संगठन की नीति निर्धारक सर्वोच्च इकाई पोलित ब्यूरो के 16 में से 4 और मुख्य क्रियान्वयन इकाई सेंट्रल कमेटी में 24 में से मात्र 16 सदस्य ही बचे हैं। शेष सदस्य मारे गए है या फिर गिरफ्तार हो चुके हैं। नक्सली इन रिक्त पदों पर भर्ती भी नहीं कर पा रहे हैं। बूढ़े नेतृत्व के कारण संगठन भी कमजोर होता जा रहा है।
CG Naxalite: लोगों का मोहभंग
CG Naxalite: बस्तर के आइजी सुंदरराज पी का कहना है कि
नक्सलियों की खोखली विचारधारा से लोगों का मोहभंग हो चुका है पुराने नेता उम्रदराज हो चुके हैं। स्थानीय लोगों के बजाए तेलुगु लीडरों पर ज्यादा भरोसा करते हैं। यही कारण है कि नक्सलियों के संगठन का ढांचा चरमरा कर अंतिम सांसें गिन रहा है।
वर्ष 2004 में हुआ था संगठन का पुनर्गठन
दो बड़े नक्सली संगठन पीपुल्स वार और एमसीसी ( मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ) का विलय कर वर्ष 2004 में नया संगठन भाकपा माओवादी बनाया गया और सेंट्रल कमेटी का पुनर्गठन किया गया था। नए संगठन में पोलित ब्यूरो में 16 तथा तथा सेंट्रल कमेटी में 24 सदस्यों की संख्या तय की गई। जिसमें दोनों संगठनों के 70: 30 के अनुपात में प्रतिनिधित्व करने पर सहमति बनी। इसमें कोबार्ड गांधी, प्रशांत बोस उर्फ किशन दा, मुपल्ला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति, नारायण सान्याल, प्रमोद मिश्रा, चेरीकुरी राजकुमार उर्फ असद आदि को नामित किया गया। हालांकि नई केंद्रीय कमेटी का महासचिव गणपति को ही बनाया गया था। इसने लगभग डेढ़ दशक तक संगठन की कमान संभाले रखी। गणपति के गंभीर रूप से बीमार होने के कारण नंबाला केशवराव उर्फ बसवराज को
महासचिव बनाकर पोलित ब्यूरो की कमान भी थमा दी गई।
तेलंगाना मॉडल पड़ा भारी
नक्सलबाड़ी से शुरू हुए नक्सली संगठन के नीति निर्धारकों ने शुरुआती दशकों में परिस्थितियों के मुताबिक तो संगठन में बदलाव किए लेकिन बाद में सदस्यों में मतभेदों के चलते संगठन की
गतिविधियां प्रभावित होने लगी थी। पूर्व महासचिव कोंडापल्ली सीतारमैया और फिर मुपल्ला लक्ष्मण राव के कार्यकाल के दौरान ही संगठन के सदस्यों में मतभेद दिखाई देने लगे थे। इन दोनों ने आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के अधिकांश नेताओं को संगठन के प्रमुख पदों पर बैठा दिया था।
छोटे ओहदे पर बस्तर के लड़ाके
पुलिस के समक्ष समर्पण करने वाले बदरू बताते हैं कि नक्सलियों की मिलिट्री विंग पीएलजीए के छोटे ओहदों में बस्तर, ओडिशा और महाराष्ट्र के लड़ाके शामिल किए गए लेकिन उन्हें आंध्र और
तेलंगाना के नक्सली नेताओं के अधीन काम करना होता था। कई लोगों ने इसका विरोध भी किया, जिससे संगठन में मनमुटाव शुरू हो गए थे। बाद में जब दबाव बढ़ा तो हिड़मा को केंद्रीय कमेटी का सदस्य बनाया गया। संगठन में उच्च पद तक पहुंचने वाला हिड़मा पहला स्थानीय आदिवासी है।
पुरानी विचारधारा नहीं छोड़ी
समर्पण करने वाले नक्सली स्वीकार करते हैं कि समय के साथ हुए बदलाव को संगठन आत्मसात नहीं कर पाया। वे पुरानी उग्र वामपंथी विचारधारा पर ही चल रहे थे। साल 2000 में जब
छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड राज्यों का निर्माण की घोषणा की तो नक्सलियों की कमर ही टूट गई क्योंकि उन्होंने छत्तीसगढ़ को अपना आधार इलाका बना रखा था। राज्य निर्माण के साथ ही नक्सलियों की दिशा बदल गई। वे अपना अर्बन नेटवर्क और युवाओं से कनेक्ट खुद को नहीं कर पाए।
पोलित ब्यूरो विस्तार की कवायद
नक्सली काफी समय से पोलित ब्यूरो के विस्तार की कवायद में जुटे हैं। सूत्रों के मुताबिक सेंट्रल कमेटी ने तीन वरिष्ठ सदस्यों पक्का हनुमंता उर्फ गणेश उईके, कोडरी सत्यनारायण रेड्डी उर्फ कोसा और किशन जी की पत्नी पदमा उर्फ सुजाता उर्फ सुशीला को भी पोलित ब्यूरो में शामिल करने का प्रस्ताव रखा है लेकिन सहमति नहीं बन पाई।16 सदस्यीय पोलित ब्यूरो में पांच सदस्य बचे थे लेकिन चलपति उर्फ रामचंद्र रेड्डी के
गरियाबंद मुठभेड़ में मारे जाने के कारण वर्तमान में संख्या घटकर चार रह गई है।