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बीकानेर बनेगा कालीन का ‘बादशाह’! PAK सपोर्टर तुर्किये को लग सकता है बड़ा झटका

बीकानेर के वुलन उद्यमी तुर्किए के कालीन-गलीचा उद्योग को बड़ा झटका देने की तैयारी में हैं।

बीकानेरMay 25, 2025 / 12:05 pm

Lokendra Sainger

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Photo- Patrika

दिनेश कुमार स्वामी

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की मदद करने वाले तुर्किए से देश के फल-ड्राई फ्रूट कारोबारी रिश्ते तोड़ रखे हैं। अब बीकानेर के वुलन उद्यमी तुर्किए के कालीन-गलीचा उद्योग को बड़ा झटका देने की तैयारी में हैं। सरकार का साथ मिले, तो बीकानेर कालीन में दुनिया का ‘बादशाह’ बन सकता है।

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2500 करोड़ का टर्नओवर

कारपेट ग्रेड में बीकानेर दुनिया का सबसे बड़ा हब बन कर उभरा है। यहां 100 से अधिक वुलन इंडस्ट्री 250 से अधिक स्पेंडल क्षमता की हैं। सालाना टर्न ओवर 2500 करोड़ के पार है। रोजाना तीन लाख किलो धागा बन रहा है। सीकर, जोधपुर, ब्यावर भी ऊन के केंद्र हैं। उद्यमी मोहित राठी के मुताबिक यदि सरकार तुर्किए से आयात बंद कर दे, तो बीकानेर सहित देश के कारपेट उद्योग को बड़ा फायदा मिलेगा।

1500 करोड़ की संभावना

कारोबारी ओम चौधरी के अनुसार, हस्त निर्मित धागा में भारत इतना कुशल है कि मशीनी धागे को भी मात दे रहा है। भुवनेश अरोड़ा का अनुमान है कि हाथ से निर्मित गलीचा (कारपेट) का भारत में 2030 तक 1500 करोड़ रुपए तक का कारोबार संभावित है।
तीन दशक पहले यूरोप के देशों में कारपेट और यान उद्योग प्रमुख थे, लेकिन श्रमिकों की उपलब्धता और नीति बदलाव के कारण ये उद्योग तुर्किए और बांग्लादेश जैसे देशों में शिट हो गए। उस समय हम चूक गए। वर्तमान वैश्विक परिस्थिति में भारत के हाथ फिर एक बड़ा अवसर आया है। तुर्किए से कारपेट आयात पर प्रतिबंध लगाकर देश में मशीन निर्मित कारपेट उद्योग को प्रोत्साहन दिया जा सकता है, जिससे रोजगार बढ़ेगा और व्यापार संतुलन सुधरेगा। सरकार को यूरोपीय देशों को विश्वास में लेकर यह कदम उठाना चाहिए और व्यापारियों से आग्रह है कि टर्की की बजाय सीरिया जैसे देशों से वुलन खरीदें।- कमल कल्ला, अध्यक्ष राजस्थान वुलन इंडस्ट्री एसोसिएशन

46 फीसदी टैरिफ क्यों?

भारत में तुर्की के कारपेट पर 20 प्रतिशत और तुर्की हमारी कालीनों पर 46 प्रतिशत टैरिफ वसूलता है। तुर्किए से कालीन आयात 4.2 मिलियन से बढ़कर 13.97 मिलियन हो चुका है। हम 8-10 हजार करोड़ का हस्त निर्मित कारपेट निर्यात कर रहे हैं। कारोबारी संजय राठी के अनुसार, भारत और अमरीका की जुगलबंदी हालात को बदल कर रख देगी।

इसलिए है अवसर

पहले बेल्जियम, पोलैंड, इग्लैंड व सहयोगी देशों में कारपेट और यान (धागा) उद्योग बहुतायत में था। धीरे-धीरे यूरोपियन देशों ने स्क्रेप को बाहर निकालना शुरू किया। तुर्की में मैनपॉवर और लैंड उपलब्धता के चलते इंडस्ट्री शिट कर ली। दोनों मामलों में भारत तुर्की से इक्कीस है। लिहाजा, अवसर भी कहीं ज्यादा हैं।

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