इस 70 साल की साध्वी ने दीक्षा का 50 वां साल किया पूरा
बंदना कुमारी. महज बीस साल की छोटी उम्र में सांसारिक मोह-माया को छोड़कर साध्वी डॉ. दर्शन प्रभा ने संयम पथ अंगीकार कर लिया था। मन में संयम का भाव लिए राजस्थान के ब्यावर में उन्होंने उपाध्याय पुष्कर मुनि से दीक्षा ग्रहण की थी। गुरुवार को साध्वी डॉ दर्शनप्रभा की दीक्षा के पचास साल पूरे हो […]
बंदना कुमारी. महज बीस साल की छोटी उम्र में सांसारिक मोह-माया को छोड़कर साध्वी डॉ. दर्शन प्रभा ने संयम पथ अंगीकार कर लिया था। मन में संयम का भाव लिए राजस्थान के ब्यावर में उन्होंने उपाध्याय पुष्कर मुनि से दीक्षा ग्रहण की थी। गुरुवार को साध्वी डॉ दर्शनप्रभा की दीक्षा के पचास साल पूरे हो जाएंगे। साध्वी डॉ दर्शनप्रभा कहती हैं कि ऐसा लगता है कि जिंदगी का सफर आसानी से पार हो रहा और अपने लक्ष्य की पाने की तरफ बढ़ रही हूं। संयम जीवन सिर्फ संसार से वैराग्य, प्रभु की आराधना तक सीमित नहीं है। मन पर नियंत्रण के साथ अनुशासन और मर्यादामय जीवन भी जरूरी है। खुद लक्ष्य की ओर बढ़ने के साथ ही श्रावक-श्राविकाओं को भी परमार्थ और कल्याण की राह दिखाना भी दायित्व है।
उन्होंने राजस्थान पत्रिका से खास बातचीत में अपने दीक्षा के अनुभवों, नई पीढ़ी की शिक्षा व संस्कार की बातों को साझा किया। पीएचडी की योग्यता हासिल करने वाली 70 वर्षीय साध्वी डॉ दर्शन प्रभा ने बताया कि दीक्षा से पहले दिल्ली के चांदनी चौक निवासी दिवंगत रतनलाल लोढ़ा और कमलाबाई लोढ़ा की पुत्री सरोज के तौर पर मेरी जिंदगी काफी मॉडर्न थी। धर्म के प्रति रुचि संस्कारशाला में शिक्षा ग्रहण करने के बाद मेरी जिंदगी में अचानक बदलाव आया। मन में संयम भाव आने पर माता-पिता के समक्ष दीक्षा की बात रखी। पहले तो माता-पिता आजीवन संयम पथ पर जाने के फैसले पर व्याकुल हो उठे और असहमति दिखाई । फिर उनकी कई तरह की परीक्षाओं में सफल होने के बाद आखिरकार सहमति देनी पड़ी।
युवा पीढ़ी में संस्कारों को सिंचन जरूरी
साध्वी ने बताया कि आज के समय में तपस्या, दीक्षा व धर्म का महत्व बढ़ा है। बाल ब्रह्मचारियों की दीक्षा अधिक हो रही है। पहले की पीढ़ी में श्रद्धा का भाव ज्यादा होता था मगर अब आज की पीढ़ी में तर्क अधिक है। आज के युवा हर चीज में प्रतिक्रिया देने लगे हैं। माता-पिता के मोबाइल फोन पर व्यस्त होने और नौकरीपेशा होने से संस्कारों में कमी आई है। शिक्षा में संस्कार के पाठ्यक्रम नहीं रहने संस्कार सीख नहीं पा रहे हैं। साध्वी ने कहा कि युवा पीढ़ी में संस्कारों को विकसित करने के लिए संस्कार केंद्रों का निर्माण करना होगा। चारित्र अभ्यास के लिए शिविर लगाकर संस्कार से जुड़ी कहानी व चलचित्रों को दिखाना होगा। रामायण धारावाहिक रिश्तों को बेहतरीन तरीके से सहेजने की सीख देती है।
जीवन में सहनशीलता बहुत जरूरी
साध्वी ने कहा कि विनय, विवेक, सहनशीलता नहीं रहने से घर टूट रहे हैं। पारिवारिक रिश्ते व संस्कार खत्म होते जा रहे हैं। सोशल मीडिया के कारण आपसी मेलमिलाप में कमी आने से परिवार व रिश्तेदारों के बीच दूरी बन गई है। इसे सूझबूझ से खत्म कर सकते हैं।
गुरु के प्रति समर्पण, निष्ठा भाव भी हो
सांसारिक भाई उप प्रवर्तक नरेश मुनि ने बताया कि साध्वी डॉ दर्शनप्रभा 20 फरवरी को दीक्षा की स्वर्ण जयंती पूरा कर रही हैं। साध्वी का इतने सालों तक संयम की आराधना व जप-तप करना और 45 सालों से एक समय का भोजन ग्रहण करना, ठंड में गर्म कपड़े नहीं पहनना व श्रीनगर से कन्याकुमारी तक नंगे पाव यात्रा करना प्रशंसनीय है। शालिभद्र मुनि ने कहा कि गुरु के प्रति समर्पण, निष्ठा के भाव व दृढ निश्चय रखने वाली साध्वी का हमें आगे लाने में बड़ा योगदान है। इस मौके पर साध्वी डॉ मेघाश्री, साध्वी श्रद्धाश्री, साध्वी समीक्षाश्री, साध्वी समृद्धि श्री, साध्वी डॉ प्रतीभाश्री, साध्वी आस्थाश्री, साध्वी प्रज्ञाश्री समेत 18 साध्वी मौजूद थीं।