इसलिए चूंकि व्रत उपवास से कोई नुकसान नहीं है, इससे आत्मा की शुद्धि ही होती है, साथ ही शरीर के लिए भी ये फायदेमंद है इसलिए वट सावित्री व्रत रखने में कोई बुराई नहीं है पर लिवइन में रह रहीं महिलाओं, मंगेतर के लिए व्रत रख रहीं लड़कियों और कुंवारी लड़कियों को कुछ अलग नियमों का पालन करना चाहिए।
कुंआरी और लिव इन में रहने वाली लड़कियों के नियम
आचार्य वार्ष्णेय के अनुसार वट सावित्री व्रत में पति की दीर्घायु के लिए वट वृक्ष की पूजा की जाती है। लेकिन कुंआरी लड़कियां मनचाहे पति और लिवइन में रहने वाली लड़कियां पार्टनर से शादी के लिए ईश्वर के आशीर्वाद के लिए व्रत रखती हैं। इसके लिए इन्हें इन नियमों का ध्यान रखना चाहिए … इन लड़कियों को सुबह जल्दी उठकर घर की सुहागिन महिलाओं से पहले वट वृक्ष की पूजा कर लेनी चाहिए। कुंआरी और लिवइन में रह रहीं लड़कियों को वट सावित्री व्रत के दिन बरगद के पेड़ की जड़ में दूध और जल अर्पित करना चाहिए। इसके अलावा पेड़ के नीचे दीपक अगरबत्ती जलाकर, गुड़ आदि भोग अर्पित कर बरगद की 21 या 51 बार परिक्रमा करें, लेकिन इन्हें सुहागिनों की तरह निर्जला व्रत रखने की जरूरत नहीं है।
लेकिन जल के अलावा कुछ भी खाने से बचें। इसके बाद विष्णुजी, शिव पार्वती का ध्यान करें और सहस्त्रनाम का पाठ करें। इसके अलावा शिव पार्वती का ध्यान कर उनके मंत्रों का 108 बार जप करें। साथ ही विवाह के लिए प्रार्थना करें। फिर संध्या के समय फिर शिव पार्वती की पूजा करें और मां गौरा को श्रृंगार का सामान अर्पित करें। इसके अलावा गौरा के मंत्र जपें।
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आचार्य वार्ष्णेय के अनुसार पूजा में भावना का अधिक महत्व होता है। हालांकि जिन महिलाओं के पति की कुंडली में एक्सीडेंट, मारक योग, अरिष्ट योग हों, पति लंबे समय से बीमार हों, उन्हें काम क्रोध से मुक्त होकर विधि विधान से वट सावित्री व्रत रखना चाहिए। साथ ही कुछ ज्योतिषीय उपाय कर सकें तो अच्छा हो।
वट सावित्री व्रत पर न करें ये काम
वट सावित्री व्रत अमावस्या को रखा जाता है। इसलिए वो कार्य जो अमावस्या के लिए वर्जित हैं, इस दिन भी नहीं करना चाहिए। उदाहरण के लिए इस दिन श्रृंगार के लिए पार्लर में बाल न कटवाएं, नाखून भी न काटें वरना व्रत का पूरा फल नहीं मिलता। इसके अलावा झूठ नहीं बोलना चाहिए और न ही पति से झगड़ा करना चाहिए।
सुहागिनों के लिए वट सावित्री पूजा विधि
1. प्रातःकाल घर की सफाई कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें। 2. इसके बाद पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें और सोलह श्रृंगार करें। 3. पूजा स्थल को साफ करें और चौकी स्थापित करें। 4. पूजा सामग्री (जैसे फल, फूल, मिठाई, पूरियां, भीगे चने, रोली, अक्षत, धूप, दीप, कच्चा सूत या मौली) तैयार रखें। 5. अपनी चुनी हुई वैकल्पिक वस्तु (टहनी, सुपारी, चित्र आदि) को स्थापित करें।
6. सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करें, फिर ब्रह्मा, विष्णु, महेश और देवी सावित्री का आह्वान करें। 7. .बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें। 8. ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
9. इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। 10. इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें। 11. इसके बाद धूप, दीप नैवेद्य, रोली और अक्षत अर्पित कर ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें। यम की भी पूजा करें।
12. अब सावित्री और सत्यवान की पूजा करते हुए बड़ की जड़ में पानी दें, कुमकुम अर्पित करें। 13. पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।
14. जल से वटवृक्ष (बरगद का पेड़ न मिलने पर वैकल्पिक वस्तु बरगद की टहनी, आटे का बरगद या चित्र) को सींचकर, कुमकुम अर्पित कर, उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन, 7 या 108 बार परिक्रमा करें।
15. बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें। आरती करें और लंबी आयु के लिए प्रार्थना करें। 16. भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपये रखकर अपनी सास के पैर छूकर उनका आशीष प्राप्त करें। यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुंचाएं।
17. पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को या योग्य साधक को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें। 18. इस व्रत में सावित्री-सत्यवान की पुण्य कथा का श्रवण करना न भूलें। यह कथा पूजा करते समय दूसरों को भी सुनाएं।