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Alwar News: यूआईटी को चेयरमैन मिला न मेवात विकास बोर्ड को अध्यक्ष

प्रदेश में भाजपा की सरकार बने करीब डेढ़ साल का वक्त बीत चुका है, लेकिन मेवात विकास बोर्ड, यूआईटी को अभी तक नया चेयरमैन नहीं मिल पाया है।

अलवरJun 13, 2025 / 11:22 am

Rajendra Banjara

UIT Alwar

प्रदेश में भाजपा की सरकार बने करीब डेढ़ साल का वक्त बीत चुका है, लेकिन मेवात विकास बोर्ड, यूआईटी को अभी तक नया चेयरमैन नहीं मिल पाया है। उधर, अल्पमत में आने के बाद डेयरी चेयरमैन विश्राम गुर्जर को पद से हटाने के बाद यह पद भी खाली हो गया है। ऐसे में कार्यकर्ताओं को इंतजार है कि उनकी किस्मत का दरवाजा कब खुलेगा।

महज 4 ही साल मिल पाया अध्यक्ष

सरकार चाहे किसी की रही हो लेकिन यूआईटी अलवर को अध्यक्ष 18 साल में महज 4 ही साल मिल पाया। वसुंधरा सरकार में वर्ष 2003 से 2008 तक यह पद खाली रहा। गहलोत सरकार में वर्ष 2008 से 2011 के बीच यह पद खाली रहा। वर्ष 2011 में प्रदीप आर्य भी करीब 2 साल चेयरमैन रहे थे।
वर्ष 2013 से 2018 के बीच में आई वसुंधरा सरकार ने जनवरी 2016 में यहां देवी सिंह शेखावत को यूआईटी का अध्यक्ष बनाया। देवी सिंह शेखावत भी अक्टूबर 2018 तक ही इस पद पर रहे। वर्ष 2018 में आई अशोक गहलोत सरकार में फिर यह पद 2023 तक यानी आज तक खाली है। इससे पहले वर्ष 1998 से 2003 के बीच रही अशोक गहलोत सरकार ने यहां जगदीश बेनीवाल को अध्यक्ष बनाया था।

जुबेर खान के निधन के बाद से खाली पड़ा है पद

मेवात विकास बोर्ड के चेयरमैन का पद भी पूर्व विधायक जुबेर खान के निधन के बाद से खाली पड़ा है। अलवर और भरतपुर जिले इसमें शामिल हैं। वर्ष 2003 से 2008 के दौरान वसुंधरा सरकार के दौरान कार्यकाल के अंत में अलवर के नसरू खान को बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया था।
इसके बाद गहलोत सरकार आई तो वर्ष 2008 से 2013 तक अशोक गहलोत सरकार में इसका चार्ज ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री के पास रहा। 2013 से 2018 के दौरान वसुंधरा सरकार में यह चार्ज ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री के पास ही रहा। वर्ष 2018 में अशोक गहलोत सरकार के कार्यकाल के अंत में वर्ष 2022 में मेवात विकास बोर्ड का अध्यक्ष अलवर निवासी कांग्रेस नेता जुबेर खान को बनाया गया।

यह हो रहा है असर

जिला कलेक्टर आर्तिका शुक्ला के पास इस समय यूआईटी चेयरमैन के साथ नगर निगम और डेयरी का भी चार्ज है। इतने सारे चार्ज होने की वजह से इनका काम प्रभावित होता है। अगर इन पदों पर राजनीतिक नियुक्तियां हो जाए तो पेंडेंसी खत्म होगी। साथ ही, रूटीन के कामों में भी तेजी आएगी। यही नहीं जो नेता टिकटों से वंचित रह गए थे, उन्हें भी इन पदों का तोहफा मिलेगा।

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