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उदयपुर

अच्छी बात : हमारा जंगल बढ़ रहा, चिंता की बात : नहीं थम रहा पहाड़ों का कटना

प्रकृति संरक्षण के प्रति भावी पीढ़ी को जागरूक करने की सख्त जरूरत

उदयपुरMay 14, 2025 / 08:02 pm

अभिषेक श्रीवास्तव

उदयपुर. शौर्य और पराक्रम की धरती मेवाड़ की कुछ और खासियतें हैं वन, पहाड़ और झीलें। प्रदेश में सर्वाधिक वन क्षेत्र यहीं है। खुशी की बात यह भी है कि एक तरफ कई जिलों में वन क्षेत्र सिमट रहा है तो हमारे यहां इजाफा हुआ है। प्रदेश में कुल वन एवं वृक्ष आवरण क्षेत्र में 394 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई थी। जबकि राज्य का वन क्षेत्र 83.80 वर्ग किमी घट गया था। जबकि, उदयपुर में वन क्षेत्र का दायरा 12.46 वर्ग किलोमीटर बढ़ना पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुकता का परिचायक है। दूसरी तरफ, हमारे घने जंगलों और पहाड़ों पर भूमाफिया की नजर थमी नहीं है। खूबसूरत पहाड़ाें की निरंतर बलि ली जा रही है। भूमाफिया निरंकुश होकर पहाड़ों को खत्म कर रहे हैं। यदि ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ाना तय है।

4 लाख 16 हजार हेक्टेयर से अधिक है वन क्षेत्र

उदयपुर में 4 लाख 16 हजार 191 हेक्टेयर वन क्षेत्र उदयपुर में है, जो प्रदेश में पुराने जिलों के हिसाब से सर्वाधिक है। उदयपुर में 2 लाख 65 हजार 406 हेक्टेयर आरक्षित वन, 1 लाख 49 हजार 464 संरक्षित तथा 1320 हेक्टेयर अवर्गीकृत वन क्षेत्र है। इस कारण उदयपुर शहर समेत जिलेभर में वन क्षेत्र समृद्ध है। कहीं घना जंगल है तो कहीं वन पहाड़ों की खूबसूरती को बढ़ा रहे हैं।

पहाड़ों का कटना, दावानल, अतिक्रमण बड़ी चुनौती

पारिस्थितिकी तंत्र के लिए जंगल और पहाड़ों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। सर्वाधिक वन संपदा वाले उदयपुर के सामने वन क्षेत्र को सुरक्षित बनाए रखना बड़ी चुनौती है। वन क्षेत्र में कई जगह अतिक्रमण हो रहे हैं तो दावानल में आए दिन जंगल सुलग रहे हैं। इससे वन संपदा को भारी नुकसान पहुंच रहा है। वन क्षेत्र को सबसे बड़ा नुकसान किसी वजह से हो रहा है तो वह है पहाड़ों का कटना। पहाड़ाें के साथ-साथ वन संपदा भी धराशायी हो रही है। जंगलों और पहाड़ों से वन्यजीवों का जीवन भी जुड़ा हुआ है। उदयपुर के वन क्षेत्र में चीता, भालू, तेंदुआ जैसे कई वन्यजीव विचरण करते हैं। सज्जनगढ़ अभयारण्य में बायोलॉजिकल पार्क भी सैलानियों की पहली पसंद है। यहां रोजाना बड़ी संख्या में देसी-विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं।

अरावली पर्वत श्रृंखला का सर्वाधिक हिस्सा उदयपुर में

– राजस्थान में स्थित अरावली पर्वत श्रृंखला विश्व की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। यह पर्वतमाला प्राकृतिक हरित दीवार की तरह काम करती है, जिसका 80 प्रतिशत राजस्थान में 20 प्रतिशत हिस्सा हरियाणा, दिल्ली और गुजरात में है।
– अरावली पर्वतमाला गुजरात से राजस्थान होते हुए दिल्ली तक फैली हुई है, जिसकी लंबाई 692 किलोमीटर और चौड़ाई 10 से 120 किलोमीटर के बीच है।

– अरावली पर्वतमाला 13 जिलों में लगती है। इनमें उदयपुर, सिरोही, सीकर, चित्तौडगढ़़, डूंगरपुर, अलवर, प्रतापगढ़, राजसंमद, पाली, भीलवाड़ा, अजमेर, जयपुर, झुंझुनूं शामिल हैं। सर्वाधिक हिस्सा उदयपुर जिले में है।

38 किमी की परिधि में भूमाफिया ने काटे 42 पहाड़

उदयपुर के करीब 38 किलोमीटर की परिधि में भूमाफियाओं ने पहाड़ों को छलनी कर दिया। राजस्थान पत्रिका की ओर से सिलेसिलेवार चलाए अभियान और हाईकोर्ट की सख्ती के बाद इस पर रोक लगी। सर्वे में सामने आया कि अब तक भूमाफिया यहां पर छोटे-बड़े करीब 42 पहाड़ काट चुके हैं। कइयों ने वहां समतल कर भूखंडों की प्लानिंग काटकर बेच दी तो कई पर रिसोर्ट, होटल, फॉर्म हाउस बन गए। प्रकृति के विपरित हुए इस काम के बावजूद जिला प्रशासन, यूडीए ने इन पर रोक नहीं लगाई।

