उल्लेखनीय है कि गांव रंगमहल की थेहड़ की खुदाई का कार्य वर्ष 1916 से 1919 तक इटली के विद्वान डॉ.एलवीटेसीटोरी के नेतृत्व में हुआ। यहां मिट्टी के बर्तन, देवी देवताओं की मूर्तियां, ताबेनुमा धातु के सिक्के आदि मिले। इस कार्य में ग्रामीणों ने भी सहयोग किया। इसके बाद वर्ष 1952 में डॉ. हन्नारिड के नेतृत्व में भी खुदाई कार्य हुआ। यहां कुषाण और गुप्ता कालीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं। हालांकि यहां सैन्धवकालीन अवशेष भी प्राप्त हुए हैं लेकिन उनकी संख्या अपेक्षाकृत कम है। रंगमहल से प्राप्त अनेक मूर्तियां राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली, राजकीय संग्रहालय जयपुर और बीकानेर में रखी हुई है। खुदाई के बाद पुरातत्व विभाग ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में तो ले लिया लेकिन इसको कालीबंगा की तरह विकसित नहीं किया। विभागीय अनदेखी के चलते आज रंगमहल के थेहड़ अतिक्रमणों का शिकार हो रहे हैं।
कभी प्राचीन व्यापारिक केन्द्र था रंगमहल
इतिहासविदों से मिली जानकारी के अनुसार प्राचीन समय में वस्तु विनिमय प्रभावी था। लेकिन रंगमहल से प्राप्त कुषाणकालीन सिक्के यहां व्यापारिक केन्द्र होने का प्रमाण देते हैं। दो हजार वर्ष पूर्व सिक्के वहीं चलन में थे, जहां व्यापारिक गतिविधियां केन्द्र में थी। ऐसे में रंगमहल का प्राचीन महत्व और भी बढ़ जाता है।
बरसाती मौसम में बाहर आते हैं सभ्यता के अवशेष
जानकारी के अनुसार गांव रंगमहल के थेहड़ में खुदाई के बाद बरसाती मौसम में प्राचीन सभ्यता के अवशेष जमीन से बाहर आते रहते हैं। थेहड़ की सुरक्षा व सार संभाल नहीं होने की वजह से ग्रामीण यहां से बर्तन, मूर्तियां, ताबेनुमा सिक्के,चूडिय़ा आदि सामान घरों में ले गए। ग्रामीणों ने बताया कि प्राचीन थेहड़ की सार संभाल व सरंक्षण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से इसे ऐतिहासिक धरोहर के रूप में विकसित किया जाए तो इस क्षेत्र का विकास होगा तथा बड़ी संख्या में पर्यटक भी आएंगे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से थेहड़ के पास संरक्षित स्मारक का बोर्ड लगा हुआ है। इसमें यहां भूमि के साथ किसी तरह की छेडख़ानी करने पर ऐतराज जताते हुए जुर्माना भी निर्धारित किया गया है। थेहड की सुरक्षा के लिए भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण की ओर से चौकीदार रखा हुआ है लेकिन यहां कभी दिखाई नहीं दिया। धर्म और कला की ऊंचाई को प्रमाणित करने वाला स्थल
रंगमहल न सिर्फ एक पुरातात्विक थेहड़ है अपितु यह प्रारंभिक भारतीय व्यापार- वाणिज्य, धर्म और कला की ऊंचाइयों को प्रमाणित करने वाला स्थल है। प्रारंभिक सिंधु सरस्वती सभ्यता, आर्य, कुषाण और गुप्तकाल के समृद्ध प्रमाण रंग महल से प्राप्त होते हैं। आज भारत की इस अनुपम विरासत को संरक्षण और प्रस्तुतीकरण की आवश्यकता है।-
प्रवीण भाटिया, शिक्षाविद् एवं इतिहासकार, सूरतगढ़