बीते वर्ष 2024 में 1,145 अंडों को संरक्षित किया गया था, जिनमें से 1,020 कछुए विभिन्न प्रजातियों के जीवित मिले। इनमें से 145 नवजातों को बरही स्थित कछुआ अनुसंधान केंद्र में विशेष देखरेख में पाला जा रहा है। इस साल 200 से अधिक बच्चों को संरक्षण देने की योजना है।
विलुप्ति के कगार पर दुर्लभ प्रजातियां
चंबल नदी में बटागुर साल, ढोर, सुंदरी, मोरपंखी, कटहवा, भूतकाथा, स्योत्तर और पचेड़ा जैसी कछुआ प्रजातियों को संरक्षित किया जा रहा है। इनमें बटागुर और बटागुर डोंगोका के बच्चों को केंद्र में विशेष देखरेख में रखा गया है, क्योंकि ये विलुप्ति की कगार पर हैं। कछुओं को बचाने के लिए बरही में एक संरक्षण केंद्र भी संचालित किया जा रहा है, जहां नवजातों को कुछ समय तक सुरक्षित रखा जाता है। रेत में डेढ़ फीट गहरे दबाए जा रहे अंडे
कछुओं के अंडों को अस्थायी हैचरी में डेढ़ फीट गहराई तक दबाया जा रहा है। जब गर्मी तेज होगी, तो इनसे बच्चे बाहर निकलेंगे। घाटों के पास से एकत्र की गई रेत में कर्मचारी सुबह से अंडों की तलाश में जुटे हैं। इस साल नेस्टिंग 25 फरवरी से शुरू हुई है और यह अप्रैल के अंत तक चलेगी।
चंबल की पहचान बनी दुर्लभ ‘साल’ प्रजाति
बरही संरक्षण केंद्र फूप के प्रभारी विकास वर्मा के अनुसार, बटागुर कछुए की तरह ही साल प्रजाति के कछुए सिर्फ चंबल नदी में पाए जाते हैं, जबकि ढोर प्रजाति यहां बड़ी संख्या में मौजूद है। संरक्षण के लिए चंबल के किनारे कई अस्थायी हैचरी बनाई गई हैं, जहां अंडों को सुरक्षित रखा जा रहा है। अंडों को बचाने के लिए सख्त निगरानी
रेत में दबे अंडों को अक्सर जानवर खा जाते हैं, इसलिए कनकपुरा में एकत्र करके अस्थायी हैचरी में सुरक्षित रखा जा रहा है। चंबल के घाटों पर कर्मचारियों की विशेष ड्यूटी लगाई गई है ताकि इन अंडों को बचाया जा सके।
फैक्ट फाइल
- 2024 में संरक्षित अंडे – 1,145
- इस साल अब तक मिले अंडे – 350
- पिछले साल जीवित निकले कछुए – 1,020
- बरही केंद्र में संरक्षित कछुए – 145
- 2025 में 200 से अधिक होंगे संरक्षित