भारत-अमरीका टैरिफ वार्ता 17 मई से
इस बीच बदली परिस्थितियों में केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की अगुवाई में भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ को लेकर बातचीत 17 मई से शुरू होने जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत 8 जुलाई से पहले ट्रेड डील फाइनल करना चाहता है। सूत्रों का कहना है कि इस बातचीत में भारत का फोकस देश हित पर होगा। एग्रीकल्चर और डेयरी से जुड़े कुछ संवेदनशील आइटम्स पर भारत सरकार का रुख सख्त होगा। भारत 13 मई को डब्ल्यूटीओ में अमेरिका के स्टील और एल्युमीनियम पर टैरिफ लगाने के मामले को ले गया। भारत के प्रतिनिधि अमराकी प्रतिनिधियों के साथ बातचीत में इस बारे में चर्चा करेंगे। सूत्रों ने कहा, भारत इंडस्ट्रियल गुड्स पर जीरो-टू-जीरो टैरिफ का ऑफर दे चुका है। दूसरे प्रोडक्ट्स को लेकर दोनों देशों में बातचीत चल रही है।
भारत पर मिनी डील साइन करने का दबाव
ब्रिटेन, जापान, कोरिया, वियतनाम और भारत उन देशों में हैं, जिन्होंने बातचीत शुरू कर दी है। अमेरिका का पहला समझौता ब्रिटेन के साथ हुआ, फिर चीन के साथ। अब ट्रंप की नजरें भारत पर हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत पर एक मिनी डील साइन करने का दबाव हो सकता है। इसमें पूरे ट्रेड एग्रीमेंट के बजाय टैरिफ में कटौती और बड़ी खरीदारी पर जोर होगा। अमेरिका कृषि उत्पादों, मांस और कारों पर आयात शुल्क कम करने के लिए कह सकता है। साथ ही भारी मात्रा में तेल, गैस और हवाई जहाजों की खरीद के लिए भी दबाव डाल सकता है। चीन पर 30 प्रतिशत टैरिफ साल के अंत तक रहेंगे!
ब्लूममबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, बुधवार और गुरुवार को किए गए एक सर्वे में सामने आया है कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार वार्ता से जल्दी किसी बड़ी राहत की उम्मीद नहीं है। इस सर्वे में कहा गया कि ट्रंप की ओर से चीन पर लगाए गए टैरिफ उनके दूसरे कार्यकाल में हटाए जाने की संभावना बहुत कम है। अमेरिका ने चीन को टैरिफ पर 90 दिन की अस्थायी राहत दी है। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, चीन पर 30 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ इस साल के अंत तक रह सकता है।
राहत हो सकता है अस्थायी: एसएंडपी ग्लोबल
रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ में हालिया नरमी से दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं को कुछ राहत जरूर मिली है, लेकिन यह राहत अस्थायी हो सकती है। अगर 90 दिन में दोनों देशों के बीच कोई नया समझौता नहीं होता, तो फिर से टैरिफ तेजी से बढ़ सकते हैं। रिपोर्ट के मुताबिर, अमेरिका की नीति में अचानक बदलाव का जोखिम अब भी बना हुआ है, जिससे बाजारों और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर दोबारा असर पड़ सकता है। एसएंडपी ने कहा, चीन-अमराका के बीच तनाव कम होने का फायदा भारत को परोक्ष रूप से मिल सकता है, क्योंकि वैस्विक मांग सुधरने पर भारतीय निर्यात (टेक्सटाइल, ऑटो पाट्र्स, फार्मा) की डिमांड बढ़ सकती है।