मप्र पब्लिक हेल्थ सर्विसेज कॉपॅरिशन लिमिटेड के एमडी मयंक अग्रवाल ने बताया कि सीओपीपी सर्टिफिकेट में दवा निर्माण का स्टेप डब्ल्यूएचओ जीएमपी स्टैंडर्ड का होता है। इससे एक्सपोर्ट क्वालिटी (export quality medicines) की दवाएं ही शासकीय अस्पतालों को मिलेंगी।
थोड़ी महंगी होगी दवाएं
यह दवाएं थोड़ी महंगी होंगी लेकिन अस्पतालों में मरीजों को एक्सपोर्ट क्वालिटी की दवाएं मिलेंगी। छोटी कंपनियां सप्लाई ही यही कर पाएंगी। स्वास्थ्य विभाग के मध्यप्रदेश पब्लिक हेल्थ सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने नियमों में यह बदलाव कर लागू कर दिया है। इसे टेंडर शर्तों में जोड़ दिया गया है।
अब तक 14 दवाएं मिल चुकी अमानक
सरकारी अस्पतालों में इस वर्ष सप्लाई की गई दवाओं में से 14 अमानक मिल चुकी हैं। इनमें एंटीबायोटिक से लेकर बुखार, हार्ट संबंधी और एचआइवी किट तक शामिल हैं। अमानक होने की शासकीय लैब से पुष्टि होने के बाद कॉर्पोरेशन ने संबंधित बैच के उपयोग पर रोक लगाने के साथ कंपनी को ब्लैकलिस्ट किया है। सीओपीपी सर्टिफिकेशन से यह समस्या काफी हद तक दूर होगी।
सख्त होगी प्रक्रिया
इससे अब केवल सीओपीपी सर्टिफिकेट वाली कंपनियां ही टेंडरिंग प्रक्रिया में पास हो पाएंगी। अभी तक दवाओं की खरीदी में डब्ल्यूएचओ जीएमपी (गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज) सर्टिफाइड दवाओं की अनिवार्यता लागू थी। इसमें यह जरूरी था कि दवा निर्माता कंपनियों का परिसर डब्ल्यूएचओ जीएमपी सर्टिफाइड हो। लेकिन अब सीओपीपी सर्टिफिकेट में दवाओं के निर्माण की हर स्टेप का डब्ल्यूएचओ जीएमपी मापदंडों के अनुरूप होना जरूरी है। इसके मापदंड भी सख्त हैं।
क्या है सीओपीपी सर्टिफिकेट
सीओपीपी सर्टिफिकेट दवा कंपनियों के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इससे यह पुष्टि होती है कि उत्पाद किसी भी देश में बिक्री के लिए गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावशीलता के आवश्यक मानकों को पूरा करता है। यह सर्टिफिकेट नेशनल हेल्थ अथॉरिटी द्वारा जारी किया जाता है। इसके लिए पूरे मापदंड बने हुए हैं। इन मापदंडों का दवा निर्माण के हर स्तर पर अथॉरिटी की टीम परीक्षण करती है। मापदंडों पर खरा उतरने पर सर्टिफिकेट जारी किया जाता है।