक और यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल्स कोवेंट्री एंड वारविकशायर NHS ट्रस्ट के वैज्ञानिकों ने किया। उन्होंने पाया कि जिन महिलाओं में गर्भपात का इतिहास रहा है, उनमें गर्भाशय की परत भ्रूण के स्वागत के लिए ठीक तरह से तैयार नहीं होती।
वैज्ञानिकों के अनुसार, यह “गर्भपात की पहेली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा” है। इसका मतलब यह है कि गर्भपात का कारण गर्भधारण से पहले ही गर्भाशय की परत में मौजूद हो सकता है — यहां तक कि जब भ्रूण स्वस्थ हो, तब भी।
इस आधार पर वैज्ञानिकों ने एक विशेष जांच विकसित की है, जो यह माप सकती है कि किसी महिला के गर्भाशय की परत सामान्य रूप से प्रतिक्रिया कर रही है या नहीं। अध्ययन की मुख्य लेखिका डॉ. जोएन म्युटर, जो वारविक मेडिकल स्कूल में रिसर्चर हैं और जिनका काम शिशु हानि से जुड़ी संस्था टॉमीज़ ने फंड किया है, कहती हैं:
“यह टेस्ट रोके जा सकने वाले गर्भपातों की पहचान के लिए है। कई महिलाओं से कहा जाता है कि ये सिर्फ ‘बुरा संयोग’ था, लेकिन हमारे शोध से साफ है कि गर्भाशय खुद ही गर्भपात की भूमिका तय कर सकता है, वो भी गर्भधारण से पहले।”
वैज्ञानिकों ने 1300 से अधिक महिलाओं से लिए गए लगभग 1500 बायोप्सी का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि ‘डेसिडुअल रिएक्शन’ नामक जैविक प्रक्रिया – जो गर्भाशय को गर्भावस्था के लिए तैयार करती है – कुछ महिलाओं में ठीक से नहीं होती।
जब यह प्रक्रिया पूरी तरह सक्रिय नहीं होती, तो एक अस्थिर माहौल बन जाता है। इससे भ्रूण तो गर्भाशय में जुड़ जाता है, लेकिन गर्भपात और रक्तस्राव का खतरा बहुत बढ़ जाता है। खास बात यह है कि यह गड़बड़ी संयोग से नहीं होती। कुछ महिलाओं में यह असामान्य प्रतिक्रिया हर माहवारी चक्र में दोहराई जाती है, जो यह दर्शाती है कि यह मापा जा सकने वाला और रोका जा सकने वाला कारण हो सकता है।
इसी आधार पर एक डायग्नोस्टिक टेस्ट बनाया गया, जो यह जाँचता है कि ‘डेसिडुअल रिएक्शन’ सामान्य है या नहीं। यह टेस्ट इंग्लैंड के कोवेंट्री में पायलट रूप से शुरू किया गया और अब तक 1000 से अधिक महिलाओं की देखभाल में सहायक रहा है।
एक महिला, हॉली मिलिकौरिस, को यह टेस्ट कराया गया, जिन्होंने पहले पांच बार गर्भपात का सामना किया था। उन्होंने कहा:
“यह अनुभव ज़िंदगी बदलने वाला रहा। हम लगभग हार मान चुके थे कि शायद मैं कभी गर्भावस्था पूरी नहीं कर पाऊंगी। हर बार हमें लगता था जैसे बच्चे की ज़िंदगी को जुआ बना रहे हैं।”
टेस्ट से पता चला कि उनकी गर्भाशय की परत गर्भावस्था के लिए ठीक से तैयार नहीं होती। इलाज के बाद उनके दो स्वस्थ बच्चे हुए – तीन साल का जॉर्ज और 17 महीने की हेडी।
उन्होंने कहा:
“इस परीक्षण में भाग लेने का मौका मिलना हमारे लिए जीवन बदल देने वाला अनुभव था। पहली बार मेरी बायोप्सी रिपोर्ट सामान्य आई, और हम न केवल एक, बल्कि दो बार सफल गर्भावस्था पूरी कर सके।”
टॉमीज़ संस्था की रिसर्च डायरेक्टर डॉ. ज्योत्स्ना वोहरा ने कहा कि बार-बार गर्भपात झेलने वाली महिलाओं को अक्सर कोई जवाब नहीं मिलता।
“यह टेस्ट न केवल कुछ मामलों में जवाब दे सकता है, बल्कि इससे ऐसे इलाज भी विकसित हो सकते हैं, जो भविष्य में गर्भपात को रोक सकें।”