लापरवाही से छोटी कर दी झीलें, गायब कर दिए तालाब

शहर में लापरवाही के चलते फतहसागर और पिछोला झील को ही छोटा कर दिया गया। दोनों झीलों में बनाई रिंग रोड से पिछोला का दायरा 6 किलोमीटर से घटकर 4 किमी ही रह गया, वहीं फतहसागर का 4.3 से घटकर 2.50 के आसपास हो गया। इसके अलावा रियासतकालीन समय उदयपुर की बसावट के समय बने 44 झील और तालाब में से आधे गायब हो गए। इन तालाबों का सिस्टम कुछ इस तरह का था कि वर्षाकाल में कैचमेंट एरिया में कहीं भी पानी बरसे सभी स्वत: लबालब हो जाते थे, क्योंकि ये सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। आज इन जलस्त्रोतों के कैचमेंट क्षेत्र में, तालाब पेटों में इमारतें खड़ी हो गई है, यह क्रम अब तक जारी है।

इन कामों पर करना होगा काम

झीलों-तालाबों को भरने वाले कैचमेंट हो अतिक्रमण मुक्त

अरावली पर्वतमालाओं के बीच स्थित उदयपुर शहर काफी खूबसूरत है। पहाड़ों से बहकर पानी सीधा नदी-नालों, तालाबों मे आता था, लेकिन जगह-जगह कैचमेंट एरिये में अतिक्रमण और कब्जे करने से पानी का चैनल पूरी तरह से प्रभावित हो गया। कई जगहों पर पानी एकत्रित हो रहा है तो कई जगह नदी-नालों में आने वाले पानी को ही बीच रास्ते में रोक दिया गया। कैचमेंट में हुए इन अतिक्रमण के कारण नदी, तालाब-झीलों के सूखने तक की नौबत आ गई। इसके लिए कई जगह पर भूजल प्रभावित हो गया। हालत को देखते हुए अब इस वाटर मैनजेमेंट को सुधार की जरुरत है। संबंधित एजेंसी को चाहिए कि नदी नालों के प्रवाह मार्ग में हो रहे अतिक्रमण को हटाया जाए।
बिना प्लान नहीं कटे कोई कॉलोनी

हर व्यक्ति को मूलभूत सुविधा का पूरा अधिकार है लेकिन शहर में कई कॉलोनियां ऐसी जो बेतरतीब कृषि भूमि पर कटने के कारण वहां की सारी व्यवस्था प्रभावित हो गई। बिना प्लान कॉलोनियों में हर किसी ने हर कहीं भूखंड काट दिए, कई पर मकान बन गए। मास्टर प्लान की इन कॉलोनियों में सरेआम धज्जियां उड़ी, लेकिन किसी ने रोका नहीं। ऐसी स्थिति में अब संबंधित एजेंसियों को इन कॉलोनियों में सुविधा उपलब्ध करवाने में पसीना आ रहा है। सडक़ निकलने वाले मार्गों पर मकान बने हुए हैं तो कई जगह सडक़ की चौड़ाई कम कर दी। शहर में जरुरत है कि हर कॉलोनी नगर निगम और यूआइटी के प्लान के बाद ही कटे। सड़क से सुविधाओं के लिए जमीन आरक्षित हो। यहां पार्क, सामुदायिक भवन आदि बने।
झीलों में निर्माण निषेध की हो पालना

शहर के पिछोला, फतहसागर, उदयसागर सहित कई झीलों को हाईकोर्ट ने निर्माण निषेध घोषित कर रखा है लेकिन सभी जगह पर धड़ल्ले से काम हो रहा है। इन क्षेत्रों में अब तक प्रशासन व निगम ने बड़े होटल उद्यमी व पहुंच वालों पर कोई कार्रवाई नहीं की। इसी कारण से आज भी उदयसागर किनारे कई काम हो रहे तो पिछोला झील किनारे लोगों ने शहरकोट तक पर निर्माण करवा लिया।
एक्सपर्ट व्यू

जंगल, पहाउ़ और झीलें ही उदयपुर की प्राकृतिक पहचान है। पहाड़ कटेंगे तो इसका असर झीलों और जंगलों पर भी पड़ेगा। इसके लिए जरूरी है जंगलों और पहाड़ों का सुरक्षित रहना। उदयपुर के भविष्य के लिए यहां की प्राकृतिक छटाओं को संवारा जाएं। इनके संरक्षण के लिए सभी को प्रयास करना चाहिए। पहाड़ों की कटाई पर रोक लगनी चाहिए।
राहुल भटनागर, सेवानिवृत्त, वन अधिकारी

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