बाराबंकी की पूजा पाल: कच्ची दीवार और घास फूस के छत के नीचे रहकर किया आविष्कार, भेजीं गई जापान
Success story of child scientist Pooja Pal बाराबंकी की पूजा पाल भले ही कच्ची दीवारों और घास फूस के छत के नीचे रहती हो। परन्तु उसके एक अविष्कार ने देश दुनिया में जिले नाम रोशन कर दिया है। बाल वैज्ञानिक की उपलब्धियां के प्रति जिला प्रशासन अभी भी उदासीन है।
Success story of child scientist Pooja Pal बाराबंकी की पूजा पाल ने जिले का नाम देश में ही नहीं अंतरराष्ट्रीय पटल पर भी रोशन किया है। जिसके एक आविष्कार ने किसानों को बड़ी राहत प्रदान की। वहीं पर्यावरण को सुरक्षित रखने का भी कार्य किया। पूजा पाल का नाम आज लोगों की जुबान पर है। जिसकी सफलता की कहानी लोगों को प्रेरित कर रही है। जब भारत का प्रतिनिधित्व करने के करते हुए जापान की यात्रा की। यह यात्रा खूब सुर्खियां बटोर रही है। लेकिन बाल वैज्ञानिक का जीवन काफी कष्टदायक है। आज भी कच्ची दीवार और घास फूस की छत के बीच दिए की रोशनी में पढ़ने को मजबूर है। पूजा कहती हैं अब उन्हें बैटरी से चलने वाली रोशनी का सहारा मिला है।
पूजा पाल उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के गांव अगेहरा तहसील सिरौली गौसपुर की रहने वाली है। जिसके पिता मजदूरी करते हैं और मां विद्यालय में रसोईया है। घर के नाम पर कच्ची दीवारों और उस पर घास फूस की छत पड़ी है। बारिश के पानी से बचने के लिए छत पर प्लास्टिक का सहारा लिया जा रहा है। पूजा की मां सुनीता देवी सरकारी स्कूल में रसोईया का काम करती है। जबकि पिता पुत्तीलाल मजदूरी करके बच्चों का पालन पोषण करते हैं। पूजा पाल अपने पांच भाई बहनों के साथ रहते हुए घर की जिम्मेदारी उठाती है। घर में पशुओं की देखरेख से लेकर चारा काटने में अपना हाथ बंटाती है।
विभाग ने बिजली के नाम पर मीटर पहुंचाया
जिसके घर में ना तो शौचालय और ना ही बिजली है। पढ़ाई के लिए अभी तक दीये का सहारा था। अब बैटरी से चलने वाला बल्ब घर में रोशनी दे रहा है। जिला प्रशासन में बिजली विभाग को घर में कनेक्शन करने के निर्देश दिए। बिजली विभाग भी मीटर पहुंचा कर अपनी जिम्मेदारियां से मुक्त हो गया। मानो पूजा पाल के घर में रोशनी फैली गई। घर में इतने पैसे भी नहीं कि बिजली का तार खरीद कर विद्युत विभाग को दे सके। आज भी परिवार अंधेरे में रहने को मजबूर है।
कैसे की जापान की यात्रा?
पूजा पाल कक्षा 8 में पढ़ाई करते समय जब स्कूल जाती थी तो थ्रेसर से निकलने वाले धूल से लोगों को परेशान होते देखती थी। स्कूल के छात्रों को भी काफी परेशानी होती थी। बाल मन ने कुछ करने को सोचा। उसने टीन और पंखे की मदद से थ्रेसर का ऐसा मॉडल तैयार किया। जिससे थ्रेशिंग करते समय निकलने वाला धूल बाहर उड़ना बंद हो गया।
शैक्षणिक भ्रमण पर भेजी गई जापान
पूजा पाल के इस आविष्कार की चर्चा तब हुई। जब 2020 में जिला और मंडल स्तर पर यह मॉडल चुना गया। यहां से निकलकर राज्य स्तरीय प्रदर्शनी में भी मॉडल ने अपनी छाप छोड़ी। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ओर से आयोजित 2024 के राष्ट्रीय विज्ञान मेले मेले के लिए पूजा पाल के मॉडल को चुना गया। यह सफर यहीं नहीं रुका। भारत सरकार ने जून 2025 शैक्षणिक भ्रमण के लिए पूजा पाल का चयन किया और उसे जापान भेजा गया। यहां पर भी पूजा पाल ने खूब नाम कमाया।
क्या कहती हैं पूजा पाल?
पूजा पाल ने बताया कि उसके भूसा धूल पृथक्करण यंत्र को पेटेंट करने की भी तैयारी की जा रही है। इसके निर्माण के बाद उसके गांव में यह यंत्र पहुंचेगा। इसके बाद धूल रहित गेहूं की कटाई होगी। अब लोगों को धूल से होने वाली परेशानी नहीं होगी। अपनी पढ़ाई के विषय में पूजा ने बताया कि मम्मी पापा कहते हैं कि एक-दो दिन नहीं खाएंगे तो कुछ नहीं होगा। लेकिन पढ़ाई से सब कुछ है। बिना पढ़े कुछ भी नहीं है। इंटर की पढ़ाई करने के बाद पूजा कुछ ऐसा कार्य करना चाहती है कि जिससे घर खर्चे में सहयोग कर सके। पहले वह दीया में पढ़ती थी। अब छोटी बैटरी के माध्यम से पढ़ाई होती है। गांव में हंसने वालों को भी वह कुछ करके दिखाना चाहती है।