रेखा गुप्ता ने यह भी कहा कि संस्कृत न केवल एक प्राचीन भाषा है। बल्कि आधुनिक तकनीक के क्षेत्र में भी इसकी उपयोगिता को वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया है। उनके अनुसार, संस्कृत के व्याकरणिक नियम इतने सटीक और तार्किक हैं कि ये कंप्यूटर प्रोग्रामिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में भी इस्तेमाल हो सकते हैं।
सीएम रेखा ने संस्कृत को लेकर की ये घोषणा
मुख्यमंत्री ने संस्कृत को भारतीय संस्कृति की जड़ बताया। उन्होंने कहा, “हर राज्य की अपनी एक मातृभाषा होती है, लेकिन वास्तव में संस्कृत ही हमारी सच्ची मातृभाषा है। हिंदी, मराठी, बंगाली, सिंधी, मलयालम – ये सभी भाषाएँ संस्कृत से ही निकली हैं। अगर भारत को विश्वगुरु बनना है, तो संस्कृत के माध्यम से हमें अपने ज्ञान को और गहराई से समझना होगा। यह वह भाषा है जिसने हमारे विज्ञान, व्यापार और संस्कृति को दिशा दी है।” मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने यह भी घोषणा की कि उनकी सरकार दिल्ली के उन स्कूलों को विशेष समर्थन देगी। जहां संस्कृत पढ़ाई जा रही है। उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि बच्चों को अपनी संस्कृति और विज्ञान की समझ संस्कृत के माध्यम से मिले। इस दिशा में दिल्ली सरकार प्रतिबद्ध है।”
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़
रेखा गुप्ता के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। कुछ लोगों ने उनकी बात का समर्थन किया। जबकि कुछ ने सवाल भी उठाए। लेकिन जानकारों का मानना है कि मुख्यमंत्री का इशारा 1985 में प्रकाशित एक शोधपत्र की ओर था। यह शोधपत्र ‘Knowledge Representation in Sanskrit and Artificial Intelligence’ शीर्षक से रिच ब्रिग्स नामक शोधकर्ता ने लिखा था। जो उस समय नासा एम्स रिसर्च सेंटर से जुड़े हुए थे। इस शोध में कहा गया था कि संस्कृत को इस तरह से परिभाषित किया जा सकता है। जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) में उपयोग हो रहे मौजूदा तरीकों के समान है।
अब नासा के शोध के बारे में जान लीजिए
नासा के शोधपत्रों के अनुसार संस्कृत के “वैज्ञानिक भाषा” होने का दावा मुख्य रूप से नासा के एम्स रिसर्च सेंटर से जुड़े एक शोधकर्ता रिक ब्रिग्स के 1985 के शोधपत्र से निकला है। जिसका शीर्षक है ‘संस्कृत और कृत्रिम बुद्धिमत्ता में ज्ञान का प्रतिनिधित्व’ जिसे एआई पत्रिका में प्रकाशित किया गया था। शोधपत्र में पता लगाया गया है कि कैसे संस्कृत का अत्यधिक संरचित व्याकरण सैद्धांतिक रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) में ज्ञान के प्रतिनिधित्व के लिए एक प्राकृतिक भाषा के रूप में काम कर सकता है। जिसे 400 ईसा पूर्व के आसपास पाणिनि जैसे प्राचीन व्याकरणविदों द्वारा औपचारिक रूप दिया गया था। रिच ब्रिग्स ने अपने शोध में तर्क दिया कि संस्कृत का सटीक वाक्यविन्यास और अस्पष्टता की कमी एआई में उपयोग की जाने वाली संरचनाओं से मिलती जुलती है, यह सुझाव देते हुए कि यह कम्प्यूटेशनल भाषाविज्ञान के लिए एक मॉडल हो सकता है। उन्होंने कहा कि प्राचीन संस्कृत व्याकरणविदों ने भाषा को स्पष्ट करने के लिए ऐसे तरीके विकसित किए जो उस समय की एआई तकनीकों के साथ संरेखित थे। हालाँकि, शोधपत्र यह दावा नहीं करता है कि संस्कृत “सर्वश्रेष्ठ” या “सबसे वैज्ञानिक” भाषा है। न ही यह बताता है कि नासा प्रोग्रामिंग या कोडिंग के लिए इसका समर्थन करता है।
सोशल मीडिया यूजर्स ने दी अपनी प्रतिक्रिया
सीएम रेखा गुप्ता के भाषण पर विक्रम नाम के एक सोशल मीडिया एक्स यूजर ने लिखा “अगर दिल्ली के मुख्यमंत्री इस तरह के हैं तो दिल्ली के भविष्य के बारे में केवल कल्पना ही की जा सकती है और रोना भी पड़ सकता है।” वहीं सैय्यद गुलाम नाम के एक एक्स यूजर ने लिखा “इसकी तुलना संस्कृत में पत्र लिखने और संस्कृत में भाषण देने से करें। कहने और करने में बहुत अंतर है।” अवधेश शर्मा नाम के एक एक्स यूजर ने इसे “आईआईटी बनाम व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी” बताया। दूसरी ओर कुछ सोशल मीडिया यूजर्स ने सीएम रेखा गुप्ता की बात का समर्थन भी किया है। सोशल मीडिया यूजर्स का तर्क है कि दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता का यह बयान सिर्फ एक भाषण नहीं बल्कि एक विचार है कि संस्कृत को फिर से मुख्यधारा में लाना चाहिए। यदि यह भाषा आधुनिक विज्ञान और तकनीक में भी उपयोगी हो सकती है तो इसे सिर्फ धार्मिक या पारंपरिक भाषा के दायरे में सीमित करना उचित नहीं होगा। संस्कृत की वैज्ञानिकता को पहचानने का समय आ गया है।