अजमेर से गया प्रशासनिक अमला उन्हें 6 जनवरी को दिल्ली लेकर पहुंचेगा। यह दिल्ली से 6 जनवरी को ट्रेन संख्या 12015 शताब्दी से रवाना होकर मध्य रात्रि अजमेर पहुंचेंगे। जायरीन और पाकिस्तानी अधिकारी चादर पेश करेंगे।
इसके बाद उर्स में हिस्सा लेकर 10 जनवरी दोपहर 3.50 बजे अजमेर से दिल्ली के लिए रवाना होंगे। जायरीन 11 जनवरी को रात्रि 10.30 बजे 12029 स्वर्ण जयंती शताब्दी एक्सप्रेस से अमृतसर के लिए रवाना होंगे। जिला प्रशासन, खुफिया एजेंसियों और पुलिस ने कड़े सुरक्षा बंदोबस्त किए हैं।
अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट गजेन्द्र सिंह राठौड़ ने बताया कि जायरीन को पुरानी मंडी स्थित सेंट्रल गर्ल्स स्कूल में ठहराया जाएगा। आवास और जियारत की व्यवस्था के लिए अजमेर विकास प्राधिकरण के उपायुक्त भरतराज गुर्जर को सम्पर्क अधिकारी नियुक्त किया गया है।
जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी ऐजाज अहमद अतिरिक्त सम्पर्क अधिकारी एवं तहसीलदार ओमसिंह लखावत सहायक सम्पर्क अधिकारी होंगे। उनके 24 घंटे की अवधि में जायरीन के सी-फॉर्म ऑनलाइन सबमिट होंगे। एनआईसी के संयुक्त निदेशक तेजा सिंह रावत प्रभारी एवं भू-अभिलेख निरीक्षक राजवीर सिंह सहायक प्रभारी होंगे।
संतों और पीरों ने विचारों से किया जन-जन को आलोकित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से दरगाह में चादर पेश की गई। संसदीय कार्य और अल्पसंख्यक मंत्री किरण रिजिजू ने चादर पेश की। उन्होंने दरगाह के महफिल खाना में प्रधानमंत्री मोदी का संदेश भी पढ़ा। सैयद अफशान और सैयद सलमान चिश्ती ने हस्तनिर्मित तस्वीर, सूफी आर्ट पेंटिंग भेंट की। केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री भागीरथ चौधरी, जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत आदि मौजूद रहे।
विश्वभर में लोगों की गहरी आस्था दरगाह में भेजे संदेश में पीएम मोदी ने कहा कि विभिन्न कालखंडों में हमारे संतों, पीरों, फकीरों और महापुरुषों ने कल्याणकारी विचारों से जन-जन को आलोकित किया। इसी कड़ी में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के लोक कल्याण और मानवता से जुड़े संदेशों ने लोगों पर अमिट छाप छोड़ी है।
उनके प्रति विश्वभर में लोगों की गहरी आस्था है। समाज में प्रेम और सौहार्द को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित उनका जीवन और आदर्श हमारी पीढि़यों को निरंतर प्रेरित करता रहेगा। वार्षिक उर्स में दरगाह शरीफ में चादर भेजते हुए मैं ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती को नमन करता हूं।
सभी प्रधानमंत्री ने निभाई दरगाह में चादर भेजने की परम्परा ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के सालाना उर्स में चादर चढ़ाने की परम्परा सदियों पुरानी है। आम जायरीन के अलावा रियासतकाल में राजा-महाराजा, ब्रिटिश अफसरों द्वारा भी अकीदत के साथ चादर पेश की जाती रही थी।
वर्ष 1947 में आजादी के बाद से सभी प्रधानमंत्रियों ने दरगाह में चादर भेजने की परंपरा कायम रखी। प्रथम प्रधानमंत्री बने पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1947 से 1964 तक दरगाह में सालाना उर्स के दौरान चादर भेजी। उनके बाद लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पी.वी. नरसिम्हा राव ने भी चादर भेजना जारी रखा।
वाजपेयी-मनमोहन सिंह की भी थी आस्था पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी 1996 से 2004 तक चादर भेजते रहे। उनके बाद पीएम रहे डॉ. मनमोहन सिंह ने 2004 से 2014 तक उर्स में चादर भेजी।
मोदी ने भेजी 11वीं बार चादर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उर्स में लगातार चादर भेज रहे हैं। उनकी चादर लेकर पूर्व मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी,अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी सहित अन्य नेता पहुंचते रहे हैं।