जमात और बीएनपी आमने-सामने
इस मामले पर जमात और बीएनपी आमने-सामने हो गए हैं। 1971 के मुक्ति संग्राम को लेकर दोनों पक्ष एक दूसरे पर कटाक्ष कर रहे हैं। जमात नेता मिया गुलाम परवार ने 1971 की आजादी को बांग्लादेश की संप्रभुता से समझौता करने वाला समझौता बताया है। वहीं बीएनपी इससे सहमत नहीं है।
छिड़ी बहस
बांग्लादेश में प्रमुख राजनीतिक दल, देश की स्वतंत्रता की कहानी पर बहस कर रहे हैं। इस मामले में विवाद इस बात पर छिड़ा है कि बांग्लादेश को 1971 में ‘सच्ची आज़ादी’ हासिल हुई थी या 2024 में विद्रोह के माध्यम से करवाए गए तख्तापलट से। बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी के महासचिव मिया गुलाम परवार ने 1971 के मुक्ति संग्राम की वैधता को चुनौती दी और तर्क दिया कि 1971 में देश को मिली आज़ादी ‘सच्ची आज़ादी’ नहीं थी बल्कि एक ऐसा समझौता था जिसने बांग्लादेश की संप्रभुता से समझौता किया। परवार ने ढाका में आयोजित स्वतंत्रता दिवस समारोह में कहा, “जो लोग मुक्ति संग्राम की भावना को बनाए रखने का दावा करते हैं, मैं उनसे कहूंगा कि आपने वास्तव में राजनीतिक हितों के लिए देश को भारत को बेचने के लिए समझौते किए थे।” परवार ने यह भी कहा कि देश को ‘असली आज़ादी’ 2024 में शेख हसीना को सत्ता से हटाने के बाद मिली।
बीएनपी ने की निंदा
विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने परवार के बयान की निंदा की। बीएनपी नेता मिर्जा अब्बास ने ‘असली आज़ादी’ के विचार की निंदा की और जोर देकर कहा कि इस तरह का दावा 1971 की आज़ादी के ऐतिहासिक महत्व को कमज़ोर करता है। स्वतंत्रता दिवस पर पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान की कब्र के सामने अब्बास ने कहा, “असली आज़ादी या दूसरी आज़ादी जैसी कोई चीज नहीं होती।” बीएनपी महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने भी परवार के बयान की आलोचना की और विरोध नेता पर देश के इतिहास को मिटाने की कोशिश करने का आरोप लगाया।