कमल सिंह ने बताया कि करनाल से काले गेहूं का बीज लाकर खेती शुरू की थी। इसके शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति सकारात्मक लाभ मिलने के बाद बड़ी संख्या में किसान अलवर जिले में ही नहीं भरतपुर, धौलपुर तक के जुडकर उन्होंने इस काले गेहूं की खेती करडा शुरू किया।
अपनाई जैविक पद्धति काले गेहूं की खेती में पूर्ण रूप से जैविक पद्धति अपनाई गई है। जहां बिजाई के समय नीम व गुड तथा गोवंश के गोबर से निर्मित लिक्विड और खाद का खेत में बिखराव कर काले गेहूं की खेती नवंबर के आखिरी सप्ताह में बुवाई कर दी गई। जहां अभी काले गेहूं की खेती खेतों में हरियाली बिखेर रही है।काले गेहूं की खेती पूर्ण रूप से जैविक पद्धति से की जाती है। इसमें किसी प्रकार के रासायनिक खाद तथा दवाइयों का उपयोग नहीं होता है।
प्रति बीघा 24 से लेकर 30 मण उत्पादन किसानों के अनुसार इस बार मूंडिया, जमालपुर, बीजवाड़ नरुका, हाजीपुर और झाला टाला में इसकी बुवाई कर नए किसान जोड़े हैं। काले गेहूं का उत्पादन 24 से लेकर 30 मण प्रति बीघा उत्पादन हो रहा है। जो साधारण गेहूं के मुकाबले अधिक है। साधारण गेहूं 20 से 25 रुपए प्रति किलो की दर से बिकते हैं, जबकि काला गेहूं 70 से 100 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकता है।
यह बोले एक्सपर्ट काला गेहूं पोष्टिक व स्वास्थ्यवर्धक साधारण गेहूं के मुकाबले काला गेहूं पोष्टिक व स्वास्थ्यवर्धक होता है। काले गेहूं में एंथोसाइएनिन पिगमेंट की मात्रा 40 से 140 पीपीएम होती है। इस वजह से इसका रंग काला होता है।साधारण गेहूं में एंथोसाइएनिन की मात्रा 5 से 15 पीपीएम होती है।
प्रकाश सिंह शेखावत, निदेशक स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर। ……….. काला गेहूं रोग प्रतिरोधी काले गेहूं एक प्रकार से औषधीय खेती है। जिसमें एंथोसाइएनिन एक नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट, एंटीबायोटिक है, जो हार्टअटैक, कैंसर, शुगर, मानसिक तनाव, घुटनों का दर्द, एनीमिया जैसे रोगों में काफी कारगर है। काले गेहूं की रोटी स्वादिष्ट व पोष्टिक होती है। काले गेहूं के खाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। काला गेहूं रोग प्रतिरोधी तथा कीट प्रतिरोधी प्रजाति का है।
राजेंद्र सिंह राठौड़, प्रोफेसर राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय बीकानेर के हॉर्टिकल्चर विभाग।