जब बाड़मेर कलेक्टर के सामने फूट-फूटकर रोने लगी बालिका, करंट ने छीन लिए थे दोनों हाथ, फिर IAS Tina Dabi ने कही यह बात
IAS Tina Dabi: मरु उड़ान के तहत जिला मुख्यालय पर टाउन हॉल में कॅरियर काउंसलिंग सेमिनार में लीला नाम की बालिका ने रोते-राते अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि करंट से दोनों हाथ कट गए। मैं शिक्षक बनना चाहती हूं।
Barmer News: राजस्थान के बाड़मेर-जैसलमेर के इलाके में जहां बेटियों को आगे नहीं पढ़ाने को लेकर कई बहाने तलाशे जाते हैं, वहां एक बेटी के दोनों हाथ कट गए तो पांवों से लिखना सीखा और बाहरवीं उत्तीर्ण कर आगे टीचर बनने का सपना देख रही है।
उल्लेखनीय है कि हापों की ढाणी निवासी भूरसिंह की पुत्री लीलाकंवर को 23 सितंबर 2003 को करंट लगा था। उसे उपचार के लिए बाड़मेर के बाद अहमदाबाद ले गए। वहां मासूम के दोनों हाथ काटने पड़े। इसके बाद कृत्रिम हाथ लगे, लेकिन काम नहीं आए।
मरु उड़ान के तहत जिला मुख्यालय पर टाउन हॉल में कॅरियर काउंसलिंग सेमिनार का आयोजन हुआ। सेमिनार में कलक्टर टीना डाबी और सीईओ सिद्धार्थ पलनीचामी ने सिविल सर्विसेज के सवालों के जवाब दे रहे थे। इस बीच लीला नाम की बालिका खड़ी हुई और रोते-राते अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि करंट से दोनों हाथ कट गए, डिस्कॉम से मिली आर्थिक सहायता दुगुने के लालच में एक निजी सोसायटी में डूब गई। अब रुपए नहीं मिल रहे हैं, मामला न्यायालय में विचाराधीन है। मैं शिक्षक बनना चाहती हूं।
लीला का दर्द देख कलक्टर ने कहा मदद करूंगी
लीला रोते हुए कहा कि मैं सरकारी जॉब में जाना चाहती हूं। शिक्षक बनाना चाहती हूं। मेरे पापा यूपीएससी में जाने के लिए कहते है, लेकिन मैं पापा से दूर नहीं रह सकती हूं। मैं 9 साल की थी, तब करंट आने से मेरे दो हाथ कट गए। सरकार से मुझे साढ़े पांच लाख की मदद मिली थी।
यह पैसे मेरे पिता को प्रलोभन में लेकर निजी सोसायटी में जमा करवा दिए, कि आपकी बेटी बड़ी होगी तब यह रुपए दुगुने हो जाएंगे। उसका केस हाईकोर्ट में चल रहा है, लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा है। इतना सुनते ही जिला कलक्टर टीना डाबी ने कहा कि आप बताओ आप हमसे क्या चाहते हो मैं आपकी पर्सनली मदद करूंगी।
उन्होंने कहा कि कोर्ट केस में हम आपकी कैसे मदद कर सकते है। क्योंकि वो पूरा प्रोसेस होता है। हम कोर्ट केस की तारीख नजदीक ला सके। पूरा प्रोसेस समझेंगे। आपको कोई भी आर्थिक मदद चाहिए तो हम आपको पर्सनली कर देंगे।
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पत्रिका ने लीला का दर्द समझा था
लीला जब आठवीं कक्षा में आई तो जिला मुख्यालय पर कृत्रिम हाथ लेने आई। पत्रिका ने इस बालिका के हाथ नहीं होने का दर्द जाना तो यह बात सामने आई कि हाथ कटने के बाद डिस्कॉम ने उसे कोई मुआवजा राशि नहीं दी है। पत्रिका ने खूंटी पर टंगे लीला के हाथ शीर्षक से समाचार शृंखला प्रारंभ की तो डिस्कॉम ने लीला को 4.50 लाख रुपए मदद के दिए और 1.50 लाख की अन्य मदद हुई।
लीला और परिवार को इस बात का संतोष है कि अब बेटी सयानी होगी तो शादी में काम आएंगे तो लीला ने कहा नहीं, इन रुपए के साथ पढ़ाई पूरी कर मैं पांवों पर खड़ी होऊंगी। इधर परिजनों ने यह राशि सोसायटी में जमा करवाई, लेकिन सोसायटी डृूबने के साथ ही लीला की सहायता राशि भी अटक गई।