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बैंगलोर

हाइ कोर्ट ने दोषी कर्मचारियों के प्रति राज्‍य सड़क परिवहन निगम के दोहरे रवैये को नकारा

एकल पीठ के न्यायाधीश सूरज गोविंदराज ने कहा, यदि कोई दुर्घटना होती है, जिसके अनुसरण में निगम को चालक के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करनी होती है। निगम एमवीसी मामलों में दायर दावा कार्यवाही में अलग रुख नहीं अपना सकता।

बैंगलोरMar 06, 2025 / 09:59 pm

Sanjay Kumar Kareer

High Court Of Karnataka

High Court Of Karnataka

बस चालक का बचाव और अनुशासनात्मक कार्रवाई करने पर सवाल उठाए

बेंगलूरु. कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि सडक़ परिवहन निगम अपने चालक से जुड़ी सडक़ दुर्घटना के संबंध में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के समक्ष तथा उसी घटना के लिए चालक के विरुद्ध शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही में अलग-अलग रुख नहीं अपना सकता।
एकल पीठ के न्यायाधीश सूरज गोविंदराज ने कहा, यदि कोई दुर्घटना होती है, जिसके अनुसरण में निगम को चालक के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करनी होती है। निगम एमवीसी मामलों में दायर दावा कार्यवाही में अलग रुख नहीं अपना सकता।
कोर्ट ने कहा कि संविधान के तहत निगम एक सरकारी इकाई तथा राज्य होने के नाते एक आदर्श वादी होने के लिए आवश्यक है। एक आदर्शवादी दो विरोधाभासी रुख नहीं अपना सकता, एक ओर यह तर्क देते हुए कि चालक उचित तरीके से गाड़ी चला रहा था, वस्तुत: चालक के आचरण तथा ड्राइविंग क्षमताओं को प्रमाणित करता है, तथा दूसरी ओर यह तर्क देते हुए कि चालक ने दुराचार किया है, उसके विरुद्ध लापरवाही से गाड़ी चलाने के लिए कार्यवाही शुरू करता है।
एनडब्ल्यूकेआरटीसी के डिवीजनल कंट्रोलर ने श्रम न्यायालय द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें चालक हुसैन साब द्वारा दायर आवेदन को स्वीकार कर लिया गया था और उसके खिलाफ पारित बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया गया था। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने मृतक के दावेदारों द्वारा शुरू किए गए मोटर वाहन दावा मामले में सडक़ परिवहन निगम के वकील से उसके रुख के बारे में पूछताछ की।
वकील ने बताया कि सडक़ परिवहन निगम ने यह रुख अपनाया था कि प्रतिवादी-चालक उचित तरीके से गाड़ी चला रहा था और गलती मोटर साइकिल सवार की थी। इस तर्क को एमवीसी न्यायालय ने स्वीकार नहीं किया और 20 जून 2014 को पुरस्कार पारित किया गया, जिसे सडक़ परिवहन निगम ने केवल मात्रा के पहलू पर इस न्यायालय के समक्ष चुनौती दी, जिसे खारिज कर दिया गया।
न्यायालय ने कहा, निगम द्वारा लिया जाने वाला रुख एक समान होना चाहिए, निगम के लिए हमेशा यह खुला विकल्प है कि वह चालक पर लापरवाही से वाहन चलाने के लिए मुकदमा चलाए, लेकिन साथ ही निगम को निष्पक्ष रूप से कार्य करना होगा और मोटर वाहन दावा याचिका में यह तर्क नहीं देना होगा कि चालक की ओर से कोई गलती नहीं थी, बल्कि यह स्वीकार करना होगा कि चालक के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही पहले ही शुरू हो चुकी है, तथा चालक लापरवाही से वाहन चला रहा था।
इसके बाद न्यायालय ने कहा, वर्तमान मामले में, एमवीसी न्यायालय के समक्ष यह रुख अपनाया गया है कि चालक उचित तरीके से वाहन चला रहा था और 24 जनवरी 2014 को चालक के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू होने के बाद भी इस रुख में कोई बदलाव नहीं किया गया है। एमवीसी न्यायालय के समक्ष कार्यवाही 20 जून 2014 को समाप्त हो चुकी है। उन्होंने कहा, मैं इस विचार से सहमत हूं कि सडक़ परिवहन निगम द्वारा लिया गया विरोधाभासी रुख टिकने योग्य नहीं है और वास्तव में दुर्भावनापूर्ण है।

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