शिवकुमार ने एक दिन पहले ही कहा कि कावेरी आरती मंच के निर्माण के लिए जल्द ही निविदा जारी की जाएगी। यह आरती राज्य की संस्कृति और विरासत का प्रतीक होगी। बनारस की गंगा आरती के तर्ज पर दशहरा तक कावेरी आरती शुरू करने के लिए शिवकुमार के प्रयासों से 92 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। यह कार्यक्रम सप्ताह में तीन दिन आयोजित करने का प्रस्ताव है जिसमें बेंगलूरु और राज्य के अन्य मठों के प्रमुखों को भी आमंत्रित करने की योजना है।
पार्टी में वर्चस्व कायम रखने का प्रयास!
हालांकि, शिवकुमार के सॉफ्ट हिंदुत्व को भाजपा के साथ निकटता के रूप में देखा गया, लेकिन उन्होंने ऐसी अटकलों को साफ खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि वह जन्मजात कांग्रेसी हैं और इसमें कोई बदलाव नहीं होने वाला है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक सवाल उठा रहे हैं कि क्या शिवकुमार सॉफ्ट हिंदुत्व के जरिए वैकल्पिक वोट बैंक को बढ़ावा दे रहे हैं? या फिर मुख्यमंत्री पद हासिल करने के लिए पार्टी पर दबाव बनाने का एक प्रयास है। कुंभ मेले में स्नान के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सराहना की तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ कोयंबटूर में ईशा फाउंडेशन के कार्यक्रम में शामिल हुए। बेलगावी के कपिलेश्वर मंदिर में लिंगाभिषेक और तमिलनाडु के एक मंदिर में यज्ञ भी किया। उन्होंने सैंकी टैंक में भी आरती कार्यक्रम कराया। शिवकुमार ने तब कहा था कि वह ऐसे व्यक्ति हैं जो रोज पूजा करते हैं और नियमित रूप से होम करते हैं।
नए सियासी समीकरण के निशाने पर कौन!
भले ही शिवकुमार का हिंदुत्व के प्रति नरम रुख विपक्षी दल भाजपा को हैरान करता है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह न केवल कर्नाटक बल्कि दूसरे राज्यों की राजनीति के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या एक तरफ अहिंदा वोट बैंक को मजबूत करने में लगे हैं तो दूसरी तरफ शिवकुमार 2028 के विधानसभा चुनावों से पहले उनका मुकाबला करने के लिए एक नया वोट बैंक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। पार्टी के कुछ राष्ट्रीय और प्रदेश के नेताओं ने शिवकुमार के रवैये के भले ही आलोचना की, लेकिन उन्होंने हाईकमान को साफ संदेश दे दिया है कि वे सारे विकल्प खुला रखना चाहते हैं।