ये किसान मुख्य रूप से तमोली समाज से ताल्लुक रखते हैं और खानखेड़ा, खरैरी-बागरैन व उमरैण जैसे गांवों में पारंपरिक तरीके से पान की खेती करते हैं। यहां का पान अपनी खुशबू, स्वाद और खास गुणवत्ता के कारण देश और विदेशों में मशहूर है। खास बात ये है कि दिल्ली की मंडियों से होकर बड़ी मात्रा में यह पान पाकिस्तान और खाड़ी देशों में जाता है।
यहां के किसान पान को स्वादिष्ट और टिकाऊ बनाने के लिए पारंपरिक नुस्खे अपनाते हैं—खाद के रूप में घी, दूध, दही और आटे का उपयोग होता है। 45 डिग्री तापमान में भी किसान दिन में 5-6 बार खेतों की सिंचाई कर फसल को जीवित रखते हैं।
पानी की तरह अब पान भी पाकिस्तान से छिन चुका है। भरतपुर के इस निर्णय ने न केवल दुश्मनों को करारा जवाब दिया है, बल्कि यह संदेश भी दिया है कि देश पहले है, व्यापार बाद में।